आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी Made in India को प्रोत्साहित कर रहे थे। अन्य क्षेत्रों में सफल होने के बाद अब कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी को भी मात देने में आईआईटी, दिल्ली ने मोदी की Made in India योजना में चीन और अमेरिका से पहले सफलता अर्जित कर ली है।
कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में देश के शोधकर्ताओं को बहुत बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। दिल्ली आईआईटी के शोधकर्ताओं ने इसकी जाँच का बहुत ही सस्ता और पूरी तरह से सटीक तरीका इजाद कर लिया है। यह तरीका सिर्फ सस्ता ही नहीं, बल्कि मौजूदा तकनीक से बहुत ही आसान भी बताया जा रहा है। अब सिर्फ इसे औपचारिक मान्यता मिलने की देर है, जिसकी प्रक्रिया शुरू भी की जा चुकी है।
शनिवार (मार्च 21, 2020) को ही सरकार ने इसकी जाँच प्राइवेट लैब में कराए जाने की भी इजाजत दी थी और साफ-साफ निर्देश दिया था कि कोरोना टेस्ट का कॉस्ट 4500 रुपए से अधिक नहीं हो सकता है। जिन प्राइवेट लैब के पास NABL मान्यता होगी, वही इस टेस्ट को कर सकते हैं। ऐसे में अगर स्वदेशी तकनीक को मान्यता मिल गई और वह सभी परीक्षणों पर फिट बैठा तो संकट की इस घड़ी में न सिर्फ भारत के लिए बल्कि दुनिया के लिए भी मील का पत्थर साबित हो सकता है।
चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कोरिया ने जहाँ सबसे कम समय में कोरोना वायरस की टेस्ट किट विकसित करने का दावा किया है तो आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने कोरोना की सबसे सस्ती किट विकसित भी कर ली है। अब पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) इसके क्लीनिकल सैंपल पर इसकी जाँच को प्रमाणित करने की प्रक्रिया में जुट गया है। आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने ‘प्रोब-फ्री डिटेक्शन एस्से’ (probe-free detection assay) को यहाँ के प्रतिष्ठित संस्थान कुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज की प्रयोगशालाओं में विकिसत किया है और अनुकूल परिस्थितियों में इसे परखा भी गया है और इसकी संवेदनशीलता की भी जाँच की गई है।
आईआईटी दिल्ली का दावा है कि उसने कोरोना वायरस की जाँच के लिए जो तकनीक विकसित की हैस वह बहुत ही सस्ता और गुणवत्तापूर्ण है और इसका इस्तेमाल आम जनता के लिए बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। आईआईटी के निदेशक और शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर विवेकानंद पेरुमल ने कहा है, “तुलनात्मक अनुक्रम विश्लेषण का उपयोग करके हमने कोविड-19 में अनोखे क्षेत्रों की पहचान की है। ये अनोखे क्षेत्र दूसरे इंसानी कोरोनावायरस में में नहीं पाए जाते हैं, जिसके चलते विशेष तौर पर कोविड-19 का पता लगाने का मौका मिल जाता है।”
उनके मुताबिक अगर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी जाँच को मान्यता दे देता है तो हमारे में देश में बढ़ती आवश्यकता के मद्देनजर इसका तेजी से उत्पादन भी किया जा सकता है। वहीं प्रोफेसर मनोज मेनन इसके किफायती होने का कारण बताते हुए कहते हैं कि जो मौजूदा टेस्ट के तरीके उपलब्ध हैं, वे ‘जाँच-आधारित'(probe-based)हैं, जबकि आईआईटी की टीम ने जिसका विकास है, वह तरीका ‘जाँच-रहित’ (probe-free) है, जिससे जाँच का खर्च घट जाता है, जबकि प्रमाणिकता से कोई समझौता नहीं किया जाता।
स्वदेशी तकनीक विकसित करने वाले शोधकर्ताओं के मुताबिक कोविड-19 की जाँच के लिए जो किट अभी उपलब्ध हैं, नई तकनीक उसके मुकाबले का है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस जाँच को बिना किसी ज्यादा उपकरणों के इस्तेमाल से किया जा सकता है और फिर भी इसकी जाँच गुणात्मकता (हाँ या नहीं) सटीक होती है। शोधकर्ताओं ने कोविड-19 की जाँच के लिए इस किफायती तकनीक का विशेष तौर पर इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया है।
अवलोकन करें:-
इस रिसर्च टीम में पीएचडी स्कॉलर प्रशांत प्रधान, आशुतोष पांडे और प्रवीण त्रिपाठी, पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोज डॉक्टर पारुल गुप्ता और अखिलेश मिश्रा एवं प्रोफेसर विवेकानंद पेरुमत, मनोज बी मेनन, जेम्स गोम्स और बिश्वजीत कुंडु शामिल हैं।
कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में देश के शोधकर्ताओं को बहुत बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। दिल्ली आईआईटी के शोधकर्ताओं ने इसकी जाँच का बहुत ही सस्ता और पूरी तरह से सटीक तरीका इजाद कर लिया है। यह तरीका सिर्फ सस्ता ही नहीं, बल्कि मौजूदा तकनीक से बहुत ही आसान भी बताया जा रहा है। अब सिर्फ इसे औपचारिक मान्यता मिलने की देर है, जिसकी प्रक्रिया शुरू भी की जा चुकी है।
शनिवार (मार्च 21, 2020) को ही सरकार ने इसकी जाँच प्राइवेट लैब में कराए जाने की भी इजाजत दी थी और साफ-साफ निर्देश दिया था कि कोरोना टेस्ट का कॉस्ट 4500 रुपए से अधिक नहीं हो सकता है। जिन प्राइवेट लैब के पास NABL मान्यता होगी, वही इस टेस्ट को कर सकते हैं। ऐसे में अगर स्वदेशी तकनीक को मान्यता मिल गई और वह सभी परीक्षणों पर फिट बैठा तो संकट की इस घड़ी में न सिर्फ भारत के लिए बल्कि दुनिया के लिए भी मील का पत्थर साबित हो सकता है।
The researchers of @iitdelhi have developed a method to detect #COVID19 which can significantly reduce the test cost making it affordable.— Dr Ramesh Pokhriyal Nishank (@DrRPNishank) March 22, 2020
The National Institute of Virology, Pune is in the process of validating this test on clinical samples..
More: https://t.co/OCMxIXq46d
This IIT Delhi research team has been working day and night, while the nation is in a semi lock down mode. They have made a breakthrough for detection of COVID-19.— V.Ramgopal Rao (@ramgopal_rao) March 22, 2020
This low cost "probe-free detection assay" is developed by KSBS in IIT Delhi. https://t.co/zHybZd7PKh@iitdelhi
चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कोरिया ने जहाँ सबसे कम समय में कोरोना वायरस की टेस्ट किट विकसित करने का दावा किया है तो आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने कोरोना की सबसे सस्ती किट विकसित भी कर ली है। अब पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) इसके क्लीनिकल सैंपल पर इसकी जाँच को प्रमाणित करने की प्रक्रिया में जुट गया है। आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने ‘प्रोब-फ्री डिटेक्शन एस्से’ (probe-free detection assay) को यहाँ के प्रतिष्ठित संस्थान कुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज की प्रयोगशालाओं में विकिसत किया है और अनुकूल परिस्थितियों में इसे परखा भी गया है और इसकी संवेदनशीलता की भी जाँच की गई है।
आईआईटी दिल्ली का दावा है कि उसने कोरोना वायरस की जाँच के लिए जो तकनीक विकसित की हैस वह बहुत ही सस्ता और गुणवत्तापूर्ण है और इसका इस्तेमाल आम जनता के लिए बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। आईआईटी के निदेशक और शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर विवेकानंद पेरुमल ने कहा है, “तुलनात्मक अनुक्रम विश्लेषण का उपयोग करके हमने कोविड-19 में अनोखे क्षेत्रों की पहचान की है। ये अनोखे क्षेत्र दूसरे इंसानी कोरोनावायरस में में नहीं पाए जाते हैं, जिसके चलते विशेष तौर पर कोविड-19 का पता लगाने का मौका मिल जाता है।”
उनके मुताबिक अगर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी जाँच को मान्यता दे देता है तो हमारे में देश में बढ़ती आवश्यकता के मद्देनजर इसका तेजी से उत्पादन भी किया जा सकता है। वहीं प्रोफेसर मनोज मेनन इसके किफायती होने का कारण बताते हुए कहते हैं कि जो मौजूदा टेस्ट के तरीके उपलब्ध हैं, वे ‘जाँच-आधारित'(probe-based)हैं, जबकि आईआईटी की टीम ने जिसका विकास है, वह तरीका ‘जाँच-रहित’ (probe-free) है, जिससे जाँच का खर्च घट जाता है, जबकि प्रमाणिकता से कोई समझौता नहीं किया जाता।
स्वदेशी तकनीक विकसित करने वाले शोधकर्ताओं के मुताबिक कोविड-19 की जाँच के लिए जो किट अभी उपलब्ध हैं, नई तकनीक उसके मुकाबले का है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस जाँच को बिना किसी ज्यादा उपकरणों के इस्तेमाल से किया जा सकता है और फिर भी इसकी जाँच गुणात्मकता (हाँ या नहीं) सटीक होती है। शोधकर्ताओं ने कोविड-19 की जाँच के लिए इस किफायती तकनीक का विशेष तौर पर इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया है।
अवलोकन करें:-
इस रिसर्च टीम में पीएचडी स्कॉलर प्रशांत प्रधान, आशुतोष पांडे और प्रवीण त्रिपाठी, पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोज डॉक्टर पारुल गुप्ता और अखिलेश मिश्रा एवं प्रोफेसर विवेकानंद पेरुमत, मनोज बी मेनन, जेम्स गोम्स और बिश्वजीत कुंडु शामिल हैं।
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