

ये कहते-कहते राफिया की आँखें नम हो जाती है। वो कहती हैं कि इतना करने के बाद भी जब सामने से ऐसी प्रतिक्रिया आती है तो बहुत दुख होता है। ये बातें उन्होंने फेसबुक लाइव करके भी कहा कि वो डेढ़ घंटे से गेट के बाहर खड़ी थी, लेकिन महिला सुरक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली झारखंड सरकार के राज में उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें कुछ होता है तो इसकी जिम्मेदार झारखंड सरकार होगी।
राफिया नाज इसको लेकर मुख्यमंत्री, SSP, DIG सबसे गुहार लगा चुकी है। उन्होंने मुख्यमंत्री जन संवाद केंद्र पर भी मेल किया। SSP, DIG सभी को सूचित किया मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। ट्विटर पर भी उनकी समस्या पर ये प्रतिक्रिया देकर प्रशासन निश्चिंत हो जाती है कि कार्रवाई की जाएगी। राफिया कहती है कि वो तो ये देखकर खुश हो जाती थी, मगर फिर बाद में उनके पास हताश होने के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचता है। राफिया ने मंगलवार को SSP और DIG को लिखित में पत्र देकर अपनी समस्याओं से अवगत करवाया और तत्काल सुरक्षा देने की गुहार लगाई। इस दौरान उन्होंने अपने साथ घटी घटनाओं की कॉपी भी उपलब्ध करवाई।
दरअसल, लॉकडाउन में राहत मिलने के बाद अब राफिया को अनाथ बच्चों को योगा सिखाने के लिए जाना है और सितंबर 2019 में पुलिस का तरफ से उन्हें कहा गया था कि जब भी वो घर से बाहर निकले वो उन्हें सूचित करें, ताकि टाईगर मोबाइल और पीसीआर के जरिए उन्हें सुरक्षा मुहैया कराया जा सके। अब जब राफिया अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगा रही है तो कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है। राफिया कहती हैं, “तो क्या थाने की तरफ से भेजा गया वो पत्र महज एक औपरचारिकता थी?”
राफिया ने कहा, “मैं धमकियों से नहीं डरती, ये तो मैं 3-4 सालों से झेलती आ रही हूँ, मगर अपनी जान तो सभी को प्यारा होता है। खुद से ज्यादा लोगों को अपने परिवार की चिंता होती है। मेरे भी मम्मी, पापा, भाई, बहन हैं, उन्हें भी तो वो लोग नुकसान पहुँचा सकते हैंं। आज जब मैं चीख-चीख कर कह रही हूँ कि मेरी जान को खतरा है तो कोई नहीं सुन रहा, कल को यदि मुझे कुछ हो जाता है, तो फिर ये प्रशासन जागकर क्या करेगी? क्या फायदा ऐसे जागने से? मैं तो लौट कर नहीं आऊँगी न? ये लोग मुझे मरवाकर ही छोड़ेंगे। जब मैं मरुँगी तो सबका नाम लिखकर जाऊँगी।”
जब राफिया सुरक्षा की गुहार लगाते-लगाते हर तरफ से थक गई तो उन्होंने झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास के सामने अपनी समस्या रखी, क्योंकि रघुवर दास ने ही अपने कार्यकाल के दौरान 2017 में राफिया की सुरक्षा का संज्ञान लिया था और उन्हें 24 घंटे सुरक्षा मुहैया करवाया गया था। उनके घर के बाहर रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) और सीआरपीएफ के जवान तैनात रहते थे। मगर पता नहीं, मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह में उसे हटा लिया गया।
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राफिया नाज द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिखा गया पत्र |


उल्लेखनीय है कि झारखंड में ‘Yoga beyond religion’ अभियान का अहम हिस्सा बन चुकीं राफिया आज न केवल स्कूली बच्चों और विभिन्न संस्थानों में जाकर लोगों को नि:शुल्क योग का प्रशिक्षण देती हैं, बल्कि योग का एक स्कूल भी चलाती हैं। इसमें वो गरीब और अनाथ बच्चों को मुफ्त में योग सिखाती हैं और अब तक कई लोगों को उन्होंने योग सिखाकर योग शिक्षक के रुप में नौकरी भी उपलब्ध करवाई है।
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राफिया द्वारा दर्ज करवाई गई ऑनलाइन FIR की कॉपी |

राफिया कहती है कि लॉकडाउन होने की वजह से उन्होंने ऑनलाइन FIR भी करवाया। मगर इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। आरोपित के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसमें आरोपित का नाम नजीब राजा बताया गया है, जिसने उन्हें फेसबुक पर गंदी गालियाँ दी।
योग की वजह से ऑनलाइन फतवा
इस बाबत राफिया नाज से बात की। हमने उनसे पूछा कि ये सब कब से हो रहा है और क्यों हो रहा है? तो वो कहती हैं कि अब तो ये सब उनके लिए सामान्य दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। वो सालों से इन कट्टरपंथियों के गाली-धमकी और हमले को झेल रही हैं। वो कहती हैं कि 8 नवंबर 2017 को तो जी न्यूज पर ऑनएयर कहा गया था कि राफिया नाज के जनाजे में मुस्लिम नमाज नहीं पढ़ेंगे। इसके एक दिन बाद ही, यानी कि 9 नवंबर 2017 को उसके घर पर पत्थरबाजी की गई।
वो कहती हैं कि योगा सिखाने की वजह से उन्हें भद्दी-भद्दी गंदी गालियाँ दी गई, उन्हें जान से मारने की कोशिश की गई। ये पूछने पर वो लोग ऐसा क्यों कर रहे तो वो कहती हैं कि उनका कहना है कि मैं एक मुस्लिम होकर योग कैसे सिखा सकती हूँ। राफिया कहती हैं, “मेरे ऊपर ना सिर्फ कमेंट किए जाते हैं बल्कि मुझे मारा भी गया है। 20 जून 2016 को मेरे ऊपर शारीरिक हमला किया गया। उस समय भी रोजा चल रहा था और मुझे बहुत बुरी तरह से मारा गया। मैं सड़क पर चलकर आ रही होती थी, तो मेरे ऊपर गमला फेंक दिया जाता था, कभी दुपट्टा खींचकर कोई चला जाता। एक बार रॉड से मेरे कमर पर मारा गया। बहुत कुछ हुआ है मेरे साथ।”
19 साल की उम्र में जान से मारने के लिए किया गया था अगवा
19 साल की उम्र में राफिया को जान से मारने के लिए उठवाया भी गया था। रात भर घर से बाहर रही थी। वो कहती हैं कि जब उन्हें स्कूटी से अगवा किया जा रहा था, तो रास्ते में गिर गई थी और फिर भाग कर रात भर बाहर ही छुपी रही। इधर ये गुंडें उनको ढूँढने के लिए उनके घर आए थे। इसी तरह एक बार धमकी दी गई कि उन्हें 48 घंटे के अंदर मार दिया जाएगा। एक बार उनके ऊपर इस तरह से रॉड से हमला किया गया कि वो एक साल तक जमीन पर सोईं। स्थिति ऐसी थी कि वो बेड पर बैठ भी नहीं पाती थी।
राफिया कहती हैं कि जितना कुछ उन्होंने सहा है, उनकी जगह पर कोई और होती तो कब का सुसाइड कर चुकी होती। वो अभी इस तरह से हमसे हँसकर बात नहीं कर रही होती। वो बताती हैं कि उनकी न्यूड फोटो बनाई गई। वो कहती हैं, “दूसरी लड़की की बॉडी में मेरा चेहरा लगाकर सर्कुलेट किया गया। वो कहती हैं कि उन्होंने उसकी आईडी, यूआरएल, लिंक वगैरह सब दिए, लेकिन आईडी ब्लॉक नहीं हुआ।”
वो आगे कहती हैं, “जब मैं पुलिस स्टेशन जाती थी तो वहाँ भी मुझे गंदी गालियाँ दी जाती थी। उस समय काफी लोग सलाह दे रहे थे कि सुसाइड कर लो। यही इसका सबसे अच्छा और सरल समाधान है। लोगों ने तो और भी बहुत कुछ कहा, जो कि मैं आपसे कह नहीं सकती। जब मै पुलिस स्टेशन में FIR करवाने जाती थी तो मुझसे कहा जात था, ‘रं** मेरे इलाके का माहौल बिगाड़ रही है साली तू।’ इसके बावजूद भी मैं जिद पर अड़ी रहती थी कि जब तक मुझे FIR की रसीद नहीं दी जाएगी, मैं नहीं जाऊँगी।”
राफिया कहती हैं, “परिवार का मेरा सपोर्ट करने की वजह से उन्हें गंदी गालियाँ दी जाती है। उनसे कहा जाता है कि बेटी को कितने में बेचा है। मैं रास्ते पर चलती हूँ तो मुझसे कहा जाता है कि ये तो RSS की रखैल है। दोस्त के साथ जाती हूँ तो कहा जात है कि देखो रं** की बहन जा रही है। इनकी नजर में मेरा गुनाह एक ही है- योग। और योग मेरा जिद है। जिद इसलिए है, क्योंकि ये भारतीय संस्कृति है और इसे फॉलो करने में हमें शर्म नहीं आनी चाहिए। अगर इन्होंने प्यार से बोला होता तो शायद मैं इसे छोड़ देती, लेकिन अब नहीं। अब तो योगा मैं मरते दम तक करती रहूँगी।”
राँची की राफिया नाज अपने साथ हुए एक हादसे का जिक्र करती हुई कहती हैं, “एक बार मेरे से कहा गया कि खेलगाँव में प्रोग्राम है, आ जाओ। अगर आज नहीं आओगी तो फिर तुम्हें आगे से कोई प्रोग्राम नहीं करने दिया जाएगा। मैं हड़बड़ाकर गई। वहाँ जाकर देखती हूँ कि कोई प्रोग्राम नहीं था। कोई भी नहीं था वहाँ पर। फिर मैं वापस घर आई। रास्ते में एक ट्रक ने मेरी गाड़ी को इतनी जोर से टक्कर मारा कि गेट के टुकड़े-टुकड़े हो गए। उस समय मेरे साथ कार के अंदर एक सरकारी सिपाही थे। हमलोगों ने पुलिस को फोन किया कि सर यहाँ पर मेरे साथ ऐसा-ऐसा हुआ है तो जवाब मिलता है कि कहाँ से पकड़ेंगे। आधे घंटे से ज्यादा हो गया। अब तक तो वो कहाँ से कहाँ निकल गया होगा। कहाँ से पकड़ेंगे? फिर जब मैंने कहा कि सीसीटीवी फुटेज चेक कीजिए, उसमें ट्रक का नंबर दिख जाएगा, तो कहते हैं कि इलाके का पूरा सीसीटीवी फुटेज खराब है।”
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