क्या दिल्ली Exit Polls में बड़ी गड़बड़ी?

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आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार 
आम आदमी पार्टी के गठन होने से अब तक के चुनावों में एक बात जरूर सामने आती है कि दिल्ली और पंजाब को छोड़, भारत के किसी राज्य ने इस पार्टी को महत्व नहीं दिया। सभी चुनावों में अधिकांश की जमानत जब्त होने के अलावा कई जगह NOTA से कम वोट मिले। हर राज्य के मतदाताओं ने फ्री में रेवड़ियों बाँटने की पॉलिसी को पूर्णरूप से नकारते आ रहे हैं। दिल्ली और पंजाब के अतिरिक्त अन्य राज्य अरविन्द केजरीवाल की अराजक निति को अच्छी तरह जानते और समझते हुए केजरीवाल पार्टी को सत्ता से दूर ही रखना उचित समझते हैं। 
दूसरे, जब लोकसभा में गठबन्धन की बात चल रही थी, जब भी किसी पार्टी ने केजरीवाल को ज्यादा महत्व नहीं दिया। एक बात और, जो मतदाता यह कहे कि 'मैंने कांग्रेस नहीं, आप को वोट दिया', वह  भ्रमित होने का प्रमाण दे रहा है। क्योकि कांग्रेस और आप सिक्के के एक ही पहलू हैं। 
कांग्रेस ने की केजरीवाल की प्रशंसा 
दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पहले ही हार मान गई है। कांग्रेस के बड़े नेता अब आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल की तारीफों के पुल बाँधने लगे हैं। कांग्रेस दिल्ली में हुए चुनावी मुकाबले में कहीं भी नहीं दिख रही है, इसीलिए पार्टी ने अब भाजपा विरोध के नाम पर उसी AAP का समर्थन शुरू कर दिया है, जिसके ख़िलाफ़ उसने चुनाव लड़ा था। ऐसा बयान कोई और नहीं बल्कि लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ही दे रहे हैं। अधीर रंजन के इस बयान से चर्चा शुरू हो गई है कि क्या जानबूझ कर कांग्रेस ने पूरी ताक़त लगा कर चुनाव नहीं लड़ा?
अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि इस चुनाव में जहाँ भाजपा ने सांप्रदायिक अजेंडे को आगे बढ़ाया, वहीं अरविन्द केजरीवाल विकास के मुद्दे को लेकर जनता के बीच गए। उन्होंने कहा कि अरविन्द केजरीवाल की जीत का अर्थ होगा विकास के मुद्दे की जीत होना। तो क्या कांग्रेस पार्टी ने मान लिया है कि दिल्ली में उसका अस्तित्व खत्म है और राहुल गाँधी व प्रियंका गाँधी भी पार्टी को बचाने में कामयाब नहीं हुए? जो पार्टी 2013 तक लगातार 15 वर्षों में सत्ता में रही थी, अब वो अस्तित्व बचाने के लिए भी जूझ रही है।

खैर, लगभग सारे एग्जिट पोल्स में आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलता दिखाया जा रहा है। हालाँकि, उसकी सीटें पिछली बार से कम ज़रूर होंगी लेकिन एग्जिट पोल्स की मानें तो मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एक बार फिर से प्रचंड बहुमत के साथ वापसी कर रहे हैं। हालाँकि, भाजपा नेताओं मनोज तिवारी और प्रकाश जावड़ेकर ने दावा किया है कि एग्जिट पोल्स और अंतिम नतीजों के बीच बड़ा अंतर होगा। आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं ने ईवीएम गड़बड़ी का राग अलापना शुरू कर दिया है, जिससे पता चलता है कि सत्ताधारी पार्टी भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है।
एग्जिट पोल्स के डेटा में सबसे बड़ी गड़बड़ी ये हुई कि दोपहर 3 बजे के बाद वोटिंग प्रतिशत काफ़ी तेज़ी से बढ़ा। जहाँ दोपहर तक ये लग रहा था कि दिल्ली में मतदाता सुस्त होकर बैठे हुए हैं और वो घरों से नहीं निकल रहे हैं, रात तक के आँकड़े उतने ख़राब भी नहीं हुए जितनी आशंका जताई जा रही है। दोपहर 3 बजे तक मात्र 30% वोटर टर्नआउट था। चुनाव आयोग ने 2:50 में जो आँकड़े ट्वीट किए, उसके हिसाब से उस समय तक महज 29.5% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।
आज के दौर में हम देखते हैं, टीवी न्यूज़ चैनलों के बीच किसी भी ख़बर को पहले दिखाने के लिए बड़ी प्रतिस्पर्द्धा चलती है और इसके लिए वो हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं। लाजिमी है, पहले एग्जिट पोल्स के डेटा दिखाने के लिए भी उनमें होड़ मची होगी। न्यूज़ चैनलों और सर्वे एजेंसियों ने 3-4 बजे तक डेटा कलेक्शन का काम पूरा कर लिया होगा, जिसके बाद उस आधार पर टीवी प्रोग्राम्स की रूपरेखा तय की गई होगी। पूरी प्रक्रिया में समय लगना लाजिमी है क्योंकि आजकल न्यूज़ चैनलों में कुछेक बहस के अलावा बाकि कुछ भी पूर्णरूपेण लाइव नहीं होता।
स्क्रिप्टेड शो के जमाने में टीवी न्यूज़ चैनलों में लगी होड़ के बीच उन्होंने गड़बड़ी कहाँ की, आइए देखते हैं। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध फाइनल आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली विधानसभा चुनाव में 61.75% वोटिंग हुई है। अगर हम मानते हैं कि लगभग 3 बजे तक के डेटा को न्यूज़ चैनलों ने ध्यान में रखा होगा तो इसका अर्थ ये है कि 32.25% मतदाताओं के एक बड़े समूह में से किसी की राय जाने बिना ही एग्जिट पोल्स जारी कर दिए गए। यानी, लगभग एक तिहाई मतदाताओं को एग्जिट पोल्स में नज़रअंदाज़ कर दिया गया।


3 बजे के बाद वोटिंग प्रतिशत में तेज़ी से इजाफा हुआ और अगले 1 घंटों में ही आँकड़ा 40.51% पहुँच गया। यानी, 1 घंटे में लगभग 12% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जब आँकड़े इतनी तेज़ी से बढ़ रहे थे, तब न्यूज़ चैनलों ने एग्जिट पोल्स की तैयारी शुरू कर दी थी।
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आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार ऐसे वक्त में जब दिल्ली की जनता ने अपना फैसला ईवीएम में बंद कर दिया है, एग्जिट पोल्स आप क....

अगर मीडिया ने 4 बजे तक का डेटा लिया होगा, फिर भी 21.24% मतदाताओं में से किसी की राय नहीं जानी गई। यानी, लगभग एक चौथाई मतदाता फिर से एग्जिट पोल्स के दायरे में नहीं आए। कहते हैं, साइलेंट और प्रलोभन वाले वोटर्स दोपहर के बाद ही निकलते हैं। वास्तव में चुनाव का गणित यही वोटर बदलता है। वैसे तो प्रलोभन चुनाव प्रचार समाप्त होते ही शुरू हो जाता है। और इससे कोई पार्टी अछूती नहीं। ये वोटर अगर भाजपा के हुए तो? क्या एग्जिट पोल्स के परिणाम एकदम से नहीं पलट जाएँगे?

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