
CPI ने जुलाई 27, 2020 को पत्र लिख भूमि पूजन को सरकारी टीवी चैनल पर प्रसारित नहीं करने की माँग की। सीपीआई का कहना है कि धार्मिक समारोह को प्रसारित करने के लिए दूरदर्शन का उपयोग राष्ट्रीय अखंडता के स्वीकृत मानदंडों के खिलाफ है। अयोध्या में मंदिर लंबे समय से संघर्ष और मतभेद का स्रोत रहा है, इसलिए यहाँ पर होने वाले समारोह के प्रसारण से बचा जाना चाहिए।
उल्लेखनीय यह है कि कांग्रेस और वामपंथियों ने मिलकर इस मुद्दे को बनाया था, राम के अस्तित्व को नकार करने का दुस्साहस इन्हीं लोगों ने किया था। रामसेतु को भी श्रीराम की वानर सेना द्वारा बनाने को नकार दिया था और उसे खंडित करने का जितने भी प्रयास किए, केवल असफलता ही हाथ लगी, फिर भी श्रीराम और उनके कामों को कभी नहीं स्वीकारा और तुष्टिकरण कर अपनी तिजोरियां भरते रहे और जनमानस एक-दूसरे को साम्प्रदायिकता भरी निगाह से देखता रहा। कोर्ट के आदेश पर हुई खुदाई में मिले अवशेषों को कोर्ट से छुपाने का घिनौना काम भी इन्हीं लोगों ने किया था, जिसका उल्लेख तत्कालीन पुरातत्व निदेशक डॉ के.के. मोहम्मद ने अपनी पुस्तक में भी किया है। अन्यथा विवाद कई वर्ष पूर्व ही समाप्त हो गया था।
इतना ही नहीं जब तक मामला कोर्ट में लंबित था तब ये ही गैंग भाजपा और विहिप से मंदिर की तारीख पूछता था और जब तारीख निश्चित हो गयी, तब भी इनको साम्प्रदायिकता नज़र आ रही है। वास्तव में इनके DNA में ही साम्प्रदायिकता घुसी हुई है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस संबंध में सूचना और प्रसारण (I & B) मंत्रालय को पत्र लिखा है। इसमें लिखा गया है कि अयोध्या में 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस और फिर राम मंदिर को लेकर पिछले कई दशकों से देश में संघर्ष और मतभेद रहा है।
पत्र में आगे कहा गया है, “प्रसार भारती अधिनियम की धारा 12 2 (a) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इसका उद्देश्य ‘देश की एकता, अखंडता और संविधान में निहित मूल्यों को कायम रखना’ है।”
पत्र में जोर देकर कहा गया है, “धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सद्भाव के सिद्धांतों पर स्थापित देश के लिए राष्ट्रीय प्रसारक के रूप में 5 अगस्त को अयोध्या में धार्मिक समारोह को प्रसारित करने के लिए दूरदर्शन का उपयोग राष्ट्रीय अखंडता के स्वीकृत मानदंडों के विपरीत है।” और अब तक जो मंदिर में अवरोध उत्पन्न कर रहे थे, वह क्या धर्म-निरपेक्षता थी?
पत्र में सीपीआई के विनय विश्वम ने लिखा, “धार्मिक कार्य होने वाली भूमि पर विवाद की ऐतिहासिकता को देखते हुए, सरकार के लिए इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के प्रयासों का विरोध करना और यह सुनिश्चित करना परिपक्व निर्णय होगा कि राज्य की धर्मनिरपेक्ष छवि से समझौता न किया जाए।” जहाँ तक राजनीतिकरण की बात है, यह तो तत्कालीन भारतीय जनसंघ के समय से भाजपा के घोषणा पत्र में रहा है, फिर राजनीतिकरण किस आधार पर हुआ?
भूमि पूजन में शामिल होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अयोध्या जाएँगें, ये खबर जब से वामपंथियों ने सुनी है तब से भड़क उठे हैं, कह रहे हैं पीएम मोदी का अयोध्या दौरा न सिर्फ गलत बल्कि सेकुलरिज्म के खिलाफ भी है।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के नेता डी राजा ने प्रधानमंत्री मोदी के अयोध्या दौरे का विरोध करते हुए कहा कि मोदी का अयोध्या जाना बिलकुल गलत है। इससे गलत सन्देश जायेगा और ये सेकुलरिज्म के खिलाफ है। बता दें कि डी राजा से पहले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने पीएम मोदी के अयोध्या दौरे पर ऐतराज जताया था।
अयोध्या में आगामी 5 अगस्त को राम मंदिर की आधारशिला रखी जानी है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या जाएँगे और भूमि पूजन के बाद राम मंदिर की पहली ईंट रखेंगे। भूमि पूजन के लिए बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत को भी आमंत्रण भेजा गया है। इस समारोह का दूरदर्शन द्वारा सीधा प्रसारण किया जाएगा।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय के मुताबिक, भूमि पूजन के पूरे कार्यक्रम का दूरदर्शन लाइव टेलीकास्ट करेगा। उन्होंने कहा कि अन्य चैनल भी भूमि पूजन को लाइव दिखाने की तैयारी में है। राय ने कोरोना वायरस महामारी के खतरे को देखते हुए लोगों से अयोध्या न आने की अपील की। उन्होंने कहा कि सब लोग घर में रहते हुए भूमि पूजन देखें और उत्सव मनाएँ।
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