व्याकरण की दृष्टि से हनुमत् शब्द - हनुमान और हनूमान दोनों ही नाम सही हैं।


व्याकरण की दृष्टि से हनुमत् शब्द -

हनुमान और हनूमान दोनों ही नाम सही हैं।
हन्+उन्=हनु+मतुप्=हनुमत्=हनुमान्।
अथवा स्त्रीत्वपक्षे ऊङ्-
हन्+ऊङ्=हनू+मतुप्=हनूमत्=हनूमान्।

श्रीहनुमानजी के जन्म के विषय में शास्त्रीय एकाधिक मान्यताएं 
1.चैत्र शुक्ला पूर्णिमा मंगलवार के दिन में
चैत्रे मासि सितेपक्षे पौर्णिमास्यां कुजेऽहनि।
2. कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी भौमवार स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में महानिशा में अंजना देवीने हनुमानजीको जन्म दिया था।
 ऊर्जस्य चासिते पक्षे स्वात्यां भौमे कपीश्वरः।
मेषलग्नेऽञ्जनीगर्भाच्छिवः प्रादुर्भूत् स्वयम्।।
(उत्सवसिन्धु)
कार्तिकस्यासिते पक्षे भूतायां च महानिशि।
भौमवारेऽञ्जना देवी हनुमंतमजीजनत्।।
( वायुपुराण )
3. कल्पभेद से कुछ विद्वान इनका प्राक़ट्य काल चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्रमें मानते हैं।
चैत्रे मासि सिते पक्षे हरिदिन्यां मघाभिधे।
नक्षत्रे समुत्पन्नो हनुमान् रिपुसूदनः।।
(आनंदरामायण,सारका० 13.162)
श्रीहनुमानजीके प्राकट्यको लेकरके और भी कई विकल्प शास्त्रोंमें उपलब्ध होते हैं।
हनुमानजी का जन्म मूँजकी मेखला से युक्त,कौपीन से संयुक्त और यज्ञोपवीत से विभूषित ही हुआ था। और ये सब शृंगार सदा हनुमान जी के साथ ही रहता है।
चैत्रे मासि सिते पक्षे पौर्णमास्यां कुजेऽहनि।
मौञ्जीमेखलया युक्तः कौपीनपरिधारकः।।
(हनुमदुपासनाकल्पद्रुमे)


हनुमानजी के पांच और सगे भाई भी थे -

केसरी ने कुंजर की पुत्री अंजना को भार्या रूप में ग्रहण करके, स्वर्ग लोक तथा भूतल पर विख्यात 6 पुत्र उत्पन्न किए।
उनमें हनुमान जेष्ठ थे। इनके बाद क्रमशः - मतिमान्, श्रुतिमान्, केतुमान्, गतिमान् और धृतिमान् थे।
ये जो हनुमान के भाई हैं, ये सभी स्त्रियों से संयुक्त अर्थात विवाहित थे।
ये सभी अपने ही अनुरूप पुत्री, पुत्र और प्रपौत्र से संयुक्त थे ।
परंतु हनुमान जी ब्रह्मचारी थे। इन्होंने दार परिग्रहण नहीं किया था।
ये संग्राम में संपूर्ण लोकों से लोहा लेने का उत्साह रखते थे। और वेग में तो मानो दूसरे गरुड़ ही थे।
ज्येष्ठस्तु हनुमांस्तेषां मतिमांस्तु ततः स्मृतः।
श्रुतिमान् केतुमांश्चैव गतिमान् धृतिमानपि।।
हनुमद्भ्रातरो ये वै ते दारैः सुप्रतिष्ठिताः।।
(ब्रह्मांडपुराण 3.7. 223/224)


हनुमानजी के आयुध विशेष

खड्ग, त्रिशूल, खट्वांग, पाश, अंकुश, पर्वत, स्तंभ, मुष्टि, गदा, वृक्ष,और भी वज्र ध्वजा, नख और अट्टहास (घोर गर्जना) इत्यादि कई आयुध की चर्चा हनुमान जी के विषय में तंत्रशास्त्रों में विद्यमान है।

हनुमानजी से पंचमुखी रूप 
पंचमुखी स्वरूप में हनुमान जी का पूर्व की तरफ वानर का,
दक्षिण की दिशा में नृसिंहमुख है ।
पश्चिम दिशा में गरुड़ मुख है।
उत्तर दिशा में सूकर मुख है।
और ऊपर की ओर घोड़े का मुख है।

इत्यादि व्यवस्था मंत्र महार्णव इत्यादि तांत्रिक ग्रंथों में हनुमान जी के स्वरूप की बताई गई है।
और भी हनुमान जी के विषय में कुछ गूढचर्चा करना चाहते थे।
परंतु लेख बहुत लंबा हो जाएगा इसलिए कभी फिर चर्चा करेंगे।

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