क्या महात्मा गांधी जन्मजात हिन्दू विरोधी थे ?

आज देश नहीं बल्कि तुष्टिकरण पुजारी महात्मा गांधी जयंती मना रहे है। आप जानते ही होंगे कि महात्मा गांधी ने आजादी में न सिर्फ देश की मदद की बल्कि पूरे विश्व को अहिंसा के रास्ते पर चलने की सीख दी। 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्म हुआ था और इस दिन सभी ने उन्हें याद किया था। इस मौके पर आज हम आपको महात्मा गांधी को गोलियों से भूनने वाले नाथू राम गोडसे के बारे में बात करते हैं। जिस नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर आत्म समर्पण कर दिया था, भागा नहीं था। इसके बाद उन्हें कोर्ट में जज के सामने पेश किया गया। बयानों के बाद, उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। आज हम आपको नाथूराम गोडसे के उस आखिरी बयान के बारे में बताने जा रहे हैं जो उन्होंने जज के सामने दिया था। यह सुनकर कोर्ट में सब नम हो गए।

गाँधी नाम की माला जपने वालों इस कवि के भावों को समझना होगा:-

कोर्ट में जज के सामने नाथूराम गोडसे का आखिरी बयान:-
अपने देशवासियों के प्रति सम्मान, कर्तव्य और प्रेम हमें कभी-कभी अहिंसा के सिद्धांत से भटकने पर मजबूर कर देता है। मैं यह कभी नहीं मान सकता कि किसी आक्रमण का सशस्त्र प्रतिरोध कभी-कभी गलत या अन्यायपूर्ण हो सकता है। मैं इसका विरोध करना और यदि संभव हो तो ऐसे दुश्मन को मजबूर करना एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूं। मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस ने उनकी मर्जी के आगे घुटने टेक दिए और उनकी मर्जी की आवाज, मनमानी और आदिम व्यवहार में शामिल हो गए या उनके बिना काम किया। वह अकेले ही सब कुछ और व्यक्ति का न्यायाधीश था।

महात्मा गांधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे। गांधीजी ने मुसलमानों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा की सुंदरता और महिमा को बर्बाद कर दिया। गांधीजी के सभी परीक्षण हिंदुओं की कीमत पर ही किए गए थे। कांग्रेस, जिसने अपनी देशभक्ति और समाजवाद का घमंड किया। उसने बंदूक की नोक पर गुप्त रूप से पाकिस्तान के सामने कबूल किया और जिन्ना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े-टुकड़े हो गए और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई हिस्सा हमारे लिए विदेशी भूमि बन गया। जवाहर लाल नेहरू और उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ-साथ एक धर्म के आधार पर एक अलग क्षेत्र बनाया गया था। इसे ही वे बलिदानों से प्राप्त स्वतंत्रता को किसका बलिदान कहते हैं?

तभी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने गांधीजी की स्वीकृति से इस देश को काट डाला, जिसे हम भक्ति की वस्तु मानते हैं, मेरा मन भयानक क्रोध से भर गया। गांधी अपने कर्तव्य में विफल रहे। उन्होंने खुद को पाकिस्तान का पिता साबित किया। मैं कहता हूं कि मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गईं जिसकी नीतियों और कार्यों के कारण लाखों हिंदुओं का विनाश और विनाश हुआ। ऐसी कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके, इसलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया। मैं अपने लिए माफी नहीं मांगूंगा, मैंने जो किया उस पर मुझे गर्व है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इतिहास के ईमानदार लेखक भविष्य में किसी दिन मेरे काम को तौलेंगे और उसका सही मूल्यांकन करेंगे। जब तक सिंधु नदी भारत के झंडे के नीचे नहीं बहती, तब तक मेरी अस्थियों को विसर्जित मत करो।

गांधी जन्मजात हिन्दू विरोधी थे 

इतिहास की एक अविस्मरणीय दुर्घटना: मोहनदास करमचंद गांधी को समझने के लिए ये छोटा सा आर्टिकल बहुत है। गांधी जन्मजात हिन्दू विरोधी थे ।

1920 में अचानक भारत की तमाम मस्जिदों से दो पुस्तकें वितरित की जाने लगी! एक पुस्तक का नाम था “कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी", और दूसरी पुस्तक का नाम था "उन्नीसवीं सदी का लंपट महर्षि"! ये दोनों पुस्तकें "अनाम" थीं! इसमें किसी लेखक या प्रकाशक का नाम नहीं था, और इन दोनों पुस्तकों में भगवान श्री कृष्ण, हिंदू धर्म, इत्यादि पर बेहद अश्लील, बेहद घिनौनी बातें लिखी गई थीं!

और इन पुस्तकों में तमाम देवी-देवताओं के बेहद अश्लील रेखाचित्र भी बनाए गए थे!

और धीरे-धीरे, ये दोनों पुस्तकों को भारत की हर एक मस्जिद में से वितरित की जाने लगीं!

यह बात जब गांधी तक पहुंची, तो गांधी ने इसे "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की बात बता कर, गौण कर दिया, और कहा भारत में सब को अपनी बात रखने का हक है!

लेकिन इन दोनों पुस्तकों से, भारत का जनमानस बहुत उबल रहा था!

फिर 1923 में लाहौर स्थित "राजपाल प्रकाशक" के मालिक "महाशय राजपाल जी" ने एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसका नाम था "रंगीला रसूल"! 

उस पुस्तक के लेखक का नाम गुप्त रखा गया था, और लेखक की जगह लिखा था "दूध का दूध, और पानी का पानी"  

हालांकि उस पुस्तक के असली लेखक पंडित चंपूपति थे, जो इस्लाम के जाने-माने विद्वान थे!

और सबसे अच्छी बात यह थी, कि उस पुस्तक में कहीं कोई झूठ नहीं था, बल्कि  तमाम सबूतों के साथ, बकायदा आयत नंबर, हदीस नंबर, इत्यादि देकर, कई बातें लिखी गई थीं!

देढ वर्षों तक "रंगीला रसूल" बिकता रहा पूरे भारत में! कहीं, कोई बवाल नहीं हुआ! लेकिन एक दिन अचानक २८ मई १९२४ को गांधी ने अपने समाचारपत्र "यंग इंडिया" में एक लंबा-चौड़ा लेख लिखकर, "रंगीला रसूल" पुस्तक की खूब निंदा की, और अंत में ३ पंक्तियां ऐसी लिखी: ➳

"मुसलमानों को स्वयं ऐसी पुस्तक लिखने वालों को सजा देनी चाहिए! 

गांधी का ये लेख पढ़कर, पूरे भारत के मुसलमान भड़क गए! और "राजपाल प्रकाशक" के मालिक महाशय राजपाल जी के ऊपर ३ वर्षों में ५ बार हमले हुए, लेकिन गांधी ने एक बार भी हमले की निंदा नहीं की!

मजे की बात यह कि कुछ मुस्लिम विद्वानों ने उस पुस्तक "रंगीला रसूल" का मामला लाहौर उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) में दायर किया!

हाईकोर्ट ने चार इस्लामिक विद्वानों को न्यायालय में खड़ा करके, उनसे पूछा कि इस पुस्तक की कौन सी पंक्ति सही नहीं है, आप वह बता दीजिए!

चारों इस्लामिक विद्वान इस बात पर सहमत थे, कि इस पुस्तक में कोई गलत बात नहीं लिखी गई है!

फिर लाहौर उच्च न्यायालय ने महाशय राजपाल जी पर मुकदमा खारिज कर दिया! और उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया.... !!

फिर उसके बाद, ३ अगस्त १९२४ को गांधी ने "यंग इंडिया" समाचारपत्र में एक और भड़काने वाला लेख लिखा, और इस लेख में उन्होंने इशारों इशारों में ऐसा लिखा था कि "जब व्यक्ति को न्यायालयों से न्याय नहीं मिले, तब उसे अपनेआप प्रयास करके न्याय ले लेना चाहिए!"  

उसके बाद महाशय राजपाल जी के ऊपर दो बार और हमले के प्रयास हुए, और अंत में ६ अप्रैल १९२९ का हमला जानलेवा साबित हुआ, जिसमें मोहम्मद इल्म दीन नामक एक युवक ने, गदा से महाशय राजपाल जी के ऊपर कई वार किए, जिनसे उनकी जान चली गई!

जिस दिन उनकी हत्या हुई, उसके ४ दिन बाद गांधी लाहौर में थे, लेकिन गांधी महाशय राजपाल जी के घर पर शोक प्रकट करने नहीं गए, और ना ही अपने किसी संपादकीय में महाशय राजपाल जी की हत्या की निंदा की!

उसके बाद, अंग्रेजों ने मुकदमा चलाकर, मात्र ६ महीने में महाशय राजपाल जी के हत्यारे इल्म दीन को फांसी की सजा सुना दी। 

और वो भी इसलिए कि इस देश में पूरा हिंदू समाज उबल उठा था, और अंग्रेजो को लगा कि यदि उन्होंने जल्दी फांसी नहीं दी, तब अंग्रेजी शासन को भी खतरा हो सकता है!

उसके बाद ४ जून १९२९ को गांधी ने अंग्रेज वायसराय को चिट्ठी लिखकर महाशय राजपाल जी के हत्यारे की फांसी की सजा को माफ करने का अनुरोध किया था!

और उसके अगले दिन, अपने समाचारपत्र "यंग इंडिया" में एक लेख लिखा था, जिसमें गांधी ने यह साबित करने का प्रयत्न  किया थी कि यह हत्यारा तो निर्दोष है, नादान है, क्यों कि उसे अपने धर्म का अपमान सहन नहीं हुआ, और उसने गुस्से में आकर यहहत्या करने का निर्णय लिया!

दूसरी तरफ, तब के जाने-माने बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्नाह ने भी, लाहौर हाईकोर्ट में बकायदा एक बैरिस्टर की हैसियत से, इस मुकदमे में पैरवी करते हुए, यह कहा था, कि अपराधी मात्र १९ वर्ष का लड़का है, लेकिन इसने जघन्य अपराध किया है! इसके अपराध को कम नहीं समझा जा सकता! लेकिन इसकी आयु को देखते हुए, इसकी फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दी जाए, या फिर इसे काले पानी जेल में भेज दिया जाए!

लेकिन अंग्रेजों ने ३१अक्टूबर १९२९ को महाशय राजपाल जी के हत्यारे मोहम्मद इल्म दीन को लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया!

२ नवंबर १९२९ को गांधी ने "यंग इंडिया" में इल्म दीन को फांसी देने को इतिहास का काला दिन लिखा!

अब आप स्वयं समझ सकते है कि गाँधी किस किस्म के मानव थे!

मंगल पांडे को फाँसी

तात्या टोपे को फाँसी

रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेज सेना ने घेर कर मारा

भगत सिंह को फाँसी

सुखदेव को फाँसी

राजगुरु को फाँसी

चंद्रशेखर आजाद का एनकाउंटर अंग्रेज पुलिस द्वारा

सुभाषचन्द्र बोस को गायब करा दिया गया

भगवती चरण वोहरा बम विस्फोट में मृत्यु❓

रामप्रसाद बिस्मिल को फाँसी

अशफाकउल्लाह खान को फाँसी

रोशन सिंह को फाँसी

लाला लाजपत राय की लाठीचार्ज में मृत्यु

वीर सावरकर को कालापानी की सजा

चाफेकर बंधू (३ भाई) को फाँसी

मास्टर सूर्यसेन को फाँसी

ये तो कुछ ही नाम है जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम और इस देश की आजादी में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया

कई वीर ऐसे है हम और आप जिनका नाम तक नहीं जानते 

एक बात समझ में आज तक नही आई कि भगवान ने गांधी और नेहरु को ऐसे कौन से कवच-कुण्डंल दिये थे

जिसकी वजह से अग्रेंजो ने इन दोनो को फाँसी तो दूर, कभी एक लाठी तक नही मारी

उपर से यह दोनों भारत के बापू और चाचा बन गए❓

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