संपत्ति के बँटवारे पर बोला सुप्रीम कोर्ट : मार्क्सवादी सोच पर काम नहीं करेंगे काम: निजी प्रॉपर्टी नहीं ले सकते


संपत्ति के बँटवारे मामले में बढ़ रहे राजनैतिक विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (24 अप्रैल 2024) को कहा है कि वो इस मामले में किसी मार्क्सवादी विचार का काम नहीं करेंगे। कोर्ट ने कहा कि वह संपत्ति बँटवारे मामले में संविधान के अनुच्छेद 39 (ब) पर जस्टिस वीर कृष्णा की 1977 में की गई ‘मार्क्सवादी टिप्पणी’ का पालन नहीं करेंगे, जिसमें कहा गया था कि सार्वजनिक भलाई के लिए एक समुदाय के ‘भौतिक संसाधनों’ में पुनर्वितरण के लिए निजी संपत्तियाँ शामिल होंगी।

संविधान के अनुच्छेद 39 (B) में प्रावधान है कि राज्य अपनी नीति को यह सुनिश्चित करने की दिशा में निर्देशित करेगा कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए जो आम लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम हो’। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की अध्यक्षता में 9 जजों की पीठ विभिन्न याचिकाओं से उत्पन्न जटिल कानूनी प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है।

इसी की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि कहना ‘खतरनाक’ होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता, साथ ही ‘सार्वजनिक भलाई’ के लिए राज्य की तरफ से उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता। सुनवाई के दौरान, बेंच ने कहा कि समुदाय के भौतिक संसाधन और निजी संपत्ति में फर्क होना चाहिए। कोई बिन कीमत चुकाए निजी संपत्ति नहीं ले सकता, लेकिन चूँकि समुदाय के भौतिक संसाधनों में नैचुरल रिसोर्स भी आते है। इसलिए अगर किसी व्यक्ति के पास निजी वन है तो ऐसा नहीं कह सकते कि जरूरत पड़ने पर समुदाय के लिए उसका प्रयोग नहीं हो पाएगा। अदालत ने कहा कि आर्टिकल 39 (ब) का प्रयोग किसी की निजी संपत्ति लेने के लिए नहीं करना चाहिए।

TOI की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई ने कहा, “हमें 1977 के रंगनाथ रेड्डी मामले में (अनुच्छेद 39(बी) की) जस्टिस कृष्णा अय्यर की मार्क्सवादी समाजवादी व्याख्या तक जाने की जरूरत नहीं है, लेकिन सामुदायिक संसाधनों में निश्चित रूप से वे संसाधन शामिल होंगे जिन पर वर्तमान पीढ़ी भरोसा करती है।” उन्होंने आगे संपत्ति बँटवारे मामले में दो विचार समझाए। कोर्ट ने कहा, “मार्क्सवादी समाजवादी दृष्टिकोण यह है कि सब कुछ राज्य और समुदाय का है। पूंजीवादी दृष्टिकोण व्यक्तिगत अधिकारों को महत्व देता है। इसके अलावा अंतर-पीढ़ीगत समानता की रक्षा के लिए संसाधनों को भरोसे में रखने का गाँधीवादी दृष्टिकोण है।”

साल 1977 में रंगनाथ रेड्डी मामले में कोर्ट की बहुमत ने स्पष्ट किया था कि समुदाय के भौतिक संसाधनों में निजी संपत्ति शामिल नहीं है। वहीं, जस्टिस अय्यर का अलग रूख था। उन्होंने कहा था कि जनता की भलाई के लिए एक समुदाय के ‘भौतिक संसाधनों’ में पुनर्वितरण के लिए निजी संपत्तियाँ शामिल होंगी।

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