Sri Guru Tegh Bahadur Ji’s life epitomised courage and compassion.
— Narendra Modi (@narendramodi) December 19, 2020
On his Shaheedi Diwas, I bow to the great Sri Guru Tegh Bahadur Ji and recall his vision for a just and inclusive society.
ये वो समय था, जब औरंगजेब का अत्याचार लगातार ही बढ़ता जा रहा था और देश भर के हिन्दू सहित कश्मीरी पंडित भी हलकान थे। वाराणसी, उदयपुर और मथुरा सहित हिन्दुओं की श्रद्धा वाले कई क्षेत्रों में औरंगजेब की फ़ौज मंदिरों को ध्वस्त किए जा रही थी। सन 1669 में तो हद ही हो गई जब हिन्दुओं को नदी किनारे मृतकों का अंतिम-संस्कार तक करने से रोक दिया गया। शाही आदेश और जोर-जबरदस्ती, दोनों के जरिए हिन्दुओं पर प्रहार हो रहे थे।
जम्मू-कश्मीर में शेर अफगान नामक आक्रांता कश्मीरी पंडितों का नामोनिशान मिटा देना चाहता था और बादशाह औरंगजेब को उसका वरदहस्त प्राप्त था। ऐसे कठिन समय में कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल गुरु तेग बहादुर के पास पहुँचा और उन्हें अपनी समस्या बताई। कृपाराम की अध्यक्षता में आए इस प्रतिनिधिमंडल ने जब गुरु को बादशाही अत्याचार और क्रूरता की दास्तान सुनाई तो वो काफी दुःखी हो उठे।
Then this Saint of India #GuruTeghBahadur made the supreme sacrifice of his life to protect #KashmiriHindus #KashmiriPandits. He did not buckle under pressure of Mughal emperor #Aurangzeb and didn't accept Islam. The 9th Sikh Guru was beheaded outside #RedFort Gurudwara ShishGanj pic.twitter.com/0j09F3obve
— GAURAV C SAWANT (@gauravcsawant) November 24, 2019
Bhai Dyal Das was also forced to accept #Islam by #Aurangzeb. He too refused. In front of Guru Tegh Bahadur he was forced to sit in a cauldron of boiling water. The three devotees of the 9th Sikh Guru kept doing 'Ek Onkar Jaap'. They all gave up their lives but not their faith.
— GAURAV C SAWANT (@gauravcsawant) November 24, 2019
Guru Nanak ji started the panth with lots of hope to take every one along. But by 5th Guru, the panth hit the wall of Islam. Islam became the biggest enemy of Sikhism where as majority were from Hindus. Now some people want to kill all sikhs by joining hand with Islamist Republic
— #जयश्रीराम (@Ahambrahmaa) November 24, 2019
------------------- -------------------
कब्र में मुर्दे को खाने वाले कीड़े भी कुछ सालो मे नष्ट हो जाते हैं। परन्तु हिन्दू उन पर सिर रगड़ते हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक शहर है,बहराइच ।बहराइच में हिन्दू समाज का मुख्य पूजा स्थल है गाजी बाबा की मजार। मूर्ख हिंदू लाखों रूपये हर वर्ष इस पीर पर चढाते है। इतिहास का जानकार हर व्यक्ति जानता है,कि महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को 17 बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़ आया । वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया, लाखों हिन्दू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले।
राह में उसे एक भी ऐसा हिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी को रोक सके। परंतु बहराइच के राजा सुहेल देव पासी ने उसको थामने का बीडा उठाया । वे अपनी सेना के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे। महाराजा व हिन्दू वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला । सलार गाजी मारा गया। उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया। हिंदू ह्रदय राजा सुहेल देव पासी ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार गाजी को इस्लाम के अनुसार कब्र में दफ़न करा दिया।
कुछ समय पश्चात् तुगलक वंश के आने पर फीरोज तुगलक ने सलारगाजी को इस्लाम का सच्चा संत सिपाही घोषित करते हुए उसकी मजार बनवा दी। आज उसी हिन्दुओं के हत्यारे, हिंदू औरतों के बलातकारी ,मूर्ती भंजन दानव को हिंदू समाज एक देवता की तरह पूजता है। सलार गाजी हिन्दुओं का गाजी बाबा हो गया है सलार गाजी हिन्दुओं का भगवान बनकर हिन्दू समाज का पूजनीय हो गया है। अब गाजी की मजार पूजने वाले ,ऐसे हिन्दुओं को मूर्ख न कहे तो क्या कहें ।
ख्वाजा गरीब नवाज़, अमीर खुसरो, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर
जाकर मन्नत मांगने वाले सनातन धर्मी (हिन्दू) लोगो के लिए विशेष :--
पूरे देश में स्थान स्थान पर बनी कब्रों,मजारों या दरगाहों पर हर वीरवार को जाकर शीश झुकाने व मन्नत करने वालों से कुछ प्रश्न :-
1.क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चुकी है वो किसी की मनोकामना पूरी कर सकती हैं?
2. ज्यादातर कब्र या मजार उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए
थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने प्राण धर्म की रक्षा करते हुए बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?
3. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा ३३ करोड़ देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं?
4. जब गीता में श्री कृष्ण जी महाराज ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?
"यान्ति देवव्रता देवान्
पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति
मद्याजिनोऽपिमाम्"
श्री मद भगवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मुर्दा, पितृ (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र,मजार अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत- प्रेत व पितृ की योनी में ही विचरण करते हैं व उसे ही प्राप्त करते हैं l
5. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करनेवालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते हैं?
6. क्या संसार में इससे बड़ी मूर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता हैं?
7. हिन्दू कौनसी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहे हैं जो वेदों- उपनिषदों में कहीं नहीं गयीं हैं?
8. कब्र, मजार पूजा को हिन्दू मुस्लिम सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो क्या हैं ?
इसमें कोई दो राय नहीं कि हिन्दुओं के ही कारण कब्रों का बोलबाला है, अन्यथा कोई इन्हें पूछे भी नहीं।
---------------------------------------------------------
कहते हैं, जब पूरे दरबार में निराशा का माहौल था, तब बालक गोविंद राय को भी ये ठीक नहीं लगा और उन्होंने कई सवाल दाग दिए। वो पूछने लगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जहाँ दिन-रात भजन-कीर्तन और शास्त्रों की बातें होती थीं, वहाँ आज इस तरह नीरसता का माहौल छाया हुआ है। बच्चे की जिद के आगे गुरु तेग बहादुर झुक गए और सारी व्यथा कह डाली। दरबार में कौन लोग आए थे और उनकी व्यथा थी- सब।
उन्होंने ये तक कह दिया कि इनके दुःखों के निवारण के लिए किसी महापुरुष का बलिदान चाहिए। इस पर बालक गोविंद राय ने पूछा इस समय भारतवर्ष में आपसे बढ़ कर विद्वान, सद्गुणों वाला और महान महापुरुष कौन है, इसीलिए क्या आपको ही इस बलिदान के लिए स्वयं को प्रस्तुत नहीं करना चाहिए? एक बालक के मुँह से गुरु नानक की शिक्षाओं और शरणागत की रक्षा के लिए प्राण त्यागने की बातें सुन कर गुरु तेग बहादुर समझ गए कि ये ईश्वर का ही संदेशा है।
गुरु तेग बहादुर ने इसे ईश्वर का आदेश मान कर कश्मीरी पंडितों की रक्षा का निर्णय लिया और बादशाह औरंगजेब के पास उनके ही हाथों संदेशा भेजा। औरंगजेब को लगा कि अगर धर्मांतरण वाले अभियान को गुरु तेग बहादुर का समर्थन मिल गया तो एक-एक कश्मीरी पंडित मुस्लिम मजहब अपना लेगा। औरंगजेब ये सोच कर खुश हुआ कि गुरु तेग बहादुर इस्लाम अपना लेंगे और पीछे से पूरे कश्मीर पर भी इस्लाम का राज होगा।
गुरु तेग बहादुर की दिल्ली आने की सूचना को उसने भ्रामक खबर बना कर दुष्प्रचारित करवाया कि गुरु इस्लाम अपनाने ही आ रहे हैं। लेकिन, कपटी औरंगजेब ने गुरु को आगरा के नजदीक ही गिरफ्तार करवा लिया। इसके ठीक अगले दिन उसने गुरु को अपने दरबार में बुलाया। हमेशा की तरह गुरु तेग बहादुर शांतचित्त मुद्रा में बैठे हुए थे और उनके मुख पर डर या घृणा, किसी भी चीज का जरा भी भाव नहीं था।
दरबार में उनके बीच हुई बातचीत का वर्णन हिंदी समाचार पत्र ‘उगता भारत’ के संस्थापक-संपादक राकेश कुमार आर्य ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू राष्ट्र स्वप्नदृष्टा: बंदा वीर बैरागी‘ में किया है। इसकी चर्चा कई अन्य जगह भी मिलती है। वहाँ औरंगजेब का पूरा जोर इस बात पर था कि वो हिन्दुओं और सिखों को अलग-अलग साबित कर गुरु तेग बहादुर को भ्रमित कर सके और दोनों समुदायों के बीच कटुता पैदा कर सके।
उसने गुरु तेग बहादुर से कहा कि वो हिन्दुओं का नेतृत्व न करें, क्योंकि वे तो सिखों से अलग होते हैं। औरंगजेब के जवाब में गुरु तेग बहादुर ने उसे वेदों और उपनिषदों के माध्यम से समझाना शुरू किया। गुरु तेग बहादुर इन समस्त शास्त्र-पुराणों में पारंगत थे और साथ ही मानवता को परम धर्म मानते थे। इसीलिए उन्होंने इन सबके माध्यम से औरंगजेब के क्रियाकलापों को धर्मविरुद्ध साबित कर दिया, जिससे वो भड़क गया।
औरंगजेब ने अरब मुल्कों का उदाहरण देते हुए दावा किया कि जैसे वहाँ पर सारे मुस्लिम ही होते हैं, ठीक उसी तरह सम्पूर्ण भारतवर्ष में भी एक ‘दीन’ मजहब होगा तो सारी समस्याएँ अपनेआप ही ख़त्म हो जाएँगी- न कोई मतभेद होगा, न कोई कटुता। गुरु तेग बहादुर ने उसे याद दिलाया कि जहाँ केवल मुस्लिम रहते हैं, वहाँ भी तो शिया-सुन्नी के झगड़े चलते ही रहते हैं। उन्होंने मुस्लिमों में भी कई पंथ-समुदाय होने की बात याद दिलाई।
गुरु तेग बहादुर का जोर इस बात पर था कि ये पूरी दुनिया ईश्वर की बनाई वो वाटिका है, जहाँ भाँति-भाँति के पुष्प खिल सकते हैं। उन्होंने औरंगजेब से सवाल किया कि अगर प्रकृति की इच्छा होती कि भारत में सिर्फ मुस्लिम ही पैदा हों, तब तो उन्हें संतान ही नहीं होती और केवल मुस्लिमों को ही संतान पैदा होती। उन्होंने समझाया कि प्रकृति सबके साथ बराबर व्यवहार करती है, इसीलिए उसे भी जबरन धर्मांतरण अभियान रोक देना चाहिए।
इसके बाद का प्रसंग लगभग सभी को पता ही है। क्रूर और आततायी बादशाह ने गुरु को मृत्यु अथवा इस्लाम में से कोई एक चुनने के लिए दिया। गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए मृत्यु का वरन करने की इच्छा प्रकट की, लेकिन इस्लाम अपनाने से साफ़ इनकार कर दिया। उन्हें जेल में डाल दिया गया। उन पर अमानवीय अत्याचार किए जाने लगे। गुरु ने सबका सामना किया। उन्हें विभिन्न माध्यमों से प्रताड़ित किया जाता था।
इस पूरे प्रकरण के दौरान अगर भाई मतिदास के बलिदान का जिक्र न किया गया तो ये अधूरा ही रहेगा। उन्हें भी गुरु तेग बहादुर के साथ ही पकड़ा गया था। दिल्ली के चाँदनी चौक पर उन्हें मृत्युदंड देने के लिए लाया गया। आक्रांताओं ने उनकी अंतिम इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा कि मृत्यु के वक्त उनका सिर गुरु के समक्ष रहे, ताकि वो उन्हें देखते हुए मौत को गले लगा सकें। गुरु तेग बहादुर के पिंजरे के ठीक सामने उन्हें रखा गया।
लकड़ी के दो शहतीरों की पाट में उनकी शरीर को टिका दिया गया और दो जल्लाद आड़े लेकर खड़े हो गए। उनसे अंतिम बार पूछा गया कि क्या वो इस्लाम कबूल करेंगे, लेकिन उनका जवाब ना में था। तुरंत ही आड़े से उनके शरीर को चीर डाला गया। खून के फव्वारे छूट पड़े, देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए और फिर भी अत्याचारी आक्रांता मजे लेते रहे। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर की मृत्यु की भी तारीख निश्चित कर दी।
पूरे दिल्ली में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि गुरुवार, 12 मार्गशीष, सुदी 5, सम्मत 1732, विक्रमी (नवंबर 11, 1675) को चाँदनी चौक स्थित दिल्ली चबूतरे पर उनका क़त्ल कर दिया जाएगा। उससे पहले भाई दयाल जी और मति दास जी के जीवन का अंत कर दिया गया था। उपर्युक्त तारीख़ पर सैकड़ों लोग वहाँ जुटे पर किसी की कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई। अत्याचारियों ने सबके सामने गुरु का शीश काट दिया। ‘हिंद की चादर’ का बलिदान हो गया।
अंत में जिक्र उन दो बहादुरों का, जिहोने गुरु के शीश और धड़ को शत्रु के द्वारा अपमानित होने से बचाया और विधि-विधान से अंतिम संस्कार हेतु लेकर गए। गुरु की मृत्यु के बाद वहाँ बड़ी भगदड़ मच गई थी। भाई वीर जैता और भाई लखीशाह ने क्रमशः गुरु के शीश और धड़ को उठाया और वहाँ से निकल गए। बाद में ससम्मान उनका अंतिम संस्कार हुआ। इन दोनों की बहादुरी आज भी याद की जाती है।
इन सबके बावजूद आज नारा लगाया जाता है- जय भीम-जय मीम। इस नारे का अब तक का सफर विश्वासघातों से ही भरा है। ऐसे मौकों की फेहरिस्त काफी लंबी है, जब फायदे के लिए दलितों का पहले इस्तेमाल करने वालों ने ही बाद में मजहब के नाम पर उनका नरसंहार किया। हिन्दुओं और सिखों के साथ ये हर दौर में होता आया है। ऐसी एक नहीं, बल्कि कई घटनाएँ हैं जो इस्लामी क्रूरता को बयान करती है। निशाना हिन्दू होते हैं, या सिख।
No comments:
Post a Comment