श्रावण या सावन, हिन्दू पंचांग में सबसे पवित्र मास माना जाता है, और इसे कई त्योहारों और छोटे उत्सवों के साथ मनाया जाता है। इनमें जन्माष्टमी, रक्षा बंधन, नाग पंचमी, ओणम और कजोरी पूर्णिमा शामिल हैं।
उत्तर भारत और दक्षिण भारत में श्रावण मास में 15 दिन का अंतर होता है। इस अंतर की वजह अलग-अलग पंचांग प्रणालियों के अनुसार होती है। उत्तर भारतीयों द्वारा पालन किए जाने वाले पूर्णिमान्त पंचांग में पूर्णिमा (पूर्ण चंद्रमा) के तुरंत बाद श्रावण मास आरंभ होता है और अगले पूर्णिमा तक जारी रहता है। इस पंचांग में, मास का कृष्ण पक्ष (अवनति अवस्था) शुक्ल पक्ष (वृद्धि अवस्था) से पहले आता है। वहीं, दक्षिण भारतीय अमावस्यान्त पंचांग का पालन करते हैं, जहां मास अमावस्या के बाद आरंभ होता है और इस पंचांग मेंशुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष के पहलेआता है।
वेदों में सावन माह को 'नभस' नाम से वर्णित किया गया है। श्रावण पूर्णिमा (श्रावण मास में पूर्णिमा का दिन) भगवान विष्णु के नक्षत्र (जन्म नक्षत्र), श्रवण नक्षत्र के साथ मेल खाती है, इसलिए पूरे महीने को श्रावण मास कहा जाता है।
श्रावण मास के दौरान दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं। पहली घटना यह है कि भगवान शिव ने इस माह में हलाहल नामक विष को सेवन किया था और इसके प्रभाव को कम करने के लिए भगवान इंद्र, जो की
बारिश और गरज के देवता हैं, लगातार बारिश की थी। इसलिए श्रावण में प्रचुर वर्षा होने का कारण माना जाता है। दूसरी घटना, भगवान शिव की पत्नी सती ने श्रावण मास में आग कुंड में अपने आपको दहन कर दिया था। इसके कारण माना जाता है कि इस मास में भगवान शिव की पूजा करना सामान्य दिनों के मुक़ाबले 108 गुना अधिक महत्वपूर्ण होता है।
श्रावण मास के श्रावण सोमवार के अलावा, तीन और दिन – श्रावण मंगलवार, शुक्रवार और शनिवार – को श्रावण मास में बहुत ही शुभ माना जाता है।
कई लोग श्रावण में किसी भी प्रकार का मुंडन नहीं करते हैं। इसका कारण मॉनसून मौसम होने की वजह से सीधे उस्त्र वाली नाईफ पर जंग लगने की समस्या होती है जिसके कारण बिमारियों के संक्रमण होने कि संभावनाएं बढ़ जाती है।
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