कोरोना की दूसरी लहर का संकट देश के एजेंडा पत्रकारों और भारत विरोधी विदेशी मीडिया के लिए अवसर लेकर आया है। एजेंडा पत्रकारों का उद्देश है कि चाहे देश की दुनियाभर में बदनामी हो, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने का यह अवसर हाथ से नहीं निकलना चाहिए। इसके लिए श्मशानों से लाइव रिपोर्टिंग के साथ जलती चिताओं की तस्वीरें छापकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि हालात काफी खराब है और सरकार इसकों नियंत्रित करने में नाकाम रही है। उधर देश के बाहर भी मोदी और भारत विरोधी काफी सक्रिय है। अमेरिकी मीडिया में भारत के श्मशान घाटों की फोटो पहले पन्ने पर छप रही हैं। हालात को ऐसे पेश किया जा रहा है मानो कोरोना से संक्रमित होने वाला हर मरीज मर रहा है। जबकि कोरोना से ठीक होकर घर जाने वालों के आंकड़े और सरकार के प्रयास नदारद है।
2 minutes read on what I saw last evening.
— Danish Siddiqui (@dansiddiqui) April 23, 2021
Delhi resident Nitish Kumar was forced to keep his dead mother’s body at home for nearly two days while he searched for space in the city’s crematoriums - a sign of the deluge of death in India’s capital. https://t.co/RKVUn9N972
Sir atleast use latest pictures and not one 2 yrs back
— Prasad Kulkarni (@prasadk2k) April 23, 2021
@australian How come you have been indoctrinated by #VultureJournalists
— Capt. Mohit Joshi (@imjosh007) April 26, 2021
Hope you will introspect and correct the course.... For humanity, transparency and truth
Don't #Biden it... pic.twitter.com/DrfnGTuTnJ
टूल किट वाली मीडिया हमेसा पैसा कमाने के लिये झूठ बोलकर जनता को गुमराह करती है और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नेता जो विश्व कल्याण में लगे है उनको बदनाम करती है कोरोना महामारी से लडने में और लोगो के जीवन को बचाने में मोदी जी का नेतृत्व और प्रयास सरहनीय है। pic.twitter.com/v8W6VGDvv1
— शानेहिंद (@no1countrylover) April 27, 2021
FACT. pic.twitter.com/pdtT4MXAHD
— Bismaya Mahapatra (@bismay_inc) April 26, 2021
महामारी की शुरुआत से ही भारत ने दुनिया भर के देशों की मदद की। पहले हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और अन्य आवश्यक दवाओं का निर्यात करके और बाद में ‘वैक्सीन मैत्री’ के अंतर्गत दुनिया भर के कई देशों को वैक्सीन मुहैया करवा कर।
भारत के इन प्रयासों के बाद भी विश्व का मीडिया भारत के मुश्किल समय में ‘गिद्ध पत्रकारिता’ करने से बाज नहीं आ रहा है। ऐसे में विदेशी मामलों के मंत्री एस. जयशंकर ने राजनयिकों को यह संदेश दिया है कि वो अंतरराष्ट्रीय मीडिया की इस प्रकार की नकारात्मक खबरों से दबाव में न आएँ अपितु अपने कर्त्तव्य का पालन करें।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एस. जयशंकर ने राजनयिकों को कहा है कि वो महामारी से निपटने में भारत की ‘असफलता’ का नैरेटिव गढ़ने वाली अंतरराष्ट्रीय मीडिया की खबरों को काउंटर करें।
हालाँकि ज्यादातर समय यही चर्चा हुई कि किस प्रकार भारत में कोरोनावायरस के संक्रमण की दूसरी लहर से लड़ने में विश्व के अन्य हिस्सों से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग किया जाए लेकिन यह मुद्दा भी उठाया गया कि किस प्रकार अंतरराष्ट्रीय मीडिया के पक्षपाती रवैये का सामना किया जाए। रिपोर्ट के अनुसार विदेश मंत्री जयशंकर ने राजनयिकों को कहा कि मीडिया की इस प्रकार की नकारात्मक रिपोर्टिंग से हताश होने के स्थान पर उसका काउंटर किया जाए।
भारत में कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर के बीच भारत दुनिया भर की मीडिया के बीच चर्चा का केंद्र बन गया। ये मीडिया हाउस हिन्दू रीति से जलाई जाने वाली चिताओं की तस्वीरों को दिखाकर अपने गैर-भारतीय दर्शकों अथवा पाठकों में रोमांच पैदा कर रहे हैं। विवादास्पद पत्रकार बरखा दत्त के द्वारा श्मशान से रिपोर्टिंग करने के बाद अब COVID-19 महामारी के कारण होने वाले मौतों के बाद दुखद अंतिम संस्कार की तस्वीरें, पश्चिमी मीडिया में धड़ल्ले से खरीदी और बेची जा रही हैं।
ब्रिटिश-अमेरिकी मीडिया कंपनी Getty Images ने अपनी वेबसाइट पर भारतीय अंतिम संस्कार की कई तस्वीरें लगा रखी हैं, जो उनकी वेबसाइट पर प्रकाशित होती हैं। इन तस्वीरों को दुनिया भर का कोई भी मीडिया समूह खरीद सकता है। ये तस्वीरें तीन साइज में उपलब्ध हैं जिनमें सबसे बड़ी साइज की तस्वीर की कीमत 23,000 रुपए है। हमने हाल ही में रायटर्स के द्वारा अपने होम पेज पर मात्र दो दिनों में ही भारत में जलती चिताओं पर 6 लेख और 7 तस्वीरें प्रकाशित करने पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब भारत अपने कठिन समय से गुजर रहा है तब कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया मंच जैसे न्यूयॉर्क टाइम्स, न्यूयॉर्क पोस्ट, अल-जजीरा, वाशिंगटन पोस्ट आदि ने गिद्ध पत्रकारिता करते हुए भय का माहौल बनाया और फेक न्यूज फैलाई जबकि पिछले साल जब अमेरिका अपने सबसे कठिन दौर में था तब भारतीय मीडिया ने उसका समर्थन किया था।
अप्रैल 2020 में न्यूयॉर्क, वुहान कोरोनावायरस से बुरी तरह से संक्रमित था। घरों से कचरे की तरह लाशें निकाल रही थीं। ये वो लोग थे जिन्हे टेस्ट कराने का अवसर भी नहीं मिला।
डेली बीस्ट ने उस समय लिखा था, “पहली बार गॉथमिस्ट द्वारा बताए गए आपातकालीन चिकित्सा सेवा के आंकड़ों से पता चलता है कि जिन व्यक्तियों की वायरस से मृत्यु होने की संभावना है और वो रिकॉर्ड में नहीं आए हैं, उनकी संख्या बड़े पैमाने पर हैं। अकेले मंगलवार को पांच नगरों में 256 लोगों को घर पर मृत घोषित कर दिया गया था। इस महीने तक न्यूयॉर्क शहर में लगभग 25 लोग अपने घरों में मृत पाए गए थे। यह बताया गया कि मंगलवार की अधिकांश कॉल महामारी से संबंधित थीं जो पहले ही राज्य भर में 5400 से अधिक लोगों को मार चुकी हैं और जिससे 140,386 से अधिक लोग संक्रमित हैं।”
रिपोर्ट में कहा गया कि न्यूयॉर्क सिटी फायर डिपार्टमेंट से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार दो हफ्तों में औसतन 2192 ‘डेड ऑन अराइवल’ कॉल प्राप्त हुई थीं। जबकि डिपार्टमेंट ने पिछले साल में उसी समयान्तराल में मात्र 453 ऐसी कॉल प्राप्त की थी। इसके अलावा न्यूयॉर्क शहर में 45 रेफ्रीजरेटेड ट्रक स्टैन्डबाय मोड पर रखे गए थे जिससे लाशों को उनमें रखा जा सके और बाद में गिना जा सके।
महामारी ने बिना किसी भेदभाव के दुनिया भर के देशों को अपना निशाना बनाया है। पश्चिमी देश भी जो भारत की आलोचना को अपना अधिकार मानते हैं, इस महामारी से अछूते नहीं रहे और उनकी मृत्यु दर भी कहीं अधिक रही। जहाँ भारत में 208,330 मौतें हुईं वहीं अमेरिका में 589,207 मौतें दर्ज की गईं। महामारी शुरू होने के बाद से अब तक अमेरिका में 33 मिलियन लोग संक्रमित हो चुके हैं जबकि भारत में यह सँख्या 18 मिलियन ही है जबकि दोनों देशों की जनसँख्या में बहुत बड़ा अंतर है। भारत में महामारी की मृत्यु दर 1% है जबकि अमेरिका में यह 2% है।
अतः पश्चिमी मीडिया को भारत में कोविड-19 की रिपोर्टिंग पर नैतिकता और धैर्य का परिचय देना चाहिए। इस विषय में विदेश मंत्री एस. जयशंकर का बयान भी मायने रखता है जब वह कहते हैं कि मीडिया के द्वारा भारत के विषय में चलाए जा रहे प्रोपेगंडा से निराश होने के बजाय उसका सामना करना होगा और उसका काउंटर भी किया जाना चाहिए।
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