Showing posts with label migrant labour. Show all posts
Showing posts with label migrant labour. Show all posts

कोरोना की आड़ में कांग्रेसी और गैरबीजेपी शासित राज्यों में जुल्म की पराकाष्ठा

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
जब से केन्द्र में मोदी सरकार आयी है, मोदी विरोधियों की ऐसी नींद और रोटी हराम हुई है, कि बौखलाहट में स्वयं वही काम कर रहे हैं, जिसके लिए मोदी और मोदी सरकार का विरोध करते रहते हैं। 
एक तरफ कहते हैं, सरकार पत्रकारिता पर अंकुश लगा रही है, जबकि ये लोग स्वयं पत्रकारिता पर हमला यानि अंकुश लगा रहे हैं। नागरिकता संशोधक कानून से लेकर अब विश्वव्यापी कोरोना बीमारी पर अराजकता फ़ैलाने का प्रयत्न कर रहे हैं। दूसरी तरफ कहते हैं कि गरीबों और मजबूर मजदूरों को खाना बाँट रहे हैं, फिर प्रवासी मजदूर क्यों अपने राज्य जाने को मजबूर हो रहे हैं। सभी का यही कहना है कि खाने को नहीं, पैसे नहीं, जबकि कई स्थानों पर दो-दो हज़ार रूपए भी बांटें गए हैं। आखिर ये खाना और रूपए मजदूरों और जरूरतमंदों की बजाए अपने ही लोगों में बांटा गया है? या फिर यह समझा जाए गरीबों की मदद करने की आड़ में तिजोरियां भरी गयीं।  
कोरोना संकट काल में जहां भाजपा शासित राज्यों में आम लोगों की मदद के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं, वहीं कोरोना की आड़ में गैरबीजेपी शासित राज्यों में ज्यादती और मनमानी अपने चरम पर है। गैरबीजेपी राज्यों के क्वारंटीन सेंटरों में अव्यवस्था और खराब खाने की शिकायतों की भरमार लगी है, लेकिन इसकी चर्चा मुश्किल से ही बाहर आ पाती है।
कोरोनाकाल में भी जलाए जा रहे हिंदुओं के घर
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम वोटबैंक को लेकर इतनी अंधी हो चुकी है कि राज्य में कोरोनाकाल में भी उन्मादी तत्वों पर कोई लगाम नहीं है। हुगली जिले के तेलिनीपाड़ा समेत कई हिस्सों में हिंदुओं के घर जलाने के मामले सामने आए हैं। ऑप इंडिया के अनुसार पीड़ितों का कहना है कि पुलिस से शिकायत करने पर उल्टा उन्हें ही मारने की धमकी दी जाती है।

यहां कई दिनों तक हिंदुओं के खिलाफ खुलकर हिंसा हुई। तेलिनीपाड़ा के तांतीपारा, महात्मा गांधी स्कूल के पास शगुनबागान और फैज स्कूल के पास लगातार आगजनी और लूटपाट की घटना जारी रही। प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। मालदा के शीतला माता मंदिर में भी तोड़फोड़ और आगजनी की गई।
सच सामने लाने पर मीडिया पर कहर
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोरोना मरीजों के वास्तविक आंकड़ों को छिपाने के लिए मीडिया को भी धमकाया। इंडिया टुडे के अनुसार ममता ने कहा कि वे अगर सही तरीके से बर्ताव नहीं करते तो उनके खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केस किया जा सकता है।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ ने ममता की इस धमकी को लेकर चिंता जाहिर की।
कलकत्ता न्यूज चैनल के प्रसारण को रोका
संकट के इस दौर में भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोरोना को नियंत्रित करने से अधिक अपना राजनीतिक रुतबा दिखाने में जुटी हैं। कलकत्ता न्यूज चैनल के प्रसारण को जिस तरह से रोका गया, यह भी ममता की निरंकुशता का ही प्रमाण है। ममता की मानें तो खबर वही है, जो उनके अनुरूप हो।

ममता से परेशान मणिपुर की 185 नर्सों ने छोड़ी नौकरी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां एक तरफ कोरोना महामारी को लेकर राजनीति कर रही हैं, वहीं राज्य सरकार और अस्पताल प्रशासन की मनमानी के कारण नर्सेस नौकरियां छोड़ने को मजबूर हैं। कोलकाता में कार्यरत 185 नर्सों ने नौकरी छोड़ दी है। नर्सों का कहना है कि उनके साथ भेदभाव और जातिवादी टिप्पणियां की जाती हैं। यहां तक कि कई बार लोग हम पर थूक भी देते हैं। ये सभी नर्सें मणिपुर की रहने वाली हैं। 

ममता सरकार के रवैये से नर्सों का पलायन
कोरोना से जंग में ममता सरकार के कैजुअल रवैये को देखते हुए बड़ी तादाद में कोलकाता समेत पश्चिम बंगाल की नर्सें पलायन को मजबूर हो गईं। नर्सों का कहना है कि प्रशासन उनकी सुरक्षा को नजरअंदाज कर रहा है। पत्रिका के अनुसार बिना उचित व्यवस्था के उन्हें टेस्टिंग के अतिरिक्त कामकाज में भी लगाया जा रहा है। नतीजा ये है कि सैकड़ों नर्सें आंदोलन पर उतर आईं, साथ ही कइयों ने अपने गृह राज्यों का रुख कर लिया।

ममता राज में पुलिसवाले बने बागी
ममता बनर्जी को कोरोना से जंग में जुटे अपने पुलिसवालों की भी सुध नहीं। यही वजह है कि कई पुलिसवाले खुलेआम बागी बन बैठे। प्रभात खबर के अनुसार  पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में सेनेटाइजर और खाने-पीने की अपर्याप्त व्यवस्था से गुस्साए कॉन्स्टेबलों ने न सिर्फ पुलिस उपायुक्त की पिटाई कर डाली, बल्कि मनाने आईं ममता के सामने प्रदर्शन भी किया।






राजस्थान में पुलिसकर्मी ही खतरे में
कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान के टोंक में कोरोना प्रभावित अल्पसंख्यक इलाकों में गश्त करने गए पुलिसवालों पर लोगों ने घेर कर हमला किया। जागरण के अनुसार 17 अप्रैल को कसाई मोहल्ला इलाके में लाठी-डंडे और तलवार से किए गए इस हमले में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। कोरोना के कर्मवीरों पर हमला सिर्फ इसलिए हुआ, क्योंकि पुलिसवालों ने उन्हें लॉकडाउन में घर जाने को कहा। इससे ठीक दो दिन पहले टोंक में ही संक्रमण को लेकर घर-घर सर्वे करने गई टीम पर भी हमला हुआ था। बताया जाता है कि राज्य सरकार द्वारा सिर पर बिठाए रखने से इन हमलावरों का हौसला बढ़ा हुआ है।

छत्तीसगढ़ के क्वारंटीन सेंटर में दम तोड़ते मजदूर 
छत्तीसगढ़ के जांजगीर में क्वारंटीन सेंटर की बदहाली और खानेपीने की बदइंतजामी के बीच एक मजदूर ने दम तोड़ दिया। बिलासपुर के कुछ क्वारंटीन सेंटर में गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य प्रदेशों के प्रवासी श्रमिकों और उनके बच्चों को ठहराया गया है। नई दुनिया के अनुसार उन्हें नाश्ता तो दूर, थोड़ा-बहुत जो खाना भी मिलता है, उसमें भी दाल की जगह सिर्फ नमक-पानी दिए जाने की शिकायतें मिल रही हैं।

कोरोनाकाल में चुनिंदा मीडियाकर्मियों पर ज्यादतियां
केरल पुलिस ने जी न्यूज के एडिटर सुधीर चौधरी के खिलाफ 7 मई को गैरजमानती धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की। कोझिकोड में ये एफआईआर उन पर अपने न्यूज शो में जिहाद के अलग-अलग रूप बताने के लिए दर्ज की गई। दो महीने बाद पुलिस की यह कार्रवाई अपने-आपमें कई सवाल उठा जाती है, राजनीतिक मंशा को उजागर कर जाती है।

सुधीर चौधरी ने लिखा, “सच्चाई दिखाने के बदले ये रहा मेरा पुलित्जर प्राइज, सच की रिपोर्टिंग के लिए। प्रशस्ति पत्र साझा कर रहा हूं- मेरे खिलाफ केरल पुलिस द्वारा गैर-जमानती धाराओं के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई है। ये इनाम मुझे असुविधाजनक तथ्यों को उजागर करने के बदले मिला है। ये मीडिया के लिए एक साफ संदेश है। अगर आप दशकों पुरानी तथाकथित सेकुलर रेखा पर घुटने नहीं टेकोगे तो आपको जेल के भीतर डाल दिया जाएगा।”

एबीपी के पत्रकार को किया गिरफ्तार
मुंबई के बांद्रा इलाके में लॉकडाउन के दौरान 14 अप्रैल को प्रवासी लोगों के जमा होने के मामले में एबीपी माझा के पत्रकार राहुल कुलकर्णी को गिरफ्तार किया गया। नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार राहुल कुलकर्णी ने ही उस पत्र का पर्दाफाश किया था जिसमें राज्य सरकार के अधिकारी ने घोटाले के आरोपी वधावन बंधुओं को लॉकडाउन में भी सातारा जाने की अनुमति दी थी। यानि कोरोनाकाल की अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए महाराष्ट्र सरकार दूसरी रंजिशों का बदला लेने में भी जुटी हुई है।

रिपब्लिक के पत्रकार अर्नब गोस्वामी पर हमला
कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से से बनी महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने वरिष्ठ पत्रकार अर्नब गोस्वामी की अभिव्यक्ति की आजादी को भी दबाने की कोशिश की। पुलिस के सामने हुई साधुओं की हत्या को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुप्पी पर सवाल उठाने के बाद 22 अप्रैल की मध्यरात्रि में अर्नब गोस्वामी पर मुंबई में हमला किया गया। हमले के आरोपियों को तुरंत जमानत मिलना और अर्नब गोस्वामी से 12 घंटे पूछताछ करना कांग्रेस और उसके साथियों की आपातकाल वाली मानसिकता को उजागर करता है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने खुलेआम दी धमकी
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बोलते हुए अर्नब गोस्वामी की पत्रकारिता को अपराध बताते हुए उन्होंने कहा रिपब्लिक को सबक सिखाने में सक्षम हैं। इसके कुछ ही घंटों बाद अर्नब पर हमला हुआ था।


कांग्रेसी नेता दे रहे एफआईआर कराने की धमकी

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए आलाकमान की वफादारी कोरोना मरीजों के स्वास्थ्य से भी बड़ी है। उन्होंने सोनिया पर टिप्पणी के लिए अर्नब गोस्वामी को पागल तक बता दिया।

अल्का लांबा ने हमले के लिए उकसाया
कांग्रेस नेता अल्का लांबा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मुंबई में अर्नब गोस्वामी पर हमले के लिए उकसाया। इसके थोड़े समय बाद ही अर्नब पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अटैक कर दिया।

फिर अर्नब गोस्वामी पर हमले के तुरंत बाद ट्वीट कर अल्का ने कहा – यूथ कांग्रेस जिंदाबाद


सुशांत सिन्हा पर एफआईआर
इंडिया टीवी से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिन्हा कोरोनाकाल में कांग्रेस की ओछी राजनीति की पोल खोलते रहे हैं। कांग्रेस नेताओं ने उनके खिलाफ राजस्थान में एफआईआर दर्ज कराने की धमकी दी।


महाराष्ट्र में कोरोना योद्धाओं की आवाज दबाने वालों का हौसला बढ़ा
न्यूज18 से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार अमिश देवगन कोरोना योद्धाओं की आवाज को प्रमुखता से उठाते रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान मुंबई के कुर्ला इलाके में जमा भीड़ को समझाने पहुंची पुलिस के साथ AIMIM के स्थानीय पार्षद मुर्तजा ने बदतमीजी की थी। इसको लेकर सवाल पूछे जाने के बाद अमिश को मुर्तजा ने धमकाया था। इससे जाहिर होता है कि महाराष्ट्र में मुर्तजा जैसों को राज्य सरकार का कितना संरक्षण हासिल है।

‘हम अपने पे उतर आए तो तुम्हारा बाहर निकलना बंद हो जाएगा’
यह गैरबीजेपी राज्यों की सरकारों से मिली ताकत का ही दंभ है कि मौलाना साद पर टिप्पणी करने के चलते मौलाना अली कादरी ने रिपोर्टरों को धमकाते हुए कहा कि ‘हम अपने पे उतर आए तो तुम्हारा बाहर निकलना बंद हो जाएगा’


मजदूरों का छलका दर्द : ‘दिल्ली अब आना ही नहीं है हमको, जब तक ये केजरीवाल बदल नहीं जाएगा’

केजरीवाललॉकडाउन के दौरान दिल्ली में फँसे विभिन्न राज्यों के मजदूरों ने केजरीवाल सरकार द्वारा की गई तथाकथित व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है। बेबस मजदूरों का कैमरे के सामने जब दर्द छलका तो सबसे पहले उनकी जुबान से एक ही बात निकली, “अब दिल्ली तभी आएँगे, जब केजरीवाल हटेगा।”
दिल्ली बीजेपी महासचिव कुलजीत सिंह चहल द्वारा ट्विटर पर शेयर किए गए वीडियो में लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में फँसे कुछ मजदूर अपनी व्यथा सुनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। वीडियो के शुरुआत में ही एक मजदूर कहता है, “दिल्ली अब आना ही नहीं है हमको, जब तक कि ये केजरीवाल बदल नहीं जाएगा या फिर अच्छी तरह से व्यवस्था नहीं करेगा, हम आ नहीं सकते।”
पीड़ित मजदूर ने आगे कहा, “हम खाना लेने जा रहे हैं तो पुलिस लाठीचार्ज कर रही है और खाना लेने जाते हैं तो 100-100 लोगों की लाइन लगी रहती है और खाना समाप्त हो जाता है तो कहते हैं कि जाओ कल आना। हम सुबह नौ बजे से लाइन में लगे रहते हैं और फिर भी खाना नहीं मिलता। अब क्या बच्चों को खिलाएँ और हम खाएँ।”

इतना ही नहीं मजदूर ने आरोप लगाया कि केजरीवाल गरीबों के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। बड़े-बड़े अमीर लोग अपने घरों पर (सामान) रख रहे हैं और नाम कर रहे हैं कि गरीब आदमी को खिला रहे हैं। बेवजह का नाम कमा रहे हैं, केजरीवाल कुछ काम नहीं कर रहे हैं।
मजदूर ने बेहद दुखी मन से आगे कहा, “केजरीवाल ने हम लोगों को बेहद परेशान कर दिया है, हम बहुत दुखी हैं। अब यह दुख सीमा से बाहर हो चुका है। अब हम दिल्ली तभी आएँगे कि जब पूरी तरह से लॉकडाउन हट जाएगा या फिर ये दिल्ली में केजरीवाल की जगह कोई और आ जाएगा।”
मजदूर ने बताया हमें महोबा जाना है, तीन जगहों से हमें लौटाया गया। हमें लगा केजरीवाल सहायता कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। मजदूर मर रहा है। जाने के लिए पास लेकर जाते हैं तो उसे फाड़ दिया जाता है। सफर के लिए दो-दो रोटी दी जाती है। वह भी बच्चों को देखकर। हमारे लिए तो कुछ भी नहीं है। हमारे पास पैसा भी नहीं है। पूरा एक दिन हो गया निकले हुए। केजरीवाल अगर हमारी सहायता करना चाहते हैं, तो वह हमें महोबा पहुँचाने की व्यवस्था करें।
अवलोकन करें:-
About this website

NIGAMRAJENDRA.BLOGSPOT.COM
रोहिंग्यों को संरक्षण देते अमानतुल्ला खान आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार देश में एनआरसी का विरोध किया जाता है। लेकि...
यह कोई पहली बार नहीं कि जब दिल्ली में फँसे मजदूरों ने केजरीवाल सरकार को लचर व्यवस्थाओं के लिए दुत्कारा हो। इससे पहले भी दिल्ली से बिहार के पूर्णिया के लिए पैदल निकले प्रवासी मजदूरों ने बताया था कि वह दो दिनों से भूखे हैं। कोई रोजगार नहीं है तो पैदल घर जा रहे हैं। उनका कहना था कि जब भूखे-प्यासे यहाँ मरना ही है, तो रास्ते में ही मर जाएँगे।

तेलंगाना: कुएँ से निकले बिहार और बंगाल के मजदूरों के शव

तेलंगाना
तेलंगाना में नौ मजदूरों के शव मिले (साभार: kanv न्यूज़)
तेलंगाना के वारंगल जिले से चौंकाने वाली घटना सामने आई हैं। यहाँ एक कुएँ से कल (21मई 2020) से लेकर अब तक कुल 9 प्रवासी मजदूरों के शव बरामद किए गए हैं।
खबरों के अनुसार शव वारंगल जिले के गीसुकोंडा मंडल के गोर्रेकुंटा गॉंव में कोल्डस्टोरेज के पीछे बने कुएँ में मिले हैं। सभी मृतक प्रवासी मजदूर थे। बंगाल और बिहार के रहने वाले थे और कोल्डस्टोरेज में काम करते थे।
यह घटना उस वक्त उजागर हुई जब जूट मिल के मालिक एस. भास्कर गुरुवार को गोदाम पहुँचे। उन्होंने देखा कि एक परिवार के सभी सदस्य लापता हैं। उनके मोबाइल नंबर भी स्विच ऑफ थे। लिहाजा उन्होंने तुरंत पुलिस को फोन किया। इसके बाद शाम के वक्त खोजबीन के दौरान इन लोगों की लाश कुएँ से मिली।
मकान मालिक ने बताया कि लॉकडाउन होने के बाद वे सभी उनके गोदाम के एक कमरे कमरे में रहते थे। आमदनी बंद होने के बाद वे परेशान हो गए थे और अपने-अपने गाँव जाना चाहते थे।
पुलिस ने बताया कि कुएँ से पहले पंप के जरिए पानी निकाला गया, उसके बाद शव बाहर निकाले जा सके। ये सारे शव दो परिवार के थे। छह मृतक एक ही परिवार से हैं। इनमें एक बच्चा और एक महिला भी थी।
बहरहाल गीसुगोंडा पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमजीएम हॉस्पिटल भेजा गया है। साथ ही संदिग्ध मौत का मामला दर्ज कर जाँच में जुट गई है। साथ ही स्थानीय लोगों से भी पड़ताल की जा रही है।

सोनिया गांधी के ‘रेल भाड़ा’ देने की खुली पोल, कांग्रेस के राज में ट्रकों में ठूंसे जा रहे प्रवासी मजदूर

कोरोना महामारी के संकट में भी कांग्रेस राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है। एक तरफ जहां कांग्रेस के सांसद और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी संकट के समय में भी प्रवासी मजदूरों का दुख बांटने का सड़क पर ड्रामा कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस शासित सरकार प्रवासी मजदूरों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कुछ दिन पहले ऐलान किया था कि कांग्रेस अपने खर्चे पर प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजेगी लेकिन सोनिया गांधी का यह ऐलान महज ऱाजनीतिक स्टंट बन कर रहा गया है।
कांग्रेस अध्यक्ष के ऐलान के बाद भी कांग्रेस शासित राज्यों से प्रवासी मजदूरों को ट्रकों में भेड़ बकरी की तरह ठूंसकर भेजा रहा है। महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से भारी संख्या में प्रवासी मजदूर पलायन कर रहे हैं और उनके लिए राज्य सरकार द्वारा ट्रेन की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है, हालांकि रेल मंत्री पीयूष गोयल पहले ही कह चुके हैं कि प्रवासी मजदूरों को उनके राज्य भेजने के  लिए रेलवे के पास रिजर्व ट्रेनें हैं और राज्य सरकारों द्वारा डिमांड करने पर मुहैया करा जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर सवाल उठाया कि आखिर कांग्रेस शासित सरकारें ट्रेनें क्यों नहीं चलवा रही हैं।
 
अमित मालवीय ने एक और ट्वीट कर लिखा कि कांग्रेस शासित राज्यों में, ख़ासतौर से महाराष्ट्र में, ना तो मजदूरों को खाना पानी दिया जा रहा है ना ही कोई आर्थिक मदद, उल्टे पुलिस उन्हें गाडियों में भर-भर कर यूपी-बिहार भेज रही है। इनको ट्रेनों में क्यों नहीं भेजा जा रहा है? इस तरह लोगों को भेजने से क्या संक्रमण और नहीं फैलेगा?
प्रवासी मजदूरों की मदद नहीं कर रही है कांग्रेस सरकार
अभी हाल ही में रेल मंत्री पीयूष गोयल कह चुके हैं कि प्रवासी मजदूरों को वापस उनके घर भेजने के लिए ट्रेनों की कोई दिक्कत नहीं है लेकिन कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों को अपने राज्य ले जाने में कोताही बरत रही हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य अपने नागरिकों को निकालने के लिए ट्रेनों की मांग नहीं कर रही है।  
रेल किराया वहन करने का ऐलान राजनीतिक स्टंट 
सोनिया गांधी के ऐलान के बाद गुजरात कांग्रेस द्वारा भरूच से एक ट्रेन चलाकर खर्चा उठाने का जोर शोर से प्रचार प्रसार किया गया लेकिन हकीकत में कांग्रेस से जिस ट्रेन के किराये का भुगतान किया उसमें प्रवासी मजदूरों के बजाय मुस्लिम स्टूडेंट्स को उनके राज्य भेजा गया, जो भरूच में रहकर तबलीगी जमात द्वारा संचालित तालिम हासिल कर रहे थे। यानि मजदूरों के नाम पर मुस्लिम स्टूडेंट्स को उनके बिहार और यूपी भेजने का काम किया गया है। 

मजदूरों को मुफ्त ट्रेन नहीं… सांसदों को मिलेगा 49000 रूपए महीना भत्ता : योगेंद्र यादव

योगेंद्र यादव सांसद भत्ता
झूठ फ़ैलाने में सिद्धहस्त 
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
जैसाकि सर्वविदित है कि 2014 में मोदी लहर को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी के गठन से पूर्व योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, संजय सिंह, मनीष सिसोदिया से लेकर अरविन्द केजरीवाल तक सभी तत्कालीन एवं वर्तमान कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी की राष्ट्रीय सलाहकार समिति के सदस्य थे। जिसका उल्लेख उन दिनों एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते पहले शीर्षक "कांग्रेस के गर्भ से निकली आप" और फिर अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध न छापने की धमकी के बाद शीर्षक "कांग्रेस और आप का Positive DNA" लेखों में विस्तार से लिख चुका हूँ। जनता ने देखा कि जिस तरह चुनावों में कांग्रेस को भला-बुरा कहा जाता था, तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के विरुद्ध 370 सबूत चुनावी रैलियों में दिखाए जाते थे, लेकिन सत्ता हाथ आते ही सब आरोप छूमंतर हो गए और कांग्रेस पवित्र। यानि जिस तरह कांग्रेस नितरोज जनता को भ्रमित करती रहती है, उसी भांति यही ग्रुप आज तक जनता को भ्रमित कर अपनी रोटियां सेंक रहा है। 
योगेंद्र यादव को चाहिए ये था कि 70,000 रूपए से कम हुए 49,000 रूपए को बढ़ावा बताकर जनता को गुमराह कर सरकार के विरुद्ध आक्रोश खड़ा करने की बजाए, भूतपूर्व और वर्तमान पार्षद से लेकर सांसद को मिलने वाली पेंशन को बंद करने का मुद्दा उठाना था। इस समय देश को धन की जरुरत भी है, क्योकि इस पेंशन में हर माह करोड़ों बर्बाद होता है। दूसरे यह कि जनसेवकों को वेतन एवं पेंशन क्यों? यह खुली लूट है। इसे बंद होना चाहिए।   
योगेंद्र यादव ने दावा किया है कि सरकार ने ‘चुपचाप’ सांसदों के निर्वाचन क्षेत्र भत्ते (Salary Allowance) में बढ़ोतरी कर दी है। ‘स्वराज इंडिया’ के संस्थापक ने आदेश की प्रति शेयर करते हुए ऐसा दावा किया। उन्होंने लिखा कि जब सरकार को मजदूरों के लिए मुफ्त में ट्रेनें चलानी चाहिए थी, उसने ‘चुपके से’ सांसदों को मिलने वाले निर्वाचन क्षेत्र भत्ते को बढ़ा कर 49,000 रुपए कर दिया है। ये आदेश अप्रैल 7, 2020 को आया।
हालाँकि, इस दौरान योगेंद्र यादव ये बताना भूल गए कि सांसदों के भत्ते को कितने रुपए से बढ़ा कर 49,000 रुपए किया गया है। अगर वो ये बात बता देते तो उनकी पोल खुल जाती। इसीलिए, उन्होंने आदेश की एक कॉपी शेयर कर दी और लोगों को भ्रम की स्थिति में डालने के उद्देश्य से झूठ फैलाया। योगेंद्र यादव इससे पहले भी सीएए और एनआरसी को लेकर ऐसी हरकतें कर चुके हैं। अजीबोगरीब पोल प्रेडिक्शन तो उनका पेशा ही है, जो सच ही नहीं होता।
दरअसल, सांसदों को पहले निर्वाचन क्षेत्र भत्ता (Salary Allowance) के रूप में 70,000 रुपए मिलते थे, जिसमें 30% की कटौती की गई। कटौती के बाद उनका भत्ता 21,000 रुपए कम हो गया और अब ये 49,000 रुपए प्रति महीने आएगा। संसद की जॉइंट कमिटी ने ये सिफारिश की थी, जिसे राज्यसभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्वीकार कर लिया था।

इस आदेश को ‘Members of Parliament (Constituency Allowance) Amendment Rules, 2020’ नाम दिया गया है। अब आते हैं इससे पहले के भी एक फ़ैसले पर। कंस्टिटूएंसी अलाउंस से पहले MPLADS फण्ड (सांसद निधि) को भी सस्पेंड कर दिया गया था। अगले दो साल तक ये सस्पेंड रहेगा। यानी 2020-21 और 2021-22 में सांसदों को सांसद निधि की रकम नहीं दी जाएगी। ये रकम कोविड-19 से लड़ने में ख़र्च होगी। कई लोगों द्वारा ध्यान दिलाए जाने के बावजूद योगेंद्र यादव ने अपना ट्वीट डिलीट नहीं किया।
इससे सरकार के पास 7900 करोड़ रुपए बचेंगे, जिसे कंसोलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया में डाला जाएगा। ये रकम कोरोना आपदा के बीच जनता की भलाई के लिए ख़र्च होगी। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और सभी राज्यों के राज्यपालों से स्वेच्छा से ‘पे कट’ का फ़ैसला लिया और इसे सामाजिक दायित्व बताया। एक ख़बर के अनुसार, सरकार हर महीने एक सांसद पर औसतन 2.7 लाख रुपए ख़र्च करती है। संसद में फिलहाल कुल 795 सदस्य हैं, जिनमें से 545 लोकसभा में हैं और 250 राज्यसभा में।
फ़रवरी 2020 में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ एक इवेंट में मंच साझा करते हुए मंच से ही योगेंद्र यादव ने यह कह सनसनी फैला दी थी कि, “भारत हिंदी, हिन्दू , हिन्दुस्तान से नहीं बनेगा, हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान देश को तोड़ देगा… आज यह करने की कोशिश हो रही है।” राम मंदिर पर फ़ैसले को लेकर उन्होंने कहा था कि राम मंदिर कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों के साथ भारत में सेक्युलर पॉलिटिक्स की परीक्षा होगा। 

श्रमिक एक्सप्रेस द्वारा केरल से झारखण्ड गए 1129 मजदूरों से वसूला गया किराया: कांग्रेस और CPM ने साधी चुप्पी

प्रवासी मजदूर ट्रेन किराया
प्रवासी मजदूरों को श्रमिक ट्रेन से पहुँचाया जा रहा घर
(फोटो साभार: The Week)
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
देश में इन दिनों प्रवासी मजदूरों से ट्रेन का किराया वलूसने के मुद्दे पर राजनीति गर्माई हुई है। प्रवासी मजदूरों से किराया वसूलने के मुद्दे पर चल रही राजनीति के बीच रेलवे ने साफ किया है कि उसने प्रवासी मजदूरों से कोई किराया नहीं वसूला है। इस संबंध में राज्य व केंद्र सरकार, रेल मंत्रालय के साथ मिलकर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जानकारी दी थी कि किराया भी प्रदेश सरकार वहन करेगी।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि अधिकांश राज्यों से राज्य सरकारों ने सरकारी फंड से प्रवासी मजदूरों के किराए का भुगतान किया है, जबकि महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान की सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके पैतृक राज्य पहुँचाने के लिए उनसे किराया वसूला है।
पीटीआई ने बताया कि महाराष्ट्र के राज्य मंत्री नितिन राउत ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर राज्य से जाने वाले प्रवासियों की यात्रा लागत वहन करने का आग्रह किया है। उन्होंने रविवार (मई 3, 2020) को रेल मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि प्रवासियों के परिवहन का खर्च रेलवे वहन करे।
कांग्रेस और इसकी समर्थक सरकारें ही वसूल रही किराया 
उल्लेखनीय है कि इन तीनों राज्यों- महाराष्ट्र, राजस्थान और केरल में से दो राज्यों में कांग्रेस सरकार में है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, जबकि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार है, जिसमें कांग्रेस सहयोगी पार्टी है। बता दें कि इससे पहले, यह कांग्रेस पार्टी ही थ, जिसने प्रवासी श्रमिकों के रेलवे टिकटों की लागत वहन करने का वादा किया था, जबकि इसकी अपनी राज्य सरकारें ही प्रवासियों से रेलवे किराए वसूल रही हैं।
सोमवार (मई 4, 2020) को कई विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस पार्टी द्वारा इस अफवाह को हवा दी गई कि रेलवे प्रवासी मजदूरों से किराया वसूल रहा है। इतना ही नहीं, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष ने तो यहाँ तक कह दिया कि उनकी पार्टी श्रमिकों का रेलवे किराया वहन करेगी। वो किराया, जो पहले से ही मुफ्त है। वहीं महाराष्ट्र के मुंबई में तो उद्धव सरकार प्रवासी मजदूरों से मेडिकल सर्टिफिकेट के 200 रुपए वसूल रही है।
केंद्र सरकार ने मजदूरों को वापस घर ले जाने के लिए स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है। भाजपा ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार उनके किराए का 85% वहन करेगी और बाकी राज्य सरकार को वहन करना है। श्रमिक एक्सप्रेस से केरल से झारखण्ड लौटे मजदूरों ने बताया कि उनसे 875 रुपए बतौर किराया वसूले गए। मजदूरों ने बताया कि उनके रूम पर जाकर किराया वसूला गया। ये मजदूर केरल से गिरिडीह पहुँचे थे।

भारतीय रेलवे ने अपनी नोटिस में स्पष्ट कहा है कि रेलवे टिकट नहीं बेच रही है और कोई भी आकर टिकट ख़रीद नहीं सकता। हर राज्य द्वारा दूसरे राज्य में तैनात नोडल अधिकारी की ये जिम्मेदारी है कि वो तय करे कि किन यात्रियों को लेकर जाना है और फिर अधिकारी ही उन्हें स्टेशन तक लाने की व्यवस्था करेंगे। मजदूरों ने कहा कि उनके कमरे पर जाकर किराया वसूला गया। जब रेलवे टिकट ही नहीं काट रही तो उसके अधिकारी मजदूरों के कमरे पर तो जाएँगे ही नहीं। तो फिर गया कौन? किसने लिया किराया?
केरल से झारखण्ड गए यात्रियों के मामले में भी वहाँ झारखण्ड के नोडल अधिकारी ने उन 1129 मजदूरों की सूची बनाई होगी, जो झारखण्ड के 22 जिलों के थे। फिर उन्हें दोनों राज्यों के अधिकारियों की मदद से स्टेशन लाया गया होगा। रेलवे को तो सिर्फ़ इससे मतलब है कि आने वाले यात्री राज्य सरकारों द्वारा लाए गए हैं या नहीं, फिर केंद्र सरकार के स्पष्टीकरण के बावजूद किराए के रूप में इतने रकम किस ने वसूल लिए? जाहिर है, राज्य सरकार के अधिकारियों या स्थानीय लालची नेताओं ने ही ऐसा किया होगा। इसकी जाँच होनी चाहिए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में भी स्पष्ट लिखा हुआ है कि किसी भी रेलवे स्टेशन पर किसी प्रकार का टिकट नहीं बेचा जाएगा। नियमानुसार, रेलवे टिकट प्रिंट करेगा और इसके लिए वो राज्य उसे बताएगा, जहाँ से ट्रेन चालू हो रही है। उस राज्य को ये सूची वो राज्य देगा, जहाँ ये मजदूर जाने वाले हैं। इसके बाद स्थानीय राज्य सरकार ही टिकट को मजदूरों में बाँटेगी। स्पष्ट है कि जो भी हुआ है, वो राज्य सरकार के अधिकारियों या स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से हुआ है।
कांग्रेस पार्टी इस मामले में केंद्र सरकार पर हमलावर है और मीडिया में कहा जा रहा है कि ये ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ 2.0 है, जिसके तहत सोनिया गाँधी ने इस मामले को उठाया है। लेकिन झारखण्ड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में कांग्रेस भी गठबंधन सरकार का हिस्सा है, केरल में वामपंथियों की सरकार है। ऐसे में पार्टी को इन दोनों सरकारों से पूछ कर स्पष्ट करना चाहिए कि मजदूरों से किराया किसने वसूला?

केंद्र सरकार ने कहा है कि हर एक श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन के लिए रेलवे द्वारा राज्य सरकारों को 1200 टिकट दिए जा रहे हैं, इसके बाद ये उनकी जिम्मेदारी है कि वो अपने हिस्से की रकम का भुगतान करें और यात्रियों को चिह्नित कर उन्हें स्टेशन तक लेकर आएँ।
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई वियजन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के स्पष्ट कह चुके हैं कि उनकी सरकार मजदूरों का किराया वहन नहीं कर रही है। महाराष्ट्र, राजस्थान और केरल की सरकारें इन मजदूरों का किराया नहीं दे रही है। एक जगह कांग्रेस की सरकार है तो एक जगह सीपीआई-सीपीएम की। राजस्थान में तो कॉन्ग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में कांग्रेस केंद्र को जिस काम के लिए कह रही है (और जो हो चुका है), वही बात अपनी ही सरकारों से क्यों नहीं मनवा पा रही है? क्या नियम अलग-अलग हैं?