पाकिस्तान : स्कूली किताबें में पढ़ाई जा रही हैं हिन्दुओं के ख़िलाफ़ नफ़रत : BBC उर्दू डॉक्यूमेंट्री ने किया खुलासा

                                         पाकिस्तानी पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाया जा रहा हिन्दुओं के खिलाफ नफरत
भारत में आतताई मुगलों को महान बताने वाले नेता, पार्टियां, सरकार और इतिहासकारों ने किस आधार पर देशवासियों को गलत इतिहास पढ़ने के मजबूर किया? जब भारत में वास्तविकता बताने वालों को फिरकापरस्त, साम्प्रदायिक और शांति का दुश्मन बताते इन लोगों को लेशमात्र भी शर्म नहीं आती। काफी समय से पाकिस्तान में हिन्दुओं के विरुद्ध पढाये जाने वाले जहर को उजागर किया जाता है, लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक किसी ने राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान में भारत और हिन्दुओं के विरुद्ध पढाये जाने को उजागर नहीं किया। 1947 से आज तक कोई पार्टी मुस्लिम तुष्टिकरण त्यागने को तैयार नहीं, क्यों? आखिर कब तक पाकिस्तान हिन्दुओं के विरुद्ध जहर पढ़ाता रहेगा?
पाकिस्तान का गुणगान करने वाले भारतीय नेताओं और पार्टियों को चाहिए कि भारत एवं हिन्दुओं के विरुद्ध गलत इतिहास पढाये जाने पर आपत्ति दर्ज करें। वैसे बीबीसी ने कोई रहस्योघाटन नहीं किया है, क्योकि पहले भी इस तरह के समाचार आते रहे हैं, लेकिन अपनी TRP गिरने के डर से मीडिया ने भी इस मुद्दे पर कोई चौपाल नहीं बैठाई। क्योकि मुद्दा मुसलमान नहीं, हिन्दुओं के विरुद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने पाकिस्तान की शरण में जाने वाले बेशर्म नेताओं और पार्टियों ने कभी पाकिस्तान से इस गलत इतिहास को पढाये जाने का विरोध क्यों नहीं किया? आने वाले चुनावों में मतदाता इन पाकिस्तान परस्त नेताओं और पार्टियों से पूछे आखिर हिन्दुओं को अपमानित किये जाने पर पाकिस्तान से विरोध क्यों नहीं किया? क्या हिन्दू तुम्हे वोट नहीं देता? आखिर क्यों हिन्दुओं के विरुद्ध फैलाये जा रहे जहर का विरोध नहीं किया? अब इन बेशर्म नेताओं और पार्टियों को हिन्दू का चोला ओढे हिन्दू विरोधी नहीं कहा जाए तो और क्या कहा जाए? 
शायद यही कारण है कि इस्लामिक आतंकवादियों को बचाने एवं संरक्षण देने के लिए साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद और कर्नल पुरोहित जैसे बेकसूर साधु/संत एवं साध्वियों को झूठे आरोपों में जेलों में डाल "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" कहकर हिन्दुत्व को कलंकित किया जा रहा था। शायद यही कारण है कि अवैध पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को अपना वोट बैंक समझ नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में बने शाहीन बागों में Fuck Hindutva आदि नारों का समर्थन किया जा रहा था। भारत से लेकर पाकिस्तान तक गलत इतिहास पढ़ाकर बेकसूरों हिन्दू-मुसलमानों को बलि का बकरा बनाकर उनकी लाशों पर मालपुए खाने वाले बेशर्म सियासतखोर नितरोज हिन्दुओं और उनके देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को अपमानित होने पर चुप्पी साधे रहते हैं। 

बीबीसी उर्दू ने अप्रैल 12, 2021 को यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया। इस वीडियो में पाकिस्तान के पाठ्यपुस्तकों में हिन्दुओं के खिलाफ निहित पूर्वाग्रह को उजागर किया गया। वीडियो में कई पाकिस्तानी हिंदुओं को दिखाया गया है, जिन्होंने पाकिस्तान में स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में हिन्दू विरोधी प्रोपेगेंडा की तरफ इशारा किया। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि सिर्फ हिन्दू होने की वजह से उन्हें अपने दोस्तों, सहकर्मियों और सहपाठियों से अपमान का सामना करना पड़ता है। 

यह वीडियो स्कूली पाठ्य पुस्तकों में हिन्दू विरोधी कट्टरता के सामान्यीकरण को भी दर्शाता है जो आधिकारिक तौर पर पाकिस्तानी सरकार द्वारा स्वीकृत है। कम उम्र में ही पाठ्य पुस्तक के माध्यम से बच्चों में हिन्दू के लिए ‘काफिर’ (इस्लाम में विश्वास न करने वालों के लिए अपमानजक शब्द) शब्द का इस्तेमाल कर उनके प्रति नफरत पैदा किया जाता है। उन्हें पाकिस्तान की बुराइयों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।

वीडियो में पाकिस्तानी हिन्दू विभिन्न स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को यह दिखाने के लिए उद्धृत करते हैं कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकें हिन्दुओं और हिन्दू धर्म के खिलाफ नफरत का समर्थन कैसे करती हैं। उन्होंने विभिन्न मानकों के स्कूल की पाठ्यपुस्तकों के अंशों का हवाला दिया, जिन्होंने हिन्दुओं  को दूसरे दर्जे के नागरिकों के लिए वापस कर दिया।

अत्याचारी हिन्दू 

हमने पच्चीस से पैंतीस साल की उम्र के कुछ युवा लड़कों और लड़कियों से मुलाक़ात की और यह जानना चाहा कि स्कूल की किताबों में वे कौन-सी चीजें थीं, जिनसे स्कूल और कॉलेज के दिनों में वो आहत होते थे। 

जवाब में, इन युवाओं ने कुछ पाठ्य पुस्तकों के अंशों को दोहराया:

"इतिहास में हिन्दुओं ने मुसलमानों पर बहुत अत्याचार किया था।"

"काफ़िर का अर्थ है, जो बुतों या मूर्तियों की पूजा करने वाला होता है।"

हिन्दू मानवता के दुश्मन 

विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित इन युवाओं ने, जब अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने अपने चारों ओर सहिष्णुता और भाईचारे का माहौल देखा। चाहे वह दोस्ती और पड़ोस हो या ईद, होली और दिवाली के त्योहार, कम से कम व्यक्तिगत रूप से, उन्हें हिन्दू और मुसलमानों के बीच कोई अंतर महसूस नहीं हुआ। 

लेकिन जब ये छात्र घर छोड़कर स्कूल और कॉलेज गए, तब पहली बार उन्हें महसूस हुआ कि उनके बीच घृणा और पक्षपात के बीज बोए जा रहे हैं। उनके अनुसार इसकी ज़िम्मेदार कोई और नहीं बल्कि उनकी अपनी स्कूल की किताबे हैं। 

सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर में रहने वाले राजेश कुमार, जो चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े होने के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। राजेश कुमार सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड के 11वीं और 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल पाकिस्तान स्टडीज़ की पुस्तक का हवाला देते हैं। उन्होंने यह पुस्तक कॉलेज में पढ़ी थी। 

इनमें से एक राजेश ने एक पाकिस्तानी स्कूल की पाठ्यपुस्तक का हवाला दिया जिसमें हिन्दुओं को ‘काफ़िर’ के रूप में वर्णित किया गया था, जिसका अर्थ मूर्तिपूजा करने वाले थे, और आरोप लगाया कि हिन्दू स्त्री जाति से द्वेष करते हैं और अगर वो लड़की होने पर नवजात शिशु को जिंदा दफना देते हैं।

कुमार ने सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड की 11 वीं और 12 वीं कक्षा की किताबों का हवाला देते हुए हिन्दुओं और सिखों का वर्णन करने के लिए ‘मानवता के दुश्मनों’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल को उजागर किया। वह आगे कहते हैं कि पुस्तक में दावा किया गया है कि हिन्दुओं और सिखों ने हजारों महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को मार डाला।

पाकिस्तान में पुस्तकें इस नैरेटिव को आगे बढ़ाती हैं कि देश में हिन्दू अल्पसंख्यक अपने पड़ोसी देश और कट्टर भारत के प्रति वफादार हैं। इस तरह, मुस्लिम छात्रों में यह धारणा पैदा होती है कि उनके देश में हिन्दू देशद्रोही हैं और पाकिस्तान के लिए देशभक्ति की भावना नहीं है।

डॉ. कुमार ने 9 वीं और 10 वीं कक्षा की पुस्तकों का हवाला देते हुए बताया कि पाकिस्तानी किताबें हिन्दुओं को विश्वासघाती और धोखेबाज कैसे बताती हैं। किताबों में दावा किया गया कि मुसलमानों और हिन्दुओं ने दमनकारी ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए हाथ मिलाया था। हालाँकि, हिन्दुओं के मुसलमानों के प्रति शत्रुता दिखाए जाने की वजह से यह लंबे समय तक नहीं टिक सका।

मुसलमानों के दुश्मन 

युवा डॉक्टर राजवंती कुमारी ने अपनी नौवीं और दसवीं कक्षा की पाकिस्तान स्टडीज़ विषय की किताब के बारे में बताते हुए कहा कि इस किताब में हिन्दुओं को मुसलमानों का दुश्मन बताया गया था। 

इस किताब की पृष्ठ संख्या 24 पर लिखा था कि मुसलमानों और हिन्दुओं ने बहुत से आंदोलनों में मिल कर एक साथ काम किया था, लेकिन यह साथ लंबे समय तक नहीं चल सका। हिन्दुओं की मुस्लिमों से दुश्मनी सामने आ गई थी। 

राजवंती सवाल पूछती हैं कि वह ख़ुद हिंदू हैं, वो मुसलमानों की दुश्मन कैसे हो सकती हैं?

"मैं मुसलमानों के साथ पली बढ़ी हूँ, मेरे सभी दोस्त मुसलमान हैं। मैंने उनके और उन्होंने मेरे त्योहार एक साथ मनाएं हैं तो हमारी दुश्मनी कैसे हो सकती है?

पाकिस्तान की 3.5 प्रतिशत आबादी गैर-मुस्लिम है। एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 1.5 प्रतिशत है। 

अमेरिकी सरकार की तरफ से 2011 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, पाकिस्तान के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य पुस्तकें हिन्दुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पूर्वाग्रह और घृणा को बढ़ाती हैं। 

अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के इस शोध के लिए, देश भर में पहली से दसवीं कक्षा तक पढ़ाई जाने वाली सौ पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा की गयी। इसके अलावा स्कूलों का दौरा करके छात्रों और शिक्षकों से भी बात की गयी। 

हिन्दू खलनायक 

जाने-माने पाकिस्तानी शिक्षाविद एएच नैयर के अनुसार, हिन्दुओं के खिलाफ नफरत को पाकिस्तानी किताबों में सूक्ष्म तरीके से उकेरा गया है। वह बताते हैं कि जब पाकिस्तान का इतिहास पढ़ाया जाता है, तो मुस्लिम लीग और कॉन्ग्रेस के बीच लड़ाई को मुसलमानों और हिंदुओं के बीच लड़ाई के रूप में चित्रित किया गया है। नैय्यर कहते हैं, पाकिस्तान की स्थापना और इसके पीछे की राजनीति को सही ठहराने के लिए, पाकिस्तानी पाठ्यपुस्तकों में हिंदुओं को खलनायक के रूप में पेश किया जाता है।

वह बताते हैं कि जब तहरीक-ए-पाकिस्तान का इतिहास पढ़ाया जाता है। तब इसमें दो राजनीतिक दलों, मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच के मतभेदों की व्याख्या, मुस्लिम और हिंदुओं की लड़ाई के रूप में की जाती है। 

महिलाओं को निम्न स्थान 

सरकारी क्षेत्र में कर्मचारी और समाचार पत्रों में स्तंभ लिखने वाली, पारा मांगी, शिकारपुर की निवासी हैं। उन्होंने इंटरमीडिएट में पाकिस्तान स्टडीज़ की पुस्तक में पढ़ा था, "संकीर्णता ने हिंदू समाज को पंगु बना दिया था। जिसमें महिला को निम्न स्थान दिया गया था।"

पारा के अनुसार, वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है। हिन्दू धर्म में तो देवियों की पूजा की जाती है। उन्हें दुर्गा माता और काली माता कहा जाता है। 

वह कहती हैं, "हाँ, यह ज़रूर है कि आज के दौर में महिलाएं अपना हक पाने के लिए जो संघर्ष कर रही हैं वह हर धर्म और हर समाज में चल रहा है। यह तो पूरी दुनिया की समस्या है। हर जगह महिलाएं अपना हक पाने की कोशिश कर रही हैं।''

राजवंती कुमारी पुस्तकों से बनी इस धारणा को तोड़ने करने के लिए अपने निजी जीवन का हवाला देती हैं। 

"हर आने वाली पीढ़ी इन किताबों को पढ़ती है और हिंदू दुश्मनी को परवान चढ़ाती है। हमें यह फैसला करना होगा कि क्या हम ऐसे युवाओं की खेप तैयार कर रहे हैं, जो दूसरे धर्म के लोगों से नफ़रत करें या हम एक मजबूत और एकजुट राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं।"

उन्होंने पाकिस्तानी पाठ्यपुस्तकों में एक और महत्वपूर्ण समस्या पर प्रकाश डाला। उनका कहना है कि इन किताबों में मुस्लिम शासन के इतिहास को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया है, लेकिन हिन्दू इतिहास में इसका कोई उल्लेख नहीं है। उदाहरण के लिए, उपमहाद्वीप का इतिहास इस क्षेत्र में मुसलमानों के आगमन से शुरू होता है। पिछले हिन्दू शासकों का कोई उल्लेख नहीं है जो इस क्षेत्र में मुस्लिम शासन से पहले थे।

वास्तविक इतिहास 

संजय मिठरानी का मानना है कि यदि पाकिस्तान के मशहूर हिन्दुओं और उनकी उपलब्धियों के बारे में पाठ्यक्रम में बताया जाता है, तो न केवल हिन्दू छात्रों को इन विषयों में दिलचस्पी होगी, बल्कि अन्य छात्रों की जानकारी भी बढ़ेगी। इससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। 

पाकिस्तान में बहुत से ऐसे महत्वपूर्ण हिंदू शख्सियत रही हैं जिनका उल्लेख पाठ्य पुस्तकों में नहीं है। उदाहरण के लिए, जगन्नाथ आज़ाद ने पाकिस्तान का पहला राष्ट्रगान लिखा था, लेकिन उनका नाम कहीं नहीं है। हमारे लेखकों को ऐसे लोगों के बारे में भी लिखना चाहिए। 

शिक्षाविद एएच नैयर के अनुसार, पाकिस्तान में पूरे देश के लिए एक ही राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की तैयारी चल रही है। इसलिए पाकिस्तान में चल रही पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन किया जा रहा है।  लेकिन वे चाहते हैं कि इन नई किताबों में सभी धर्मों को समान महत्व दिया जाए और इतिहास के हर पहलू को छात्रों के सामने पेश किया जाए। 

एएच नैयर कहते हैं, "हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को वास्तविक इतिहास बताना होगा। हमें पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से पाकिस्तानी युवाओं में सहनशीलता, भाईचारे और सहिष्णुता को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।''

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