लगता है, कांग्रेस और घोटालों का चोली-दामन का साथ है, एक घोटाले से मुक्ति मिल नहीं पाती, दूसरा घोटाला सिर उठा लेता है। गनीमत है, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तो कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के विरुद्ध 370 घोटालों का पुलंदा ऐसे लिए घूम रहे थे, मानो सत्ता हाथ आते ही सारे घोटाले उड़नछू हो गए। केजरीवाल ने दिल्लीवालों को मुफ्त रेवड़ियों बांटने के चक्कर में राष्ट्र धर्म नहीं निभाया, क्योकि शायद स्वयं घोटाले करने सत्ता में आए हैं। इनके घोटालों की पोटली तो सत्ता परिवर्तन होने पर ही खुलेगी।
कांग्रेस काल का एक और घोटाला सामने आया है। अंग्रेजी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ ने कांग्रेस कार्यकाल में हुए एक और काले कारनामे की पोल खोली है। इसके साथ ही एक बार फिर गांधी परिवार का नाम उभरा है। टाइम्स नाउ रिपोर्ट के अनुसार मुंबई के बांद्रा ईस्ट इलाके में गांधी परिवार की ओर से खरीदी गई जमीन में काफी गड़बड़ी है।
सन 1983 में यह जमीन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को दलितों के हॉस्टल बनाने के लिए मिली थी। दलितों के हॉस्टल के लिए आरक्षित 3478 वर्ग मीटर को कमर्शियल प्रॉपर्टी में कन्वर्ट कर दिया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कि 20,000 वर्गफीट पर ही निर्माण करने की अनुमति थी, लेकिन कांग्रेस ने 80,000 वर्ग फुट जमीन पर निर्माण कर लिया।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जहां सरकार को कमर्शियल प्रॉपर्टी से 50 प्रतिशत राजस्व प्राप्त होता है, वहीं इस प्रॉपर्टी से सिर्फ 30 प्रतिशत मिला।
टाइम्स नाउ के अनुसार मुंबई के पॉश बांद्रा ईस्ट इलाके की इस जमीन की कीमत सन 2017 के हिसाब से 262 करोड़ रुपए होती है।
देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस और गांधी परिवार ने 60 सालों तक देश को जमकर लूटा है। कांग्रेस की सरकारों के तहत हुए घोटालों की सूची इतनी लंबी है कि कभी खत्म ही नहीं होती। सबसे पहला घोटाला जीप घोटाला था, लेकिन उसके बाद से कांग्रेस और इसके नेताओं द्वारा किये घोटालों की सूची पूरी होने को ही नहीं आ रहे। अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम, बोफोर्स घोटाला, नेशनल हेराल्ड घोटाला, जमीन घोटाला… न जाने कितने ऐसे स्कैम हैं, जो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े हैं।
नेशनल हेराल्ड स्कैंडल
गांधी परिवार पर अवैध रूप से नेशनल हेराल्ड की मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की संपत्ति हड़पने का आरोप है। वर्ष 1938 में कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई थी। यह कंपनी नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज नाम से तीन अखबार प्रकाशित करती थी। एक अप्रैल, 2008 को ये अखबार बंद हो गए। मार्च 2011 में सोनिया और राहुल गांधी ने ‘यंग इंडिया लिमिटेड’ नाम की कंपनी खोली और एजेएल को 90 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन दिया। एजेएल यंग इंडिया कंपनी को लोन नहीं चुका पाई। इस सौदे की वजह से सोनिया और राहुल गांधी की कंपनी यंग इंडिया को एजेएल की संपत्ति का मालिकाना हक मिल गया। इस कंपनी में मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के 12-12 प्रतिशत शेयर हैं, जबकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के 76 प्रतिशत शेयर हैं। गांधी परिवार पर अवैध रूप से इस संपत्ति का अधिग्रहण करने के लिए पार्टी फंड का इस्तेमाल करने का आरोप लगा। गांधी खानदान के मौजूदा दोनों नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड केस में कोर्ट से जमानत पर हैं। इन दोनों ने अपनी सरकारों के जरिए देश के विभिन्न शहरों में नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र के नाम पर कई एकड़ जमीन आवंटित करा ली। इसकी प्रॉपर्टी की कीमत करीब 5 हजार करोड़ है।
अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला
वर्ष 2013 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर इटली की चॉपर कंपनी ‘अगस्ता वेस्टलैंड’ से कमीशन लेने के आरोप लगे। दरअसल अगस्ता वेस्टलैंड से भारत को 36 अरब रुपये के सौदे के तहत 12 हेलिकॉप्टर ख़रीदने थे, जिसमें 360 करोड़ रुपए की रिश्वतखोरी की बात सामने आई। इतालवी कोर्ट ने माना कि इस मामले में भारतीय अफसरों और राजनेताओं को 15 मिलियन डॉलर रिश्वत दी गई। इतालवी कोर्ट ने एक नोट में इशारा किया था कि सोनिया गांधी सौदे में पीछे से अहम भूमिका निभा रही थीं। कोर्ट ने 225 पेज के फैसले में चार बार सोनिया का जिक्र किया।
बोफोर्स घोटाला
बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपये के होवित्जर तोप का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत दी थी। आरोप है कि इसमें दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं को को स्वीडन की तोप बनाने वाली कंपनी बोफ़ोर्स ने कमीशन के बतौर 64 करोड़ रुपये दिये थे। इस सौदे में गांधी परिवार के करीबी और इतालवी कारोबारी ओतावियो क्वात्रोकी के अर्जेंटीना चले जाने पर सोनिया गांधी पर भी आरोप लगे।
वाड्रा-डीएलएफ घोटाला
वर्ष 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ घोटाले का आरोप लगा। उनपर शिकोहपुर गांव में कम दाम पर जमीन खरीदकर भारी मुनाफे में रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को बेचने का आरोप लगा। रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ से 65 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन लेने का आरोप लगा। बिना ब्याज पैसे की अदायगी के पीछे कंपनी को राजनीतिक लाभ पहुंचाना मूल उद्देश्य था। यह तथ्य भी सामने आया है कि केंद्र में कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा ने देश के कई और हिस्सों में भी बेहद कम कीमतों पर जमीनें खरीदीं। इस मामले में हाल ही में हरियाणा सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
बीकानेर में जमीन घोटाले का मामला
राजस्थान के बीकानेर में हुए जमीन घोटालों में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों के जमीन सौदे भी शामिल हैं। अंग्रेजी न्यूज पोर्टल इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार गलत जमीन सौदों के सिलसिले में 18 एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें से 4 वाड्रा की कंपनियों से जुड़े हैं। ये सारी एफआईआर 1400 बीघा जमीन जाली नामों से खरीदे जाने से जुड़ी हैं, जिनमें से 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनियों के लिए जाली नामों से खरीदे जाने के आरोप हैं।
मारुति घोटाला
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी को यात्री कार बनाने का लाइसेंस मिला था। वर्ष 1973 में सोनिया गांधी को मारुति टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लि. का एमडी बनाया गया, हालांकि सोनिया के पास इसके लिए जरूरी तकनीकी योग्यता नहीं थी। बताया जा रहा है कि कंपनी को सरकार की ओर से टैक्स, फंड और कई छूटें मिलीं थी।
मूंदड़ा स्कैंडल
कलकत्ता के उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे घोटाले के तौर पर याद किया जाता है। इसके छींटें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर भी पड़े। दरअसल 1957 में मूंदड़ा ने एलआईसी के माध्यम से अपनी छह कंपनियों में 12 करोड़ 40 लाख रुपये का निवेश कराया था। यह निवेश सरकारी दबाव में एलआईसी की इंवेस्टमेंट कमेटी की अनदेखी करके किया गया। तब तक एलआईसी को पता चला उसे कई करोड़ का नुक़सान हो चुका था। इस केस को फिरोज गांधी ने उजागर किया, जिसे नेहरू ख़ामोशी से निपटाना चाहते थे। उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को बचाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें अंतत: पद छोड़ना पड़ा।
अवलोकन करें:-
कांग्रेस काल का एक और घोटाला सामने आया है। अंग्रेजी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ ने कांग्रेस कार्यकाल में हुए एक और काले कारनामे की पोल खोली है। इसके साथ ही एक बार फिर गांधी परिवार का नाम उभरा है। टाइम्स नाउ रिपोर्ट के अनुसार मुंबई के बांद्रा ईस्ट इलाके में गांधी परिवार की ओर से खरीदी गई जमीन में काफी गड़बड़ी है।
सन 1983 में यह जमीन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को दलितों के हॉस्टल बनाने के लिए मिली थी। दलितों के हॉस्टल के लिए आरक्षित 3478 वर्ग मीटर को कमर्शियल प्रॉपर्टी में कन्वर्ट कर दिया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कि 20,000 वर्गफीट पर ही निर्माण करने की अनुमति थी, लेकिन कांग्रेस ने 80,000 वर्ग फुट जमीन पर निर्माण कर लिया।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जहां सरकार को कमर्शियल प्रॉपर्टी से 50 प्रतिशत राजस्व प्राप्त होता है, वहीं इस प्रॉपर्टी से सिर्फ 30 प्रतिशत मिला।
TIMES NOW SUPER #EXCLUSIVE.— TIMES NOW (@TimesNow) July 14, 2020
Gandhis received the 'commercial land' through Associated Journals Ltd which was actually the land 'reserved' for construction of an SC/ST hostel. No tender process was followed when this land was given.
Madhavdas, Bhavatosh & Kajal with details. pic.twitter.com/myaNciYmxO
#EXCLUSIVE | AJL received 'reserved land' which was meant for construction of an SC/ST hostel in 1983. This land was then changed to 'commercial land' where permission was given for construction of an 80K sq ft building, 4 times the permissible limit.— TIMES NOW (@TimesNow) July 14, 2020
Details: Poonam & Bhavatosh pic.twitter.com/QX9JLuIjr4
Details of 'concessions to parivar'.— TIMES NOW (@TimesNow) July 14, 2020
•Land for SC/ST hostel given away to AJL at throwaway prices
•Govt revenue share down 30% from 50%
•Construction on 80K sq ft land
•'Reserved' land changed to 'commercial'
Kajal, Samia & Madhavdas G with details. pic.twitter.com/Jhuo3L5Y2t
The massive land is located in Mumbai's plush Bandra East locality and according to a 2017 estimate, it is worth a staggering Rs 262 crore.https://t.co/4YbIUkjBYC— TIMES NOW (@TimesNow) July 14, 2020
टाइम्स नाउ के अनुसार मुंबई के पॉश बांद्रा ईस्ट इलाके की इस जमीन की कीमत सन 2017 के हिसाब से 262 करोड़ रुपए होती है।
देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस और गांधी परिवार ने 60 सालों तक देश को जमकर लूटा है। कांग्रेस की सरकारों के तहत हुए घोटालों की सूची इतनी लंबी है कि कभी खत्म ही नहीं होती। सबसे पहला घोटाला जीप घोटाला था, लेकिन उसके बाद से कांग्रेस और इसके नेताओं द्वारा किये घोटालों की सूची पूरी होने को ही नहीं आ रहे। अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम, बोफोर्स घोटाला, नेशनल हेराल्ड घोटाला, जमीन घोटाला… न जाने कितने ऐसे स्कैम हैं, जो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े हैं।

गांधी परिवार पर अवैध रूप से नेशनल हेराल्ड की मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की संपत्ति हड़पने का आरोप है। वर्ष 1938 में कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई थी। यह कंपनी नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज नाम से तीन अखबार प्रकाशित करती थी। एक अप्रैल, 2008 को ये अखबार बंद हो गए। मार्च 2011 में सोनिया और राहुल गांधी ने ‘यंग इंडिया लिमिटेड’ नाम की कंपनी खोली और एजेएल को 90 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन दिया। एजेएल यंग इंडिया कंपनी को लोन नहीं चुका पाई। इस सौदे की वजह से सोनिया और राहुल गांधी की कंपनी यंग इंडिया को एजेएल की संपत्ति का मालिकाना हक मिल गया। इस कंपनी में मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के 12-12 प्रतिशत शेयर हैं, जबकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के 76 प्रतिशत शेयर हैं। गांधी परिवार पर अवैध रूप से इस संपत्ति का अधिग्रहण करने के लिए पार्टी फंड का इस्तेमाल करने का आरोप लगा। गांधी खानदान के मौजूदा दोनों नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड केस में कोर्ट से जमानत पर हैं। इन दोनों ने अपनी सरकारों के जरिए देश के विभिन्न शहरों में नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र के नाम पर कई एकड़ जमीन आवंटित करा ली। इसकी प्रॉपर्टी की कीमत करीब 5 हजार करोड़ है।
अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला
वर्ष 2013 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर इटली की चॉपर कंपनी ‘अगस्ता वेस्टलैंड’ से कमीशन लेने के आरोप लगे। दरअसल अगस्ता वेस्टलैंड से भारत को 36 अरब रुपये के सौदे के तहत 12 हेलिकॉप्टर ख़रीदने थे, जिसमें 360 करोड़ रुपए की रिश्वतखोरी की बात सामने आई। इतालवी कोर्ट ने माना कि इस मामले में भारतीय अफसरों और राजनेताओं को 15 मिलियन डॉलर रिश्वत दी गई। इतालवी कोर्ट ने एक नोट में इशारा किया था कि सोनिया गांधी सौदे में पीछे से अहम भूमिका निभा रही थीं। कोर्ट ने 225 पेज के फैसले में चार बार सोनिया का जिक्र किया।
बोफोर्स घोटाला
बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपये के होवित्जर तोप का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत दी थी। आरोप है कि इसमें दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं को को स्वीडन की तोप बनाने वाली कंपनी बोफ़ोर्स ने कमीशन के बतौर 64 करोड़ रुपये दिये थे। इस सौदे में गांधी परिवार के करीबी और इतालवी कारोबारी ओतावियो क्वात्रोकी के अर्जेंटीना चले जाने पर सोनिया गांधी पर भी आरोप लगे।
वाड्रा-डीएलएफ घोटाला
वर्ष 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ घोटाले का आरोप लगा। उनपर शिकोहपुर गांव में कम दाम पर जमीन खरीदकर भारी मुनाफे में रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को बेचने का आरोप लगा। रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ से 65 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन लेने का आरोप लगा। बिना ब्याज पैसे की अदायगी के पीछे कंपनी को राजनीतिक लाभ पहुंचाना मूल उद्देश्य था। यह तथ्य भी सामने आया है कि केंद्र में कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा ने देश के कई और हिस्सों में भी बेहद कम कीमतों पर जमीनें खरीदीं। इस मामले में हाल ही में हरियाणा सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
राजस्थान के बीकानेर में हुए जमीन घोटालों में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों के जमीन सौदे भी शामिल हैं। अंग्रेजी न्यूज पोर्टल इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार गलत जमीन सौदों के सिलसिले में 18 एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें से 4 वाड्रा की कंपनियों से जुड़े हैं। ये सारी एफआईआर 1400 बीघा जमीन जाली नामों से खरीदे जाने से जुड़ी हैं, जिनमें से 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनियों के लिए जाली नामों से खरीदे जाने के आरोप हैं।
मारुति घोटाला
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी को यात्री कार बनाने का लाइसेंस मिला था। वर्ष 1973 में सोनिया गांधी को मारुति टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लि. का एमडी बनाया गया, हालांकि सोनिया के पास इसके लिए जरूरी तकनीकी योग्यता नहीं थी। बताया जा रहा है कि कंपनी को सरकार की ओर से टैक्स, फंड और कई छूटें मिलीं थी।
मूंदड़ा स्कैंडल
कलकत्ता के उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे घोटाले के तौर पर याद किया जाता है। इसके छींटें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर भी पड़े। दरअसल 1957 में मूंदड़ा ने एलआईसी के माध्यम से अपनी छह कंपनियों में 12 करोड़ 40 लाख रुपये का निवेश कराया था। यह निवेश सरकारी दबाव में एलआईसी की इंवेस्टमेंट कमेटी की अनदेखी करके किया गया। तब तक एलआईसी को पता चला उसे कई करोड़ का नुक़सान हो चुका था। इस केस को फिरोज गांधी ने उजागर किया, जिसे नेहरू ख़ामोशी से निपटाना चाहते थे। उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को बचाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें अंतत: पद छोड़ना पड़ा।
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