सुप्रीम कोर्ट 9 सितम्बर, 2022 को पूजा स्थल अधिनियम, 1991 (Worship Act) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि तीन न्यायाधीशों की पीठ 11 अक्टूबर को याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने केंद्र से दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।
ये याचिकाएँ अधिनियम के खिलाफ दायर की गई हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की समीक्षा की माँग करने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए याचिकाएँ दायर की थीं। जमीयत ने शीर्ष अदालत से अपील की थी कि वह चुनौती देने वाली याचिकाओं के संबंध में नोटिस भी जारी न करे और उन्हें खारिज कर दे। जमीयत के मुताबिक, नोटिस जारी करने से मुस्लिमों में डर पैदा होगा।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीठ दिल्ली भाजपा के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय, भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी और कुछ अन्य लोगों द्वारा पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही है। आज की सुनवाई में जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जो मामले में हस्तक्षेप करने की माँग कर रहा है) की ओर से पेश अधिवक्ता एजाज मकबूल ने कहा कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। वहीं उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि उन टिप्पणियों का ढिंढोरा पीटा गया था।
जमीयत की ओर से तर्क दिया कि अगर अदालत अधिनियम की समीक्षा करने के लिए सहमत होती है, तो देश में मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी। दिलचस्प बात यह है कि ऐसे समय में जब श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद और ज्ञानवापी विवादित ढाँचे का मामला सुर्खियों में है, सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अगस्त 2022 में निचली अदालत को कृष्ण जन्मभूमि के विवादित हिस्से के सर्वेक्षण से संबंधित याचिका पर चार महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया था।
No comments:
Post a Comment