पुस्तक समीक्षा : भारत पर गांधीवाद की काली छाया : डॉ राकेश कुमार

समीक्षक श्रीनिवास आर्य,
सह संपादक, उगता भारत

उगता भारत के मुख्य संपादक डॉ नवीनतम पुस्तक "इतिहास पर गांधीवाद की छाप" में लेखक ने तुष्टिकरण के पुजारी नेताओं द्वारा महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता के नायक के रूप में भ्रामक प्रचार कर देश की जनता को अंधेरे में रख तुष्टिकरण के जनक को उसी तरह महान बता राष्ट्रपिता से अलंकृत कर दिया। जबकि कुछ वर्ष पूर्व एक RTI के माध्यम से दो भ्रामक प्रचारों का पर्दाफाश हुआ;एक किसी ने गाँधी को राष्ट्रपिता से नहीं नवाजा; और दूसरी नोटों पर गाँधी की फोटो प्रकाशित किये जाने की किसने इजाजत दी, कुछ नहीं पता। यानि आज तक किस सीमा तक जनता को अँधेरे में रखा जा रहा है।

यह पुस्तक डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है। पुस्तक प्राप्ति के लिए 011 - 4071 2200 पर संपर्क किया जा सकता है । पुस्तक का मूल्य ₹150 है। पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या 153 है।

इसमें कोई दो राय नहीं, कि भारत को सबसे ज्यादा नुकसान गाँधी-नेहरू के ही कारण हुआ है। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि महान बलिदानी क्रांतिकारियों को भुलाकर आज़ादी का सेहरा गाँधी-नेहरू के सर पर सजा कर उन सभी बलिदानियों को घोर अपमान है। गाँधी की तुष्टिकरण नीतियों के ही कारण छद्दम देशप्रेमी चाहे वह किसी भी पार्टी से सम्बन्धित हो, गाँधी को किसी देवता से कम नहीं पूजते, क्योकि इसी तुष्टिकरण के जनक गाँधी के नाम से इन सबकी रोजी-रोटी चल रही है।

गाँधी की तुष्टिकरण नीति के कारण तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व भी गाँधी से नफरत करने लगा था। वर्ना क्या कारण था कि नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारे जाने के बाद 40 मिनट तक जीवित गाँधी को किसी हस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया? अगर गाँधी इतने बड़े क्रांतिकारी थे, फिर क्यों गाँधी के मरने का इंतज़ार किया जा रहा था? कौन देगा इसका जवाब?

गांधीजी एक व्यक्ति के रूप में और कहीं तक एक नेता के रूप में भी अनेकों लोगों को स्वीकार्य हो सकते हैं । आपत्ति इस बात पर जाकर होती है जब उन्हें भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का एकमात्र नायक सिद्ध किया जाता है और इस सिद्धि के बेतुके प्रयास में उन्हें 'राष्ट्रपिता' घोषित कर दिया जाता है। उन्होंने भारतीय इतिहास की परिभाषा को बदलने का उस समय प्रयास किया जब उन्होंने अहिंसा का गलत अर्थ करते हुए निर्मम और आततायी विदेशी शासक के विरुद्ध चल रहे क्रांतिकारी आंदोलन को 'आतंकी आंदोलन' कहा।

प्रस्तुत पुस्तक में डॉक्टर आर्य ने देश के लोगों को यह बताने का प्रयास किया है कि गांधीवाद की काली छाया ने देश को किस प्रकार अंधेरी सुरंग में धकेल दिया है ? 17 जुलाई 1967 को उत्तर प्रदेश के जनपद गौतम बुद्ध नगर के महावड़ नामक गांव में जन्मे लेखक की अब तक 57 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
डॉ. आर्य का स्पष्ट मानना है कि जिस प्रकार गांधी जी ने शत्रु के समक्ष घुटने टेक कर माफी मांगने की मुद्रा को अपनी राजनीति का सफलतम प्रयोग कहा और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारियों ने भी देश को इसी नीति पर डाल दिया वह पूर्णतया गलत था। जिसका परिणाम यह हुआ कि स्वतंत्र भारत में भी आतंकियों के सामने सरकारें घुटने टेककर बैठी रहीं। राजनीति और राजनीति के शौर्य को, राष्ट्र और राष्ट्रनीति के तेजस्वी स्वरूप को गांधीवाद का पाला मार गया।

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