राष्ट्रीय नायक आडवाणी जी को भारत रत्न देकर “लिब्रांडु गिरोह” को जख्म दे दिए ;यदि नेहरू की तरह मोदी खुद भारत रत्न ले लिए होते तो क्या होता !

सुभाष चन्द्र

भारतीय राजनीति के पुरोधा लाल कृष्ण आडवाणी, जिन्होंने देश को नई दिशा देने का काम किया, देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का उत्थान करके असली लोकतंत्र स्थापित करने की महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और जिन्होंने अपने ही परम आदरणीय साथी अटल बिहारी वाजपेयी के साथ देश को एक स्वच्छ और सही मायने में “ईमानदार” नेतृत्व दिया, उन्हें भारत रत्न देना अत्यंत गौरव का विषय है। 

आज अयोध्या में रामलला के विराजमान होने का मार्ग बनाया आडवाणी जी की सोमनाथ से शुरू की गई राम रथ यात्रा ने, जिसे बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने समस्तीपुर में रोक दिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लालू यादव को आज समझ आए या न आए परंतु सच्चाई यही है कि भगवान राम से टकरा कर लालू एक तरह ख़ाक में मिल गया और आडवाणी आज सर्वोच्च सम्मान पा गए

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मुझे याद है वह दिन जब नरसिम्हा राव के काल में जैन हवाला डायरी में नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, तब आडवाणी जी का भी नाम इसमें घसीटा गया था लेकिन उनकी हिम्मत थी जो संसद में खड़े खड़े त्यागपत्र देते हुए कहा था कि जब तक यह दाग नहीं मिटेगा संसद में कदम नहीं रखूंगा। ऐसी प्रतिज्ञा वह नेता ही कर सकता है जो सच में “बेदाग़” हो, केजरीवाल नहीं सोच सकता ऐसा करने के लिए। अंततः आडवाणी जी कोर्ट से दोषमुक्त हुए और तब ही संसद गए

अखिलेश यादव कह रहा है यह अवार्ड वोट बचाने के प्रयास है। उसे तो कम से कम ऐसी घटिया बात नहीं करनी चाहिए थी जबकि राम भक्तों को गोलियों से भूनने वाले उसके बाप, मुलायम सिंह यादव को नरेंद्र मोदी ने पद्म विभूषण दे दिया था। रामभक्ति को देखते मुलायम को यह सम्मान नहीं मिलना चाहिए था। 

आज बहुत लोग परेशान हैं आडवाणी जी को भारत रत्न मिलने से खासकर “लिब्रांडु गिरोह” जिसे असहनीय जख्म मिल गया हो और वे लोग जो अयोध्या की कथित बाबरी मस्जिद के लिए रोते रहे हैं। ओवैसी समेत कई मुस्लिम नेता विलाप कर रहे हैं और कह रहे हैं समाज को तोड़ने वाले को अवार्ड दिया गया है। जबकि स्थिति एकदम विपरीत है, ओवैसी जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र में केवल भड़काऊ भाषण देते हैं, लेकिन हिन्दू मिश्रित क्षेत्र में दलित हितों की बात करना इनका दोगलापन दर्शाता है। 

जब देश के टुकड़े करने वाले नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता था तो आडवाणी को भारत रत्न देना तो मामूली सी बात है। फिर नरेंद्र मोदी ने कई विरोधियों को अवार्ड दिए हैं जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते थे क्योंकि कांग्रेस ने विपक्ष के नेताओं को तो छोड़िए अपने सरदार पटेल और अंबेडकर जैसे नेताओं को भी वर्षों तक अवार्ड नहीं दिए। दूसरी तरफ मोदी ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दिया, शरद पवार और मुलायम सिंह को पद्म सम्मान दिए और इस बार तो ताइवान की कंपनी “फॉक्सकॉन” के चेयरमैन यंग लिउ को पद्मभूषण दे दिया। कर्पूरी ठाकुर भी भाजपा के नेता नहीं थे लेकिन उनका सम्मान भी किया मोदी ने

लेकिन एक तरफ तो खड़गे आडवाणी जी को बधाई दे रहे हैं तो दूसरी तरफ जयराम रमेश को दर्द हो रहा है जो इस अवार्ड पर तंज कस रहा है और कह रहा है अटल जी 2002 में मोदी को हटाना चाहते थे लेकिन आडवाणी ने उन्हें बचाया। 2002 का भूत इन लोगों की खोपड़ी से निकलता ही नहीं है। क्रिया की प्रक्रिया पर रोना रोकर विक्टिम कार्ड खेलते तनिक भी शर्म नहीं आती किसी को। 

नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में ऐसे ऐसे लोगों को पद्म सम्मान दिए हैं जो कभी सपने में भी ऐसे अवार्ड मिलने की बात नहीं सोच सकते थे। वे लोग जिनकी प्रतिभा छुपी रहती थीं, उन्हें अवार्ड दिए गए और ऐसा भी तरीका बनाया गया कि व्यक्ति खुद अपना नामांकन भेज सकता है। 

अवलोकन करें:-

जब लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 की "राम रथ यात्रा" के बाद 1993 में निकाली ‘जनादेश यात्रा’

जरा सोचो, अभी तो आडवाणी जी को मोदी ने भारत रत्न दिया है, अगर नेहरू और इंदिरा गांधी की तरह खुद को भारत रत्न दे देते तो क्या नज़ारा होता जबकि मोदी को यह अवार्ड मिलना ही  चाहिए। 

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