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प्रवासी मजदूरों को श्रमिक ट्रेन से पहुँचाया जा रहा घर (फोटो साभार: The Week) |
देश में इन दिनों प्रवासी मजदूरों से ट्रेन का किराया वलूसने के मुद्दे पर राजनीति गर्माई हुई है। प्रवासी मजदूरों से किराया वसूलने के मुद्दे पर चल रही राजनीति के बीच रेलवे ने साफ किया है कि उसने प्रवासी मजदूरों से कोई किराया नहीं वसूला है। इस संबंध में राज्य व केंद्र सरकार, रेल मंत्रालय के साथ मिलकर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जानकारी दी थी कि किराया भी प्रदेश सरकार वहन करेगी।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि अधिकांश राज्यों से राज्य सरकारों ने सरकारी फंड से प्रवासी मजदूरों के किराए का भुगतान किया है, जबकि महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान की सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके पैतृक राज्य पहुँचाने के लिए उनसे किराया वसूला है।
पीटीआई ने बताया कि महाराष्ट्र के राज्य मंत्री नितिन राउत ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर राज्य से जाने वाले प्रवासियों की यात्रा लागत वहन करने का आग्रह किया है। उन्होंने रविवार (मई 3, 2020) को रेल मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि प्रवासियों के परिवहन का खर्च रेलवे वहन करे।
कांग्रेस और इसकी समर्थक सरकारें ही वसूल रही किराया
उल्लेखनीय है कि इन तीनों राज्यों- महाराष्ट्र, राजस्थान और केरल में से दो राज्यों में कांग्रेस सरकार में है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, जबकि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार है, जिसमें कांग्रेस सहयोगी पार्टी है। बता दें कि इससे पहले, यह कांग्रेस पार्टी ही थ, जिसने प्रवासी श्रमिकों के रेलवे टिकटों की लागत वहन करने का वादा किया था, जबकि इसकी अपनी राज्य सरकारें ही प्रवासियों से रेलवे किराए वसूल रही हैं।
सोमवार (मई 4, 2020) को कई विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस पार्टी द्वारा इस अफवाह को हवा दी गई कि रेलवे प्रवासी मजदूरों से किराया वसूल रहा है। इतना ही नहीं, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष ने तो यहाँ तक कह दिया कि उनकी पार्टी श्रमिकों का रेलवे किराया वहन करेगी। वो किराया, जो पहले से ही मुफ्त है। वहीं महाराष्ट्र के मुंबई में तो उद्धव सरकार प्रवासी मजदूरों से मेडिकल सर्टिफिकेट के 200 रुपए वसूल रही है।
केंद्र सरकार ने मजदूरों को वापस घर ले जाने के लिए स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है। भाजपा ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार उनके किराए का 85% वहन करेगी और बाकी राज्य सरकार को वहन करना है। श्रमिक एक्सप्रेस से केरल से झारखण्ड लौटे मजदूरों ने बताया कि उनसे 875 रुपए बतौर किराया वसूले गए। मजदूरों ने बताया कि उनके रूम पर जाकर किराया वसूला गया। ये मजदूर केरल से गिरिडीह पहुँचे थे।
#Breaking | Govt sources: Only Kerala, Rajasthan & Maharashtra made the migrants pay for the railway tickets.— TIMES NOW (@TimesNow) May 4, 2020
Details by TIMES NOW’s Megha Prasad. pic.twitter.com/ioMJhf0w2t
भारतीय रेलवे ने अपनी नोटिस में स्पष्ट कहा है कि रेलवे टिकट नहीं बेच रही है और कोई भी आकर टिकट ख़रीद नहीं सकता। हर राज्य द्वारा दूसरे राज्य में तैनात नोडल अधिकारी की ये जिम्मेदारी है कि वो तय करे कि किन यात्रियों को लेकर जाना है और फिर अधिकारी ही उन्हें स्टेशन तक लाने की व्यवस्था करेंगे। मजदूरों ने कहा कि उनके कमरे पर जाकर किराया वसूला गया। जब रेलवे टिकट ही नहीं काट रही तो उसके अधिकारी मजदूरों के कमरे पर तो जाएँगे ही नहीं। तो फिर गया कौन? किसने लिया किराया?
केरल से झारखण्ड गए यात्रियों के मामले में भी वहाँ झारखण्ड के नोडल अधिकारी ने उन 1129 मजदूरों की सूची बनाई होगी, जो झारखण्ड के 22 जिलों के थे। फिर उन्हें दोनों राज्यों के अधिकारियों की मदद से स्टेशन लाया गया होगा। रेलवे को तो सिर्फ़ इससे मतलब है कि आने वाले यात्री राज्य सरकारों द्वारा लाए गए हैं या नहीं, फिर केंद्र सरकार के स्पष्टीकरण के बावजूद किराए के रूप में इतने रकम किस ने वसूल लिए? जाहिर है, राज्य सरकार के अधिकारियों या स्थानीय लालची नेताओं ने ही ऐसा किया होगा। इसकी जाँच होनी चाहिए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में भी स्पष्ट लिखा हुआ है कि किसी भी रेलवे स्टेशन पर किसी प्रकार का टिकट नहीं बेचा जाएगा। नियमानुसार, रेलवे टिकट प्रिंट करेगा और इसके लिए वो राज्य उसे बताएगा, जहाँ से ट्रेन चालू हो रही है। उस राज्य को ये सूची वो राज्य देगा, जहाँ ये मजदूर जाने वाले हैं। इसके बाद स्थानीय राज्य सरकार ही टिकट को मजदूरों में बाँटेगी। स्पष्ट है कि जो भी हुआ है, वो राज्य सरकार के अधिकारियों या स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से हुआ है।
कांग्रेस पार्टी इस मामले में केंद्र सरकार पर हमलावर है और मीडिया में कहा जा रहा है कि ये ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ 2.0 है, जिसके तहत सोनिया गाँधी ने इस मामले को उठाया है। लेकिन झारखण्ड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में कांग्रेस भी गठबंधन सरकार का हिस्सा है, केरल में वामपंथियों की सरकार है। ऐसे में पार्टी को इन दोनों सरकारों से पूछ कर स्पष्ट करना चाहिए कि मजदूरों से किराया किसने वसूला?
Only Rajasthan , Maharashtra , Kerala made migrant labourers pay ₹1000 charge for journey . @INCIndia which runs the first , partner in second , promoter of third wakes up early in the morning & issues a statement telling Party will pay for it .., #MigrantLabourers— B L Santhosh (@blsanthosh) May 4, 2020
केंद्र सरकार ने कहा है कि हर एक श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन के लिए रेलवे द्वारा राज्य सरकारों को 1200 टिकट दिए जा रहे हैं, इसके बाद ये उनकी जिम्मेदारी है कि वो अपने हिस्से की रकम का भुगतान करें और यात्रियों को चिह्नित कर उन्हें स्टेशन तक लेकर आएँ।
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई वियजन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के स्पष्ट कह चुके हैं कि उनकी सरकार मजदूरों का किराया वहन नहीं कर रही है। महाराष्ट्र, राजस्थान और केरल की सरकारें इन मजदूरों का किराया नहीं दे रही है। एक जगह कांग्रेस की सरकार है तो एक जगह सीपीआई-सीपीएम की। राजस्थान में तो कॉन्ग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में कांग्रेस केंद्र को जिस काम के लिए कह रही है (और जो हो चुका है), वही बात अपनी ही सरकारों से क्यों नहीं मनवा पा रही है? क्या नियम अलग-अलग हैं?
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