जब मंदिर ध्वस्त किए जा रहे थे, तब किस दोजख में दबा था यह सौहार्द्र?

राम मंदिर अयोध्या हिंदू
जीवन में हर काम का निश्चित समय पर होना विधाता ने पहले ही लिखा हुआ है। जो मीडिया 2014 से पूर्व भारतीय जनता पार्टी, विहिप, बजरंग दल, हिन्दू महासभा और आरएसएस को अयोध्या मुद्दे पर देश में साम्प्रदायिकता फ़ैलाने के आरोप लगाती थी, समय चक्र ऐसा घुमा, वही मीडिया मंदिर विरोधियों पर तंज कस रही है। सच्चाई को सामने आने में समय लगता है, वही अयोध्या मसले पर हुआ। अयोध्या हल होने से हिन्दुओं की मथुरा और काशी की लड़ाई में बहुत सहायता मिलेगी। 
देश में साम्प्रदायिकता फ़ैलाने वालों के मंसूबे सर्वविदित हो चुके हैं। अपनी कुर्सी की खातिर किस तरह हिन्दू मुसलमान को लड़वाते रहे। हिन्दुओं को विभाजित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे थे। कदम-कदम पर हिन्दू और हिन्दुत्व को अपमानित किया जा रहा था। संविधान की शपथ लेकर संविधान को बदनाम किया जा रहा था। जिस राम का संविधान में चित्र है, उसी राम के अस्तित्व को नकार रहे थे। .
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर अयोध्या भूमि विवाद भारत के सबसे लंबे भूमि विवाद में से एक है, जो दशकों तक जारी रहा। वर्ष 1528 में इस्लामिक आक्रान्ता बाबर के शासनकाल के दौरान, पुराने हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था और अयोध्या में उसी स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया था, जिसे बाबर के नाम पर रखा गया था।
दिसंबर 17, 1992 के दिन, लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- “जहाँ मैंने आरंभ किया था, मैं वहीं समाप्त करना चाह रहा हूँ। मैंने कहा था कि देश तिराहे पर खड़ा है। एक तरह की सांप्रदायिकता को बढ़ावा देकर, एक तरह की कट्टरता को बढ़ावा देकर, आप दूसरी तरह की कट्टरता से नहीं लड़ें, मगर आप यही कर रहे हैं और अब इस समय आइए, हम एक नई शुरुआत करें। अयोध्या, जैसा मैंने शुरू में कहा था कि अवसर में बदला जा सकता है।”
भव्य श्री राम मंदिर की नींव में स्थापित होने वाली
चांदी की ईंट
वाजपेयी करीब तीन दशक पहले जिस सांप्रदायिकता और कट्टरता को लेकर आगाह कर रहे थे, क्या वह जमशेद खान के यह कहने से, “हमने इस्लाम अपनाया और इस्लाम के अनुसार ही हम प्रार्थना करते हैं। लेकिन धर्म बदलने से हमारे पूर्वज नहीं बदल जाते। राम हमारे पूर्वज थे और हम अपने हिंदू भाइयों के साथ इसे मनाएँगे।”, खत्म हो गई है?
या सईद अहमद के यह कहने से, “हम भारतीय मुस्लिम मानते हैं कि राम इमाम-ए-हिंद थे और मैं अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के दौरान मौजूद रहूँगा।”, से वह समय आ गया है जिसका जिक्र वाजपेयी कर रहे थे?
या राशिद अंसारी जब कहते हैं, “अगर हमें गर्भगृह में जाने का मौका मिलता है, जहाँ शिलान्यास किया जाएगा, तो यह हमारे लिए आशीर्वाद की तरह होगा। अगर सुरक्षा वजहों से हमारा प्रवेश रोका जाता है तो हम बाहर से जश्न का हिस्सा बनेंगे।”, तो वह एक नई शुरुआत की बात कर रहे होते हैं? या फिर छत्तीसगढ़ से भूमि पूजन के लिए ईंट लेकर फैज खान की यात्रा को अवसर में बदला जा सकता है?
सवाल कई हैं और ‘अच्छा हिंदू’ ‘रामभक्त मुसलमान’ पर लहालोट हुआ जा रहा है। 5 अगस्त को अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का भूमिपूजन होगा। देश के प्रधानमंत्री मौजूद होंगे। साधु-संत और भव्य राम मंदिर की संघर्ष यात्रा के कई पथिक भी उपस्थित रहेंगे। कितना आसान, कितना मधुर लगता है सब कुछ।
लेकिन हिंदू के सवाल यहीं से खड़े होते हैं। क्या उत्तर प्रदेश और केंद्र में आज बीजेपी की सरकार न होती, तब भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह सब इतना ही आसान होता है? ‘अच्छा हिंदू’ कहेगा कि क्यों नहीं?
Ram Govind Chaudhary says Ram Temple not formed because Lal ...
लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कौन सी सरकार जाएगी। लेकिन हिंदू मन सवाल करता है कि शाहबानो के हक में भी फैसला इसी सुप्रीम कोर्ट ने दिया था, पर एक सरकार ही थी जो इसके खिलाफ अध्यादेश ले आई।
हिंदू मन कहता है कि वो भी एक यूपी की ही सरकार थी, जिसने राम भक्त कार सेवकों की लाश से अयोध्या और सरयू को पाट दिया था। फिर 1992 की वह बीजेपी सरकार भी थी, जिसने राम भक्तों पर गोली चलाने का आदेश देने की जगह, सत्ता का बलिदान कर दिया।
हिंदू मन को अचानक से राम मंदिर पर पैदा सौहार्द्र से शक होता है। लेकिन यह जान कर भी कि रामलला के पक्ष में फैसला आने पर सुप्रीम कोर्ट की नीयत पर सवाल उठाए गए थे, अच्छा हिंदू ‘रामभक्त मुसलमान’ पर मर मिटेगा। उसके तर्क बड़े भोले होंगे। वह कहेगा मैं अपने घर में पूजा करूँ और मेरा कोई मुस्लिम मित्र आएगा तो मैं कैसे मना कर दूँगा। 
वह भावनाओं के ज्वार में उतराता जाएगा। और यह ज्वार कौन पैदा कर रहा है। वही मीडिया, वही वामपंथी। चूँकि तमाम तीन तिकड़म के बाबवजूद जब वे भव्य राम मंदिर के निर्माण में अड़ंगा नहीं डाल पा रहे हैं तो मीठी गोली से शिकार पर उतर आए हैं और वे भी जानते हैं अच्छा हिंदू इस जाल में फँसेगा।
लेकिन हिंदू यह जानना चाहता है कि अयोध्या, मथुरा, काशी सहित देश के तमाम हिस्सों में मंदिरों का ध्वंस कर उस पर मस्जिद खड़े करने के भागीदार (जिनके नाम भी जमशेद, सईद और फैज जैसा ही कुछ रहा होगा) के पूर्वज राम नहीं थे। जब अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वस्त होने पर देश भर में कितने मंदिर तोड़े गए थे, उस समय इन छद्दम समाजवादियों, छद्दम धर्म-निरपेक्षता, संविधान की दुहाई देने वाले और गंगा-जमुना तहजीब स्वांग रचने वाले कहाँ थे? तब किस दोजख में दबा था यह सौहार्द्र?
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1859 में औपनिवेशिक ब्रिटिश प्रशासन ने इस साइट के चारों ओर एक बाड़ लगा दी, जो हिंदू और मुसलमानों के लिए पूजा के अलग-अलग क्षेत्रों को दर्शाता है। यही कारण है कि यह ढाँचा लगभग 90 वर्षों तक खड़ा रहा। हालाँकि, कानूनी रूप से यह विवाद पहली बार 1990 में शुरू हुआ और 2019 में दो दशकों के बाद लगभग समाप्त हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार अपना फैसला दिया।
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लेकिन, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने हिन्दुओं के मन में इस राम मंदिर के लिए आस्था और उत्साह का जो संचार किया, वह आज भुलाया नहीं जा सकता है। इसी क्रम में वो दिन स्मरण हो आता है जब लालकृष्ण आडवाणी, अयोध्या पहुँचे थे।
1990 में वीपी सिंह बीजेपी के समर्थन से भारत के प्रधान मंत्री बने, जिन्होंने चुनाव में 58 सीटें जीती थीं। तब, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने अयोध्या स्थित इस भूमि पर श्रीराम मंदिर बनाने के फैसले के समर्थन के लिए देशभर में एक रथ यात्रा निकाली थी। 23 अक्टूबर को, उन्हें यात्रा के दौरान बिहार में गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद भाजपा ने सरकार को दिया हुआ अपना समर्थन वापस ले लिया।
इसी क्रम में जब लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या पहुँचे, तो उनकी राजनीतिक और धार्मिक रैली के अंतिम गंतव्य के रूप में उनका समर्थन करने के लिए हजारों की संखा में भीड़ उमड़ी। अयोध्या की सड़कों पर लोगों के जनसैलाब ने आडवाणी को मंत्रों और फूलों के साथ सम्मानित किया। उस दिन श्रीराम भक्तों के हाथों में भगवा झंडे, धनुष और त्रिशूल नजर आ रहे थे।    
श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण का खाका वर्ष 1984-85 में तैयार किया गया था। इस पूरे मामले का केंद्र प्रयागराज में अशोक सिंहल का निवास ‘महावीर भवन’ बना। इसी जगह पर संत-महात्माओं के साथ रज्जू भैया, डॉ मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, सुब्रमण्यम स्वामी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार ने बातचीत की थी। लालकृष्ण आडवाणी ने जब रथयात्रा निकाली तो अशोक सिंहल का उन्हें पूरा सहयोग मिला। इसने देश भर में भगवान् श्री राम के मंदिर के लिए माहौल बना दिया था।
लालू के आदेश पर आडवाणी को गिरफ्तार ...
जब रामजन्मभूमि विवाद को विराम देने के लिए
कांग्रेस के समर्थन से बनी सरकार कांग्रेस के समर्थन वापस लेते ही
चंद्रशेखर की सरकार गिर गयी थी 
आखिरकार लम्बे इन्तजार के बाद, आने वाले 5 अगस्त को इस दिव्य मंदिर का भूमिपूजन किया जाना तय हुआ है। निश्चित ही हिन्दुओं ने जिस राम मंदिर के लिए इतने वर्षों तक इन्तजार किया है, उसके उद्घाटन और स्थापना को लेकर जनमानस में कितना उत्साह होगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
अंग्रेजी हुकूमत के गजेटियर से लेकर तमाम दस्तावेज यह बताते हैं कि वह जगह रामलला की थी। यह सब जानने के बाद हिंदू मन पूछना चाहता है कि फिर आजाद भारत में नेहरू ने रामलला की मूर्ति उस जगह से क्यों हटवानी चाही थी?
क्यों इतना लंबा संघर्ष हिंदुओं को करना पड़ा? क्यों इतनी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई? क्या तब जमशेद और फैज के कौम को यह नहीं पता था कि उनके पूर्वज कौन थे? क्या उन्हें यह दिव्य ज्ञान अगस्त 05, 2020 की तारीख तय होने के बाद हुई?
अच्छा हिंदू कहेगा- “छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी।” फिर जमशेद और फैज के पूर्वजों की बात भी तो पुरानी ही है। जमशेद और फैज की आज की पहचान तो कहती है कि बुतपरस्ती हराम है। उनके लिए हम काफिर हैं। वैसे भी धर्म आस्था का मसला है। जीवन जीने का सलीका है। जिनके लिए हिंदुत्व की जीवनशैली नापाक है, उनकी मिट्टी, उनकी आस्था का हिंदू क्यों आचार डालें। जमशेद और फैज जैसे यह भी तो कह सकते हैं कि भूमि पूजन के पवित्र मौके पर हम अपने पूर्वजों के धर्म में वापसी करेंगे।
फिर भी हिंदू मन इस मीडिया से पूछता रहेगा, तुम्हारी क्यों सुने? तुमने मंदिर के पैरोकार रहे परमहंस रामचंद्र दास को कट्टर और बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी को उदरावाद का प्रतीक बताया। मुस्लिम इंडिया नाम से अखबार प्रकाशित करने वाला, गणतंत्र दिवस को ब्लैक डे के तौर पर मनाने का आह्वान करने वाला सैयद शहाबुद्दीन तुम्हारे लिए प्रोग्रेसिव मुसलमान था।
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लेकिन साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, विनय कटियार जैसों को उन्मादी बताया। राम सेवकों की लाश बिछाने वाला मौलाना मुलायम तुम्हारे लिए समाजवादी है और राम रथ यात्रा निकालने वाला आडवाणी सांप्रदायिक।
हम तुम्हारी इन साजिशों को अब खूब समझते हैं। हम हिंदू बनेंगे। नहीं बनना अब तुम्हारे लिए अच्छा हिंदू। हम जानते हैं कि प्रोगेसिव मुसलमान, उदारवादी मुसलमान तुम्हारे गढ़े वे शब्द हैं, जिससे तुम इनके जिहादी मानसिकता पर पर्दा डालते हो। जिस मौलाना आजाद को तुम उदारवादी बताते रहे, उसने आजाद भारत की शिक्षा-व्यवस्था को वह शक्ल दी, जिससे मुसलमानों का खूनी इतिहास दब जाए और हिंदू अपनी पहचान पर शर्मिंदा हों।
वाजपेयी ने कहा था राम का मंदिर छल और छद्म से नहीं बनेगा। राम का मंदिर अगर बनेगा तो एक नैतिक विश्वास के बल पर बनेगा। वो वक्त करीब आ गया है।(एजेंसीज इनपुट्स)

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