मौलाना साद बेताज बादशाह, असली चेहरा दिखाया तो मुसीबत में पड़ जाओगे: मौलाना महफूज उर रहमान

दिल्ली मौलाना
मौलाना महफूज उर रहमान
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
नियम-कानूनों को ताक पर रख दिल्ली के निजामुद्दीन में मजहबी सम्मेलन का आयोजन करने वाले तबलीगी जमात के मौलाना साद पर शिंकजा कसना देश के दूसरे मौलानाओं को रास नहीं आ रहा है। तहफ्फुज-ए-दीन द्वारा जारी एक वीडियो में एक मौलाना ने मीडिया को धमकी देते हुए कहा है कि तुमने जमात का असली रूप नहीं देखा है, अग़र असली रूप देखा तो मुसीबत में पड़ जाओगे।
मौलाना की यह खुलेआम धमकी देश के उन बड़े मीडिया हाउसों को नाम लेकर दी गई है, जिन्होंने तबलीगी जमात या फिर मौलाना साद से जुड़ी हुई खबरों को प्रमुखता से दिखाया है। तहफ्फुज-ए-दीन इंडिया द्वारा जारी इस वीडियो में आप देख सकते है कि महफूज उर रहमान नामक मौलाना ने तबलीगी जमात को बदनाम करने का आरोप लगाकर देश के कई बड़े मीडिया चैनलों को अपना निशाना बनाया है।

स्वराज्य की खबर के मुताबिक रहमान ने वीडियो के माध्यम से कहा कि देश के मीडिया हाउस तबलीगी जमात और कोरोना वायरस की आड़ में प्रोपेगेंडा फैलाकर एक समुदाय को जानबूझकर निशाना बना रहे हैं। रहमान ने अपने संदेश में ZEE TV, आज तक, ABP न्यूज़, इंडिया टीवी जैसे अन्य कई टीवी चैनलों का नाम लिया।
मौलाना रहमान ने धमकी भरे लफ्जों में कहा कि मीडिया ज़बान सँभाल कर काम करे। तबलीगी जमात और मरकज को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। मौलाना साद अमीर-उल-हिंद है और वे मुसलमानों के बेताज़ बादशाह हैं। आप मुसलमानों के जज्बातों के साथ खिलवाड़ मत कीजिए। मौलाना ने कहा कि मैं मीडिया को बता देना चाहता हूँ कि अगर आप किसी भी जमात के सदस्य का साक्षात्कार करेंगे तो आपको पता चलेगा कि वह एक समय अपराधी हुआ करता था। इसलिए अगर ये लोग अपनी वास्तविकता पर आ गए तो आपके लिए बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी।
मौलाना ने कहा कि “मैं रजत शर्मा से पूछता हूँ कि आपके पास क्या सबूत है कि तबलीगी जमात ने कोरोना वायरस फैलाया? मौलाना साद के बुलावे पर ये लोग इकट्ठा हुए थे।” मौलाना ने यह भी कहा कि जमात विश्वभर से विदेशी मुद्रा लाकर भारत में अच्छा प्रचार करके देश को फायदा पहुँचा रही है। रहमान ने यह भी कहा कि जमात की पहुँच देश के छोटे शहरों और कोने-कोने तक है। इस तबलीगी जमात का मकसद बिगड़े हुए मुसलमानों को सही मुसलमान बनाना है। मौलाना ने आगे यह भी कहा कि जमात सामाजिक सुधार, शराब के खिलाफ लड़ाई आदि के लिए काम करता है। इसलिए मीडिया को जमात की वास्तविकता के बारे में पता लगाना चाहिए।
मरकज
केंद्र सरकार भी संदेह के घेरे में 
एक तरफ हमारी गुप्तचर एजेंसियां पाकिस्तान में आतंकवादियों के ठिकानों का पता लगाने में सक्षम है, लेकिन अपनी नाक के नीचे निजामुद्दीन मरकज़ में हज़ारों की संख्या में जमा हुए लोगों की सरकार को किस कारण पता नहीं था? अब यह दिल्ली सरकार की गलती थी अथवा केन्द्र की, यह इन दोनों को ही राष्ट्रहित में देखना है। जब केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने समस्त स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए, परीक्षाएं रद्द हो गयी, लेकिन फिर किस सियासत की शरण में मरकज़ में हुए जमावड़े को लॉक आउट घोषित होने उपरांत भी क्यों नहीं खाली करवाया गया? दूसरे, जब मरकज़ को दो मंजिल की इजाजत मिली थी, फिर किस नगर निगम और पुलिस अधिकारियों के कार्यकाल में गंगनचुंबी 7 मंजिला भवन बन गया? इसकी भी जाँच जरुरी है। तुष्टिकरण या भ्रष्टाचार? 
माना केंद्र सरकार ने टूरिस्ट वीजा पर विदेशियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है, लेकिन ऐसे में प्रश्न यह होता है कि टूरिस्ट वीजा पर आए विदेशी मरकज़ में किस आधार पर शिरकस्त करते रहे? सबसे महत्वपूर्ण और जाँच का विषय यह है कि टीवी पर परिचर्चाओं में भाग लेने अधिकतर मुस्लिम इसको बैन करने को कहते सुना जा सकता है, फिर किस आधार पर इस मरकज़ को बैन नहीं किया गया? इतना ही नहीं यह भी जाँच का विषय है कि इन मरकज़ विरोधी मुल्ला एवं मौलाना किस आधार पर इसे बैन करने की मांग कर रहे हैं या बीते दिनों में की थी? फिर किस आधार पर पिछली सरकारों ने इसे बैन नहीं किया? इन सभी विवादों से पटापेक्ष होना जरुरी है।  
                                                                                   साभार : The Mint 
तबलीगी जमात के आतंकवादी संगठनों अलकायदा, तालिबान और कश्मीरी आतंकवादियों से भी संबंध
2011 में विकिलिक्स द्वारा जारी गुप्त अमेरिकी दस्तावेजों से पता चला है कि अलकायदा के कुछ गुर्गों ने जमात का इस्तेमाल अपनी पाकिस्तान की यात्रा के लिए वीजा और फंड हासिल करने के लिए किया। दस्तावेजों में कहा गया है कि वे दिल्ली या फिर इसके आस-पास भी रहते थे। ‘एक अनुभवी जिहादी’ के रूप में सऊदी अरब के अब्दुल बुखारी का हवाला देते हुए, क्यूबा में ग्वांतानामो बे के अमेरिकी अधिकारियों द्वारा तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि 1985-1986 में वह जिस जमात के सदस्य से मिले थे, उसने पाकिस्तान के लिए वीजा में उनकी मदद की। 25 जुलाई, 2007 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जमात तबलीगी के एक सदस्य ने एक बंदी के लिए पाकिस्तान का वीजा खरीदा, जिसके बाद वो बंदी और अन्य सऊदी लोग लाहौर गए।
विकीलीक्स में खुलासा किया गया है कि उस बंदी को फिर नई दिल्ली में जमात तबलीगी के नेता से मिलवाया गया संगठन के लिए एक जीवन समर्पित करने के लिए कहा गया। बंदी ने जमात तबलीगी से कहा कि उसे इस बारे में सोचने की जरूरत है क्योंकि वह अपना जीवन सेवा, तीर्थयात्रा और मिशनरी कार्यों में नहीं लगाना चाहता। इसके बाद वो दो सप्ताह के लिए लाहौर लौटा और फिर सऊदी अरब चला गया।
1 सितंबर, 2008 को सोमालियाई बंदी मोहम्मद सोलिमन बर्रे पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में धर्मांतरण करवाने वाली संस्था जमात तबलीगी की पहचान अलकायदा कवर स्टोरी के रूप में की गई है। अलकायदा, जमात तबलीगी के सदस्यों की अंतर्राष्ट्रीय यात्रा को सुविधाजनक बनाने और फंड देने का काम करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उसे भारत में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी का दर्जा देने से इनकार कर दिया गया था, लेकिन उसने जमात तबलीगी के प्रायोजन के तहत पाकिस्तान जाने के लिए वीजा लिया था। बंदी ने कहा कि उसका मिशनरी कर्तव्यों को पूरा करने या जमात तबलीगी के साथ सेवा करने का कोई इरादा नहीं है, उन्होंने तो सिर्फ वीजा प्राप्त करने के लिए समूह का इस्तेमाल किया था।
एक अन्य रिपोर्ट में भी तबलीगी जमात का उल्लेख है। 27 जनवरी 2008 को तैयार किए गए सूडान के अमीर मुहम्मद पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1991 की शुरुआत में बंदी ने सुडान ने केन्या के रास्ते भारत की हवाई यात्रा की। भारत के लिए उड़ान भरते समय बंदी ने तबलीगी जमात के एक प्रतिनिधि से मुलाकात की, जिसने उसे नई दिल्ली के एक बड़े तबलीगी सेंटर के बारे में बताया, जहाँ वह सहायता के लिए जा सकता था। रिपोर्ट में कहा गया है कि बंदी ने पाकिस्तानी वीजा प्राप्त करने के लिए खुद को एक तबलीगी के रूप में पेश किया।
इस तरह से यह स्पष्ट है कि इस्लामिक संगठनों ने तबलीगी जमात का इस्तेमाल अपने सदस्यों की यात्राओं को सुविधाजनक बनाने के लिए एक पाइपलाइन की तरह इस्तेमाल किया। 2003 में ब्रुकलिन ब्रिज को नष्ट करने के लिए एक आतंकवादी साजिश के आरोपित ओहियो ट्रक ड्राइवर आयमान फारिस ने अल कायदा के लिए एक काम पूरा करने के लिए जमात का इस्तेमाल पाकिस्तान की सुरक्षित यात्रा के लिए किया। तबलीगी जमात का नाम संयुक्त राज्य अमेरिका में 9/11 आतंकवादी हमले के बाद के बाद जाँचकर्ताओं की नजर में आया। इसके बाद कम से कम चार हाई-प्रोफाइल आतंकवाद मामलों में इसका नाम सामने आया था।
एक प्रतिष्ठित जिओपोलिटिकल इंटेलीजेंस प्लेटफॉर्म स्ट्रैटफ़ोर ने तबलीगी जमात और ग्लोबल जिहाद की दुनिया से इसके संबंध पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में कहा गया है कि जमात और शिया विरोधी संप्रदाय समूहों, कश्मीरी आतंकवादियों और तालिबान के बीच ‘अप्रत्यक्ष कनेक्शन’ का सबूत है। इसमें कहा गया है कि तबलीगी जमात संगठन इस्लामिक चरमपंथियों के लिए और नए सदस्यों की भर्ती के लिए अलकायदा जैसे समूहों के लिए एक वास्तविक समूह के रूप में कार्य करता है। तबलीगी कट्टरपंथी इस्लामवाद की दुनिया से तब रूबरू होते हैं जब वे अपना शुरुआती ट्रेनिंग लेने के लिए पाकिस्तान जाते हैं। एक बार पाकिस्तान में भर्ती होने के बाद, तालिबान, अल कायदा और हरकत-उल-मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठन उन्हें अपने में शामिल करने की कोशिश करते हैं।
दुनिया भर में वुहान कोरोना वायरस के प्रसार में अपनी भारी भागीदारी सुनिश्चित करने से पहले तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने आतंकवादी हमलों में नियमित रूप से भाग लिया। 2017 के लंदन ब्रिज हमले में हमलावरों में से एक, यूसुफ ज़ाग्बा को तबलीगी जमात से जुड़ा था। 2005 में लंदन बम धमाकों को अंजाम देने वाले 7/7 आतंकवादियों के सरगना मोहम्मद सिद्दीकी खान और सहयोगी शहजाद तनवीर को भी तबलीगी जमात से जुड़ा था।
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नई दिल्ली। अप्रेल 05 , 2020। तबलीगी जमात व उसके निजामुद्दीन मरकज की देश व्यापी…
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वुहान कोरोना वायरस के प्रसार में तबलीगी जमात के संदिग्ध तरीके और आतंकवादी संगठनों के लिंक उसके इतिहास को देखते हुए यह संभावना जताई जा रही है कि यह ‘बायोलॉजिकल टेरर’ का एक हिस्सा हो सकता है। पाकिस्तान, मलेशिया और अब भारत में भी तबलीगी जमात के मजहबी कार्यक्रमों ने दक्षिण एशियाई देशों में वायरस फैला दिया है। यदि यह सच में जानबूझकर फैलाने का मामला था, तो यह उन घटनाओं के सबसे खतरनाक मोड़ को दर्शाता है जो अब देशों के अधिकारियों को झेलनी पड़ेंगी। साथ ही उनके लापरवाही के इस घिनौने कृत्य की वजह से कई जीवन खतरे में पड़ गए हैं।

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