
भारत में पल रहे स्लीपर सेल या तो 1965 में इंडो-पाक युद्ध के दौरान उजागर हुए थे या फिर अब नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में। 1965 में ये देशद्रोही इस लिए बच गए थे, कि ताशकंत से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का मृतक शरीर आया था, अन्यथा एक से बढ़कर एक धुरंदर नेता आज जीवित होते हुए भी देशद्रोह की आग में जेल में पड़े होते। वैसे जेएनयू में भी देशद्रोही नारे लगने पर वर्तमान दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने उन आरोपियों पर मुकदमा चलाने की अभी तक इजाजत नहीं दी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस केस में बुधवार (फरवरी 5, 2020) को जामिया के तीन छात्रों से पूछताछ की गई। जिन्हें शरजील के फोन से मिले सबूतों के आधार पर नोटिस देकर जाँच में शामिल होने के लिए कहा गया था। इन छात्रों की पहचान शाहनवाज, सनाउल्लाह और सिद्धार्थ के रूप में हुई है।
ये छात्र कल सुबह चाणक्यपुरी स्थित क्राइम ब्राँच ऑफिस में पहुँचे। उनसे करीब 5 घंटे तक बारी-बारी से सवाल-जवाब किए गए। इन छात्रों ने पुलिस को जानकारी दी कि शरजील के कहने पर ही उन्होंने जामिया और एनएफसी एरिया में सीएए और एनआरसी को लेकर पर्चे बाँटे थे।

शरजील के बैंक अकॉउंट पर पड़ताल शुरू करने से पहले फोन की जाँच के दौरान दिल्ली पुलिस को कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली थीं। जिनके आधार पर पुलिस ने शरजील का साथ देने वाले 15 और लोगों की पहचान की थी। इनमें से ही कुछ को पुलिस ने नोटिस भी भेजा था, जबकि बाकी अन्य लोगों से भी सामान्य पूछताछ चल रही थी। इन 15 चिह्नित लोगों में कुछ जामिया और कुछ एएमयू के छात्र भी शामिल थे। इसके अलावा इस सूची में कुछ शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के भी नाम थे।
इन खुलासों के बाद ही फंडिंग संबंधित जानकारी जुटाने के लिए शरजील के बैंक अकाउंट को भी खंगाला गया। इसके अलावा इस बात की भी जाँच हुई कि शरजील इमाम के साथ कौन-कौन लोग भड़काऊ भाषण में और विवादित पोस्टर छपवाने में शामिल थे।
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