
सनातन विरोधियों को शायद यह नहीं मालूम कि आरती में बजने वाली घंटी और शंख का कितना महत्व है। इनकी ध्वनि से आवाज़ प्रदुषण नहीं बल्कि वातावरण के लिए कितना हितकारी है। इनकी ध्वनि से ध्वनि प्रदुषण नहीं होता।
सनातन विज्ञान ने इसे धर्म या भगवान से इसलिए जोड़ा ताकि कम से कम डर से तो लोग ये सब करें ताकि पर्यावरण और लोग स्वस्थ रहें, लेकिन जबसे हमने इसे अंधविश्वास समझा तबसे मरने लगे है । बाजारवाद ने हमे समझाया कि भारतीय तरीके सही नही है गैस, फ्रीज, AC, वाटर फ़िल्टर, कोलगेट, साबुन, शेम्पू, जैसी अन्य सब चीजों को जरूरी बताकर बेचा...
हमने गांव में कभी नही सुना कि मटके के पानी पीने से किसी को गैस की समस्या हुई हो सब ठीक रहता है अपनी शारीरिक रोग प्रतिकार क्षमता हमने खुद गवाई है और RO वाटर फ़िल्टर का पानी पीने वाले बीमार ही रहते
कुछ जानवर गन्दी से गन्दी चीज खाते है फिर इंसान उस जानवर को खा जाता है तो सबसे बड़ा जानवर कौंन हुआ । इंसान और जानवर में ज्यादा फर्क नही ..!
मेरे भारत में कोई एक भी ऐसी जानलेवा बीमारी नही थी सब बाहर से आई भारत शुरू से ही इन सब चीजों में जागरूक रहा लेकिन जब से बाजारवाद का उदय हुआ तबसे हर घर मे दवाई की उपयोगिता बढ़ गयी! क्योंकि हमने आयुर्वेदिक पद्धति से जीना छोड़ दिया..प्रतिदिन घर मे हवन, यज्ञ करना छोड़ दिया...पाश्च्यात शिक्षा के प्रभाव में भारतीय संस्कृति को छोड़ दिया...
समय अब भी शेष है सम्भल जाइये औरर अपने संस्कार, संस्कृति की अपनाइये ओर सुखी-स्वस्थ जीवन यापन करिये, बाकी आप देख ही सकते हैं आज के मॉडर्न युग का प्राणी तन और मन दोनों से बीमार ही है ।
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