कांग्रेस सांसद का सोनिया गाँधी को पत्र, प्रियंका से सहयोगी दल भी नाराज

टीएन प्रतापन, कमलनाथ और दिग्विजय सिंहराम मंदिर पर कांग्रेस दो गुटों में बँटी नजर आ रही है। हाल ही में कई कांग्रेस नेताओं ने भूमि पूजन के अवसर पर राम मंदिर का समर्थन किया। इसे देखकर केरल की कांग्रेस ईकाई आग बबूला हो गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता व लोकसभा सांसद टीएन प्रतापन ने तो खुलकर आपत्ति भी जताई है। पार्टी हाईकमान को पत्र लिखा है।
टी एन प्रतापन ने सांसद बनने पर शपथ भी ली होगी, लेकिन जिस संविधान की शपथ ली, शायद कभी उसको खोलकर देखने का प्रयास नहीं किया होगा। संविधान को जब खोलकर देखेंगे तो उसमे राम दरबार का चित्र है, यदि संविधान के समय इस तरह के आधारहीन एवं बेपेंदी के नेताओं के हाथ में बागडोर होती कभी संविधान में राम का चित्र नहीं आने देते। जहाँ तक दिग्विजय सिंह की बात है, अपने चुनाव में यज्ञ करवाते हैं, और जब केंद्र में सत्ता में थे, तब "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" नाम देकर हिन्दू धर्म को कलंकित कर रहे थे। शायद इसीलिए इनके भगवान ने इनका यज्ञ भी स्वीकार नहीं किया। क्या है ऐसे नेताओं का चरित्र? जनता ऐसे पाखंडियों को कब इनकी हैसियत दिखाएगी? 
कांग्रेस ने वामपंथियों के साथ गठजोड़ कर भारत के गौरवमयी इतिहास को बदलने के ही कारण अयोध्या एवं अन्य मुद्दे विवादित हो रहे हैं। यदि आज़ादी से ही वास्तविक इतिहास पढ़ाया होता, किसी के मन में कोई शंका नहीं होती। लेकिन तुष्टिकरण के चलते विभाजित नीति अपनाकर जनता को मुर्ख बनाकर अपना मतलब हल करते रहे और बेगुनाह इनकी कुर्सी की खातिर एक-दूसरे से द्वेष भावना रख दंगे करते रहे। 
रिपोर्ट्स के मुताबिक, त्रिशूर से लोकसभा सांसद टीएन प्रतापन ने सोनिया गाँधी को पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने मध्यप्रदेश नेताओं के ख़िलाफ़ शिकायत की है। उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराते हुए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के उन बयानों के ख़िलाफ नाराजगी जताई जिनमे उन्होंने राम मंदिर निर्माण का समर्थन किया।
उन्होंने कहा कि इस तरह राम मंदिर निर्माण का समर्थन का करना बिलकुल ऐसा है जैसा अस्थायी सफलता के लिए अपने घुटने टेकना। अपने पत्र में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को सॉफ्ट हिंदुत्व छवि अपनाने के लिए चेतावनी दी और कहा कि कांग्रेस को इस बीच उन लोगों को नहीं भूलना चाहिए जो बाबरी विध्वंस का दुख मनाते हैं और जिनके लिए वह हमला बिलकुल ऐसा था जैसा किसी ने उन पर हमला किया हो। वे कहते हैं कि नरम रवैये के साथ अतिधार्मिक राष्ट्रवाद के पीछे नहीं चल सकते। हमें स्थिति को समझना होगा और कोई और रास्ता खोजना होगा।
क्या कहा था कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने 
केरल सासंद का ये पत्र कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बयानों की प्रतिक्रिया में है। दरअसल दोनों नेताओं ने राम मंदिर निर्माण कार्य का स्वागत ये कहते हुए किया कि वह राजीव गाँधी ही थे जिन्होंने 1985 में राम जन्मभूमि का दरवाजा खोला।
कमलनाथ ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर डालते हुए यह भी कहा कि इस अवसर पर वह अपने भोपाल वाले घर में हनुमान चालीसा का पाठ रखेंगे और कांग्रेस की राज्य ईकाई की ओर से अयोध्या के लिए 11 ईंट भी देंगे। वहीं दिग्विजय सिंह ने यह दावा किया कि अयोध्या की नींव तो पहले ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा रखी जा चुकी है।
इन दोनों नेताओं का विरोध करते हुए जहाँ त्रिशूर सांसद ने इस कार्यक्रम को संघ परिवार द्वारा प्रायोजित धार्मिक राजनैतिक कार्यक्रम बताया और कहा कि अगर हमारे नेताओं को नहीं बुलाया गया तो वह उसके लिए भीख क्यों माँग रहे हैं। वहीं, प्रतापन ने प्रियंका गाँधी का बचाव करते हुए कहा कि राम मंदिर को लेकर प्रियंका गाँधी ने जो रुख अपनाया वो स्वीकार्य है, क्योंकि उन्होंने एकता की बात की है।
वे कहते हैं, “हम निश्चित रूप से जानते हैं कि जहाँ तक ​​संघ परिवार की सत्ता है, वहाँ ऐसी एकता नहीं होगी। अंतत: फर्क इससे नहीं पड़ता कि हमने कितनी असफलताएँ देखीं। फर्क इससे पड़ता है कि हम अस्थायी सफलताओं के लिए झुक गए।”
केरल के मुख्यमंत्री ने भी इन बयानों पर कांग्रेस पार्टी पर हमला बोला है। उन्होंने बुधवार(5 अगस्त) को कहा कि वह प्रियंका गाँधी के बयानों से अचंभित नहीं हुए। उन्होंने पार्टी पर निशाना साधते हुए सॉफ्ट हिंदुत्व मुद्दे पर पार्टी को घेरा और कहा कि अगर पार्टी कभी सेकुलरिज्म पर तटस्ठ कदम उठाती तो आज ऐसी हालत नहीं होती।
उन्होंने कहा कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे में कांग्रेस पार्टी का रुख इतिहास का हिस्सा है, क्योंकि वह मस्जिद नष्ट होने पर “मूकदर्शक” बनी हुई थी।
केरल में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी इंडिया यूनियन मुस्लिम लीग ने भी प्रियंका गाँधी के बयान पर अपना विरोध दर्ज करवाया है। उन्होंने कहा कि हम राम मंदिर मामले पर प्रियंका गाँधी के बयान के साथ अपनी असहमति जताते हैं। उनका बयान स्थिति से बिलकुल अलग है।
पार्टी ने इसके बाद घटना को तूल नहीं देने का फैसला किया और कहा कि वह इस पर चर्चा दोबारा शुरू करने को लेकर अनिच्छुक है। पार्टी ने कहा, ‘‘IUML ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया था और उसके बाद अब यह अध्याय समाप्त हो चुका है।”
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