साभार: न्यूज-18
सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर को आधिकारिक रूप से यह फैसला दिया है कि अगर कोई रेप पीड़िता या यौन पीड़िता के साथ ‘टू-फिंगर या थ्री फिंगर (Two Finger or Three Finger)’ टेस्ट करता है तो उसको दोषी माना जाएगा।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि इस तरह के परीक्षण करने के पीछे एकमात्र कारण होता है कि ये पता लगाया जा सके कि लड़की सेक्सुअली एक्टिव थी या नहीं। ऐसा करके लड़की को दोबारा से पीड़ित बनाया जाता है। उसका दोबारा से शोषण होता है। ये कोई वैज्ञानिक परीक्षण नहीं होते।
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— Live Law (@LiveLawIndia) October 31, 2022
While dictating a judgment a Bench led by J. Chandrachud remarked -
“This court has time and again deprecated the use of two finger test in cases alleging rape and sexual assault. The so called test has no scientific basis...
The probative value of a woman’s testimony does not depend on her sexual history. It is patriarchal and sexist to suggest that a woman cannot be believed when she states that she was raped merely because she is sexually active."
— Live Law (@LiveLawIndia) October 31, 2022
साल 2013 में भी टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया गया था। लिलु राजेश वर्सेज हरियाणा स्टेट केस में सर्वोच्च न्यायालय ने टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक बताया था। कोर्ट ने इसे दुष्कर्म पीड़िता की निजता और उसके सम्मान का हनन करने वाला करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि टू फिंगर, शारीरिक और मानसिक चोट पहुँचाने वाला टेस्ट है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में इस परीक्षण पर पर रोक लगाते हुए कहा कि ऐसे परीक्षण गलत धारणाओं पर होते हैं कि एक सेक्सुअली एक्टिव महिला का रेप नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि एक महिला की गवाही उसके सेक्सुअल हिस्ट्री पर निर्भर नहीं करती। ये कहना कि महिला का बलात्कार इसलिए हुआ क्योंकि वो सेक्सुअली एक्टिव थी, केवल पितृसत्तात्मक और सेक्सिस्ट सोच है।
c. Review curriculums in medical schools that the two finger test is not prescribed as one of the procedures to be adopted while examining survivors of sexual assault and rape.
— Live Law (@LiveLawIndia) October 31, 2022
कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वो स्वास्थ्य विभाग के निर्देश सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में बताएँ। वर्कशॉप हों और समझाया जाए कि कैसे एक यौन शोषण पीड़िता का परीक्षण किया जाएगा। उन्होंने आदेश दिया कि मेडिकल स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव हों और बताया जाए कि इस तरह के टेस्ट रेप पीड़िता या यौन शोषण की पीड़िता का चेक अप करने के लिए नहीं सुझाए जाएँगे।
हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए बैन के बाद भी ऐसी खबरें आती थीं कि दुष्कर्म पीड़िताओं के साथ इस तरह के टेस्ट किए जा रहे हैं। इसलिए 2019 में इस संबंध में दोबारा कोर्ट में शिकायत हुई। याचिका में बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी ये टेस्ट हो रहा है। इसलिए जो भी डॉक्टर ये टेस्ट करता पाया जाए उसका लाइसेंस रद्द हो जाना चाहिए।
टू-फिंगर टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में एक या दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्ट होती है। इससे पता लगाया जाता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने या नहीं। इस टेस्ट में महिला की वजाइना की मांसपेशियों के लचीलेपन को देखा जाता है।
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