डीएस बिंद्रा के ‘लंगर’ से क्विंट की मोहब्बतें

द क्विंट, डीएस बिंद्रा
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों को लेकर मीडिया का एक धड़ा शुरुआत से ही इन कोशिशों में जुटा हुआ है कि किसी तरह इसे मुस्लिम विरोधी दंगा साबित किया जाए। इसी क्रम में मीडिया गिरोह न केवल मुस्लिम समुदाय के अपराधों को छिपाने का प्रयास कर रहा है, बल्कि दंगों को उकसाने वाले लोगों को निर्दोष साबित करने की भी कोशिश कर रहा है।
ताजा कारनामा द क्विंट ने किया है। द क्विंट ने अपने लेख के जरिए डीएस बिंद्रा नाम के उस आरोपित को बचाने का प्रयास किया है, जिस पर बकायदा चार्जशीट में आरोप लगा है कि उसने उन दंगों को भड़काने का काम किया, जिसमें कॉन्स्टेबल रतनलाल की जान गई थी।
दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की चार्जशीट पर अपनी हालिया एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में हमने आपको बताया था कि हलफनामे में क्या आरोप लगाए गए हैं। चार्जशीट में लिखा था कि षड्यंत्रकारी ये बात पहले से जानते थे कि दंगे हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने सभी प्रदर्शनकारियों को हथियार से लैस रहने को कहा था।
चार्जशीट में कहा गया, “23 फरवरी को संयोजकों, षड्यंत्रकारियों, दंगाइयों की चांद बाग में एक बैठक हुई। इस बैठक में उन्हें लोहे की रॉड, डंडे, पेट्रोल बम आदि के साथ तैयार रहने को कहा गया। अगले दिन 24 तारीख को 1 बजे, प्लान के मुताबिक दंगे शुरू हुए। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला किया। कई पुलिस वाले उस हमले में घायल हुए। कॉन्स्टेबल रतनलाल इसमें मारे गए।”
दिल्ली के हालातों को देखते हुए घटना से पहले बीट अधिकारियों को नियमित रूप से इलाके में तैनात किया गया था, ताकि कानून-व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके। रतनलाल की हत्या के बाद, इन्हीं दो बीट अधिकारियों से पूछताछ हुई और उनके बयानों से तथ्यों का पता लगाया गया। उन्होंने खुलासा किया कि सलीम खान, सलीम मुन्ना, डीएस बिंद्रा, सुलेमान सिद्दीकी, अयूब, अतहर, शादाब, उपासना, रविशंद अन्य लोग आयोजक थे।
The Quint article shielding DS Bindraलेकिन, ऑपइंडिया के रिपोर्ट करने के बाद, द क्विंट ने दिल्ली क्राइम ब्रांच द्वारा दायर चार्जशीट पर न केवल रिपोर्ट की, बल्कि डीएस बिंद्रा को बेक़सूर साबित करने की कोशिश की।
क्विंट ने अपने आर्टिकल की हेडलाइन दी- “क्या लंगर लगाना जुर्म है?: डीएस बिंद्रा का नाम दंगों से जोड़ा जा रहा है।” अपने इस लेख में द क्विंट ने केवल उन्हीं लोगों की बात पेश की है जिन्होंने डीएस बिंद्रा की भूमिका केवल लंगर बाँटने या फिर प्रोटेस्ट आयोजित करने तक बताई। लेकिन यहाँ उन बिंदुओं को बिलकुल दरकिनार कर दिया गया जिसके कारण डीएस बिंद्रा का नाम चार्जशीट में है।
उदहारण के लिए लेख में नज्म उल हसन का बयान जोड़ा गया। उसने बताया कि डीएस बिंद्रा ने स्थानीय लोगों से सीएए के ख़िलाफ प्रदर्शन का अनुरोध किया था और कहा, “मैं लंगर और मेडिकल कैंप लगाऊँगा। पूरा सिख समुदाय आपके साथ है। अगर आप लोग आगे नहीं आओगे तो आप लोगों की किस्मत भी वैसी ही हो जाएगी जैसे 1984 में सिखों की हुई थी।”
दिलचस्प बात ये है कि इस लेख में द क्विंट ने ऑपइंडिया का नाम भी शामिल किया और कहा कि हमने अपनी रिपोर्ट में केवल डीएस बिंद्रा पर लगे आरोपों के बारे में बात की है। साथ ही यह बताया है कि बिंद्रा AIMIM का सदस्य है, जबकि बिंद्रा के अनुसार तो उनका कनेक्शन किसी राजनैतिक पार्टी से है ही नहीं।
ऑपइंडिया ने जिस चार्जशीट के संबंध में रिपोर्ट की थी वह 1100 पन्नों की है और इसका एक हिस्सा ऑपइंडिया द्वारा एक्सेस किया गया था। शायद ये बात तो द क्विंट के पत्रकार भी जानते ही होंगे कि किसी भी लंबी चार्जशीट के बारे में एक बार में रिपोर्ट करना संभव नहीं है। हाँ, ये बात और है कि अगर वह हिस्सों में बँटी है, तो उसे आसानी से समझा जा सकता है।
क्विंट ने डीएस बिंद्रा की टिप्पणी को आपने आर्टिकल में जोड़ा। इसमें बिंद्रा ने आरोप लगाया था कि ऑपइंडिया ने उनसे बात करने की कोशिश नहीं की। जबकि आरोपों पर सफाई देना उनका अधिकार है। यहाँ बता दें कि हमारी रिपोर्ट दिल्ली क्राइम ब्रांच की एफआईआर पर थी। अगर, बिंद्रा अपने आप को डिफेंड करना चाहते ही हैं तो उन्हें पुलिस के सामने या फिर कोर्ट के सामने खुद के बचाव में बोलना चाहिए। चार्जशीट पर रिपोर्ट करते हुए हमें क्या आवश्यकता कि हम आरोपित से उसका पक्ष जानें। हमने केवल वह बातें लिखीं थी, जो चार्जशीट में कही गई।
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द क्विंट की ऐसी हरकत ज्यादा हैरान करने वाली नहीं है। लेकिन इन प्रयासों में यह गौर करने वाली बात जरूर है कि पूरे वामपंथी मीडिया ने क्यों चार्जशीट पर रिपोर्ट करते हुए इस बात का जिक्र तक नहीं किया कि इसमें डीएस बिंद्रा का नाम भी शामिल है।
प्रदर्शन के दौरान लंबे समय से डीएस बिंद्रा की तारीफों के पुलिंदे मीडिया में बाँधे जा रहे थे। मगर, चार्जशीट से संबंधित सभी जानकारी होने के बाद भी इस पूरे लेफ्ट इकोसिस्टम ने अपने पाठकों के सामने सत्य बताने की कोशिश नहीं की। इसका मतलब साफ है कि वह केवल दंगाइयों को, षड्यंत्रकारियों को बचाने का प्रयास कर रहे।

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