सेम सेक्स मैरेज यानी समलैंगिक विवाह मामले पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ रोजाना सुनवाई कर रही है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि विद्वान जजों की नजर में यह कितना महत्वपूर्ण विषय है। जबकि वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में 11 हजार मामले पेंडिंग हैं। एक नजर में देखा जाए तो यह नया कानून बनाने का मामला है जो कि संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस लिहाज से इस विषय को संसद पर ही छोड़ देना चाहिए था। खैर, अब तो रोजाना आधार पर सुनवाई हो रही है और पांच-सदस्यीय संविधान पीठ गोद लेने, उत्तराधिकार, पेंशन से जुड़े कानून और ग्रेच्युटी आदि विषयों पर कई कानूनी सवालों से जूझ रही है। इस बीच एक दिलचस्प जानकारी निकलकर आई है कि सेम सेक्स मैरेज के याचिकाकर्ताओं की तरफ से जो नामी वकील दलीलें पेश कर रहे हैं उनका रोजाना फीस करीब 1 करोड़ रुपये है। ऐसे में सवाल उठता है कि यह एक करोड़ रुपये कहां से आ रहा है। इससे विदेशी साजिश और भारत पर पश्चिम की संस्कृति थोपने की साजिश की बू आती है।
17 costly lawyer fighting case for same sex marriage petitioners
— STAR Boy (@Starboy2079) April 26, 2023
Their daily total fee is approx Rs 1 crore
Who is paying this money ?#SameSexMarriage is just face their real target is gender fuildity n trans movement, its biggest conspiracy against Indian civilization https://t.co/FrgDFSNgdX pic.twitter.com/wj9eBferGc
Born LGBT is ok but agenda is forced LGBT
— STAR Boy (@Starboy2079) April 26, 2023
to convert straight kids into LGBT by education n media
कौन दे रहा वकीलों का रोजाना करीब 1 करोड़ फीस
टि्वटर यूजर @Starboy2079 ने वकीलों की फीस से संबंधित ट्वीट किया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से इस केस को लड़ रहे वकीलों की फीस पर गौर करें तो पाएंगे तो इनकी फीस रोजाना 1 करोड़ के करीब बैठती है। इस केस को लड़ने वाले वकीलों की फीस देखें- कपिल सिब्बल 15 लाख रुपये प्रति सुनवाई, मुकुल रोहतगी 15 लाख रुपये प्रति सुनवाई, अभिषेक मनु सिंघवी 10 लाख, केवी विश्वनाथन 4 लाख, राजू रामचंद्रन 4 लाख, जयना कोठारी 4 लाख, वृंदा ग्रोवर 4 लाख, अरुंधती काटजू 3 लाख, सौरभ किरपाल 3 लाख, करुणा नंदी 3 लाख, गीता लूथरा 2 लाख, आनंद ग्रोवर 2 लाख, अनीता शेनाय 2 लाख, मेनका गुरुस्वामी 2 लाख, राघव अवस्थी 2 लाख, शिवम सिंह 1 लाख, नमिता सक्सेना 1 लाख रुपये प्रति सुनवाई। यानी इनकी फीस देखें तो करीब 77 लाख से 1 करोड़ रुपये प्रतिदिन बैठती है। यह आंकड़े एक औसत आकलन है जो विभिन्न समाचार माध्यमों से लिया गया है। असल आंकड़ा इससे कम या ज्यादा हो सकता है।
Awww, so when Lord Moonpowder was sermonising over ‘no absolute notions of biological male or female’ it was the Supreme Court’s job? But now that @asadowaisi and his merry mullahs have openly opposed same-sex marriage, it isn’t? pic.twitter.com/jkYtJ78Ebr
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) April 26, 2023
2024 लोकसभा चुनाव से पहले समलैंगिक आंदोलन खड़ा करने की साजिश
सेम सेक्स मैरेज केस की जिस तरह रोजाना सुनवाई हो रही है। इससे इस संदेह को भी बल मिलता है इसमें विदेशी ताकतें शामिल हैं। सेम सेक्स मैरेज केस का असली मकसद 2024 लोकसभा चुनाव से पहले समलैंगिक आंदोलन (ट्रांस मूवमेंट) खड़ा करना है। जिससे देश की कानून व्यवस्था को अस्थिर किया जा सके। यह भारतीय सभ्यता के खिलाफ एक बड़ी साजिश भी है जो परिवार के ताने-बाने छिन्न-भिन्न करना चाहते हैं।
सामान्य व्यक्ति को डेट नहीं मिलती, समलैंगिक याचिका पर तत्काल सुनवाई
कुछ बेतरतीब समलैंगिक जोड़े याचिका दायर करते हैं। और उन सबकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में रोजाना होने लगती है। एक सामान्य व्यक्ति को सालों तक सुनवाई के लिए डेट नहीं मिलती है लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट उन्हें तत्काल सुनवाई की डेट ही नहीं देती बल्कि संविधान पीठ रोजाना आधार पर सुनवाई करने लगती है। केस लड़ने के लिए याचिकाकर्ताओं की ओर से देश महंगे हायर किए गए हैं। केंद्र सरकार कह चुकी है कि कानून बनाना संसद का काम है इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट एकतरफा तौर पर सुनवाई कर रही है। जैसे-जैसे सुनवाई आगे बढ़ रही है, कई जटिलताएं भी सामने आ रही है।
My Dear Hon SC Justices and Hon CJI :
— Kailash Wagh 🇮🇳 (@KailashGWagh) April 21, 2023
1) this is not #trolling and neither intention to hurt any of our Hon MiLords and not to cause #contempt of any Milord, courts.
2)Hon MiLords, who gave you the right to make changes in #SpecialMarriageAct ?
3)Hon MiLords why you want to… pic.twitter.com/GSyuA3MoWY
Hon President Respected Madam, PM narendramodi Sir, KirenRijiju PMOIndia :
— Kailash Wagh 🇮🇳 (@KailashGWagh) April 22, 2023
1) again no offence meant to our respected MiLords and all our Hon Courts.
2) this is not trolling nor intention to cause contempt of our Beloved MiLords and Hon CJI. We love & respect all our MiLords… pic.twitter.com/02oM06cPvE
संविधान पीठ के जज बैचमेट, क्या यह हितों का टकराव नहीं है?
टि्वटर यूजर @KailashGWagh ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है कि क्या यह सही नहीं है कि संविधान पीठ के 5 जजों में से 3/4 जज SameSexMarriage मामले की सुनवाई कर रहे CLC के बैचमेट हैं? क्या यह हितों का टकराव नहीं है? आप संसद को बायपास क्यों करना चाहते हैं और विशेष विवाह अधिनियम में संशोधन क्यों करना चाहते हैं? संविधान सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा पारित कानूनों को बदलने की अनुमति नहीं देता है, जिसके पास केवल नए कानूनों में संशोधन/बनाने का अधिकार है!
यह संसद में चर्चा का विषय है, ज्यूडिशियरी में नहींः महेश जेठमलानी
राज्यसभा सांसद और सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने सेम सेक्स मैरिज को लेकर कहा कि ज्यूडिशियरी का नहीं, ये संसद का मामला है। जेठमलानी ने कहा कि समलैंगिक विवाह का मामला विशेष रूप से संसद के लिए है। मैरिज अधिकारों का एक पूरा सेट है और यह आपको कानून के दायरे में लाता है। शादी सिर्फ कोई एक समारोह नहीं है। महेश जेठमलानी ने आगे कहा कि LGBTQ के बीच क्रॉस मैरिज भी समस्याओं का कारण बनेंगे। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी चुनौतियां होंगी। यह संसद में चर्चा का विषय है। इस पर ज्यूडिशियरी को कानून नहीं बनाना चाहिए।
सरकार ने कहाः सेम-सेक्स मैरिज पर कानून बनाने के लिए संसद
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस मामले में सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ऐसे मामलों पर कानून बनाना सरकार का काम है, कोर्ट इससे खुद को अलग रखे। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रखा। उन्होंने अपनी दलील में कहा कि विवाह का मामला सामाजिक-कानून का मामला है, ऐसे में यह विषय विधायिका के अधिकार क्षेत्र का है।
कई कानूनी सवालों से जूझ रही संविधान पीठ
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ गोद लेने, उत्तराधिकार, पेंशन से जुड़े कानून और ग्रेच्युटी आदि विषयों पर कई कानूनी सवालों से जूझ रही है। अदालत ने कहा कि अगर समलैंगिक विवाह की अनुमति दी जाती है, तो इसके नतीजे के पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसकी न्यायिक व्याख्या, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तक ही सीमित नहीं रहेगी। इसके दायरे में पर्सनल लॉ भी आ जाएंगे। पीठ ने कहा कि शुरू में हमारा विचार था कि इस मुद्दे पर हम पर्सनल लॉ को नहीं छुएंगे, लेकिन बिना पर्सनल लॉ में बदलाव किए समलैंगिक शादी को मान्यता देना आसान काम नहीं है।
Why is Chandrachud hellbent on deciding this important case; so much so that he is even allowing fake data be submitted before the court / who will be held guilty of perjury here? Isn’t this deliberate and should DYC not be treated as guilty here? Hope Govt law officer will raise… https://t.co/aGe9I75DtD
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) April 26, 2023
समलैंगिक विवाह को वैध बनाना इतना आसान भी नहीं
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने समलैंगिक विवाह को लेकर अहम टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाना इतना आसान भी नहीं है, जितना कि यह दिखता है। इस मुद्दे पर कानून बनाने के लिए संसद के पास निर्विवाद रूप से विधायी शक्ति है। ऐसे में हमें इस पर विचार करना है कि हम इस दिशा में कितनी दूर तक जा सकते हैं। हालांकि मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि उन्हें उम्मीद बहुत कम है कि संसद इस मामले में कानून बनाएगी।
करुणानंदी (@karunanundy) ने ट्रांसजेंडर के बारे में जिरह करते हुए कहा, “2011 की जनसँख्या के मुताबिक देश में 48 लाख ट्रांसजेंडर हैं और यह संख्या भी वास्तविक आंकड़ों से कम है और इस संख्या में से कई इस कोर्टरूम में मौजूद हैं।”
— The Pamphlet (@Pamphlet_in) April 26, 2023
2/n pic.twitter.com/IKfWvv7SIC
ट्रांसजेंडर की आबादी 5 लाख, कोर्ट में बताया 48 लाख
याचिकाकर्ताओं की वकील करुणानंदी ने ट्रांसजेंडर के बारे में जिरह करते हुए कहा, “2011 की जनसंख्या के मुताबिक देश में 48 लाख ट्रांसजेंडर हैं और यह संख्या भी वास्तविक आंकड़ों से कम है और इस संख्या में से कई इस कोर्टरूम में मौजूद हैं।” ये आंकड़े पूरी तरह गलत हैं और हैरानी की बात यह थी कि संविधान पीठ द्वारा इसे सत्यापित भी नहीं किया गया। यह सब लाइव कोर्ट रूम में हो रहा था। दरअसल, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ट्रांसजेंडर की संख्या सिर्फ 4,87,000 ही थी। जिन्हें ‘अन्य’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
सनातन संस्कृति के किसी ग्रंथ में शादी का उल्लेख नहीं
समलैंगिक व्यक्ति प्राचीन समय से समाज में रहते आए हैं लेकिन वेद, उपनिषद, पुराण से लेकर भारत के किसी धर्मग्रंथ में समलैंगिक विवाह की चर्चा नहीं है। भारतीय सनातन संस्कृति में विवाह को 16 पवित्र संस्कारों में से एक माना गया है। यह दो परिवारों का ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का भी मिलन होता है, जिससे संसार आगे बढ़ता है। इसे संतान उत्पत्ति के द्वारा पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने वाला संस्कार भी माना गया है। ऐसे में सनातन संस्कृति के मूल को जाने बिना भारतीय विवाह पद्धति को समझना भी मुश्किल है।
सनातन धर्मग्रंथों में ब्रह्मांड के निरंतर निर्माण का उल्लेख
हमारे वेद, पुराण, उपनिषद आदि प्राचीन महाग्रंथों में जीव, प्राणी की संरचना, आत्मा और ब्रह्मांड के निरंतर निर्माण के संदर्भ में उल्लेख हैं और व्याख्याएं भी की गई हैं। कोई संविधान, कानून और व्यक्तिपरक बौद्धिकता ऐसी नैसर्गिक और प्राकृतिक संरचनाओं की समीक्षा नहीं कर सकते। यह व्यक्ति की क्षमताओं से बहुत परे है। उनके खिलाफ कानूनी प्रावधान स्थापित नहीं कर सकते। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में ‘विवाह’ को एक पवित्र संस्कार माना गया है। यह एक सामाजिक संस्थान भी है। विवाह के जरिए वंश-वृद्धि को सामाजिक मान्यता और स्वीकृति मिली है।
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