रामायण धारावाहिक : सबसे मुश्किल काम था, काकभुशंडी और शिशु राम के दृश्य फिल्माना


जब टीवी पर रामानन्द सागर निर्मित रामायण के प्रसारण के दौरान गलियों और सडकों पर होने सन्नाटे के पीछे क्या स्वयं पुरुषोत्तम श्रीराम का आशीर्वाद था। निर्माता-निर्देशक रामानन्द सागर ने जिस लगन और भक्ति भावना से इसे प्रस्तुत किये जाने का परिणाम था। निस्संदेह सागर के प्रयासों को देख, आभास होता है शायद पुरुषोत्तम श्रीराम स्वयं रामानन्द के शरीर में विराजमान होकर अनेकों कठिनाइयों को दूर कर रहे थे। 
मालूम हो कि जब भगवान शिव मां पार्वती को भगवान राम की कथा सुना रहे थे तो कागभुसुंडि जी चुपके से पीछे बैठकर सुन रहे थे। उन्हीं की वजह से ये कथा  धरती पर आई। उन्होंने इस कथा को पंछियों की महासभा में इसे सुनाया और इस तरह आगे बढ़ते-बढ़ते ये संत तुलसीदास तक पहुंच गई। 
रामायण में एक छोटा सा सीक्वेंस है कि एक बार दशरथ के महल में छोटा सा बालक जो कि विष्णु अवतार भगवान श्रीराम थे, वो बालक रोटी खाता हुआ रो रहा था और मां को पुकार रहा था। कागभुसुंडि जी ने जब देखा तो सोचा कि ये छोटा सा बालक भगवान हो सकता है जो अपनी रोटी नहीं बचा सकता? उन्हें लगा कि ये जरूर कोई ढोंगी है। मैं जाकर इसकी परीक्षा लेता हूँ।  कागभुसुंडि ने जाकर उस बालक की रोटी छीन ली। प्रेम सागर ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके पिता रामानंद सागर ने ये किस्सा सोच तो लिया लेकिन इसे शूट कैसे करना है ये उन्हें समझ नहीं आ रहा था। वो उस वक्त उमरगांव में शूटिंग कर रहे थे। जगह थी वृंदावन स्टूडियोइस जगह पर बहुत पेड़ थे और शाम को सूरज डूबते ही सारे कौवे चिल्लाने लगते थे 
रामायण धारावाहिक की शुटिंग के समय निर्देशक रामानंद सागर के लिये सबसे मुश्किल काम था, काकभुशंडी और शिशु राम के दृश्य फिल्माना। दोनो ही निर्देशक के आदेश का तो पालन करने से रहे।

यूनिट के सौ से अधिक सदस्यो और स्टूडियो के लोग कौए को पकड़ने में घंटों लगे रहे। पूरे दिन की कड़ी मेहनत के बाद वे चार कौओं को जाल में फँसाने में सफल हो गए। चारों को चेन से बाँध दिया गया, ताकि वे अगले दिन की शूट से पहले रात में उड़ न जाएँ। सुबह तक केवल एक ही बचा था और वह भी अल्युमीनियम की चेन को अपनी पैनी चोंच से काटकर उड़ जाने के लिए संघर्ष कर रहा था।
अगले दिन शॉट तैयार था। कमरे के बीच शिशु श्रीराम और उनके पास ही चेन से बँधा कौआ था। लाइट्स ऑन हो गई थीं। रामानंद सागर शांति से प्रार्थना कर रहे थे, जबकि कौआ छूटने के लिए हो-हल्ला कर रहा था। वे उस भयभीत कौए के पास गए और काकभुशुंडी के समक्ष हाथ जोड़ दिए,और फिर आत्मा से याचना की “काकभुशुंडीजी, रविवार को इस एपिसोड का प्रसारण होना है, मैं आपकी शरण में आया हूँ, कृपया मेरी सहायता कीजिए।" निस्तब्ध सन्नाटा छा गया, चंचल कौआ एकदम शांत हो गया ऐसा प्रतीत होता था, जैसे कि काकभुशुंडी स्वयं पृथ्वी पर उस बंधक कौए के शरीर में आ गए हों।
रामानंद सागर ने जोर से कहा, 'कैमरा' 'रोलिंग', कौए की चेन खोल दी गई और 10 मिनट तक कैमरा चालू रहा। रामानंद सागर निर्देश देते रहे, “काकभुशुंडीजी, शिशु राम के पास जाओ और रोटी छीन लो।” कौए ने निर्देशों का अक्षरश: पालन किया, काकभुशंडीजी ने रोटी छीनी और रोते हुए शिशु को वापस कर दी, उसे संशय से देखा, उसने प्रत्येक प्रतिक्रिया दर्शायी और दस मिनट के चित्रांकन के पश्चात् उड़ गया।
निस्संदेह वे काकभुशुंडी (कागराज) ही थे, जो रामानंद सागर का मिशन पूरा करने के लिए पृथ्वी पर उस कौए के शरीर में आए थे।
किताब रामानंद सागर के जीवन की अकथ कथाएँ!

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