बिहार : इतिहास की धज्जियाँ उड़ाते शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ; इंडिया गेट पर ‘व्हाट्सएप्प ज्ञान’ बाँटते पकड़े गए

अगर भारत को बिहार के शिक्षा मंत्री जैसे दो/तीन और शिक्षा मंत्री मिल जाएं, पिछली सरकारों ने जो इतिहास का पलीता किया, चंद्रशेखर यादव जैसे अज्ञानी शिक्षा मंत्री और नाश पीट देंगे। सनातन विरोधियों को हिन्दुत्व और गौरवमयी भारतीय इतिहास को कलंकित करने का हथियार थमाया जा रहा है। ऐसे अज्ञानी शिक्षा मंत्री को जनता को ऐसी धूल चटवानी चाहिए कि इसकी पुश्तें याद रखे। इन्हीं अज्ञानी मंत्रियों और नेताओं के ही कारण इतिहास (देखिए वीडियो) वास्तविक से बहुत दूर कर दिया था।
पता नहीं कहाँ से नितीश कुमार ऐसे अज्ञानी को ले आए। 
हाल ही में बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने तुलसीदास कृत रामचरितमानस को घृणा फैलाने वाला ग्रन्थ करार दिया था। उन्होंने पटना में आयोजित ‘नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी’ के दीक्षांत समारोह में भाषण देते हुए ये बात कही थी, जिसके बाद उनकी आलोचना करते हुए हिन्दू संगठनों ने आपत्ति जताई थी। वहीं अब बिहार के शिक्षा मंत्री, जो कि प्रोफेसर भी हैं, उनका दिल्ली स्थित इंडिया गेट को लेकर गलत दावा वायरल हो रहा है।

RJD नेता ने 20 अप्रैल, 2020 को ट्विटर पर इंडिया गेट की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा था, “संघियों एवं मनुवादियों के देश में योगदान की क्रोनोलॉजी – इंडिया गेट, दिल्ली के शिलापट्ट पर फिरंगियों के खिलाफ जंग में आहूति देने वाले 95,395 अमर बलिदानियों में 61395 मुस्लिम, 8050 सिख, 14480 पिछड़े, 10777 दलित, 598 सवर्ण, 00 (शून्य) संघी। मनुवादी संघियो को ढूँढें।” उन्होंने जो तस्वीर शेयर की, उस पर भी ये आँकड़े लिखे थे।

                                       बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव द्वारा किया गया ट्वीट

साथ ही तस्वीर में ये भी दावा किया गया था कि इंडिया गेट पर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखे हैं। इस तस्वीर को देखने से ही ऐसा लग रहा है कि किसी ने उन्हें व्हाट्सएप्प पर भेजा था और उन्होंने उसे वैसे ही उठा कर शेयर कर दिया। रामचरितमानस को घृणा फैलाने वाला ग्रन्थ बताने वाले चंद्रशेखर यादव इस्लाम को प्यार का सन्देश देने वाला मजहब बताते रहे हैं, ऐसे में उनकी हिन्दू विरोधी मानसिकता को लेकर कोई शक तो नहीं ही है।

सच्चाई क्या है। असल में इसमें स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखे ही नहीं है। इस पर प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध (1919) में मृत ‘ब्रिटिश इंडिया आर्मी’ के सैनिकों के नाम लिखे हैं। ये एक वॉर मेमोरियल है, जिस पर 13,000 से भी अधिक सैनिकों के नाम लिखे हैं। ये ‘ब्रिटिश इंडियन आर्मी’ के उन सभी 70,000 सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है, जो इन युद्धों में मारे गए थे।

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दिसंबर 1917 में गठित ‘इम्पीरियल वॉर ग्रेव्स कमीशन’ के अंतर्गत इसे बनाया गया था। 10 फरवरी, 1921 को इसका शिलान्यास हुआ था और 2 फरवरी, 1931 को इसका उद्घाटन किया गया था। जबकि भारत 1947 में आज़ाद हुआ। आज़ादी से 16 वर्ष पहले ही बन कर तैयार हुए इस स्मारक में स्वतंत्रता सेनानियों के नाम हैं ही नहीं। इसीलिए, इस पर 61,000 मुस्लिम सैनिकों के नाम होने की बात झूठी है। कई बार ये दावा शेयर होता रहा है।

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