स्वामी रामदेव ने माफ़ी मांगी लेकिन मीलॉर्ड को वह स्वीकार नहीं, मगर अपनी सड़कछाप भाषा के लिए खुद माफ़ी भी नहीं मांगेंगे; अहसानुद्दीन अमानुल्लाह को त्यागपत्र देना चाहिए

 सुभाष चन्द्र

केवल एक छोटी सी बात के लिए जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफ़ी स्वीकार करने से मना कर दिया और कहा कि हम उनके पूर्व आचरण को ध्यान में रखते हुए यह हलफनामा स्वीकार नहीं कर सकते, बेंच ने कहा कि 30 मार्च को दाखिल हलफनामे में पेशी की छूट मांग करते हुए विदेश जाने की अनुमति मांगी लेकिन एयर टिकट 31 मार्च को अनुलग्नक में दाखिल किया गया। इसका मतलब है 30 मार्च को हलफनामा दाखिल करते हुए एयर टिकट नहीं था - बस यही गलती पकड़ कर बेंच के जज बिखर गए

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ब कोई इतनी सी बात नहीं समझ सकता तो क्या करें हो सकता है जब 30 मार्च को हलफनामा दाखिल किया उस समय तक टिकट न बना हो और जब बन गया तो अगले दिन कोर्ट में दे दिया। इसमें कौन सा आसमान सुप्रीम कोर्ट की छत पर गिर गया
दूसरे, अगर IMA को जनता की सेहत की इतनी ही फ़िक्र है तो जब बांग्लादेश की लेबोरेटरी ने हमदर्द की रूहअफजा को सेहत के लिए नुकसान बताकर फेल कर दिया, फिर उसको आधार बनाकर कोर्ट क्यों नहीं गयी? क्यों नहीं भारत में रूहअफजा को बैन किया? इसका मतलब साफ है कि IMA तुष्टिकरण की गन्दी मानसिकता से ग्रस्त है। बांग्लादेश लेबोरेटरी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि रूहअफजा में जिन contents का उल्लेख है उनमे से एक भी content इसमें नहीं है। 

जस्टिस अमानुल्लाह ने तो भाषा की सभी मर्यादाएं लांघते हुए उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों को ही नहीं कहा बल्कि वे शब्द उत्तराखंड सरकार और स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को भी कहे माने जाएंगे कि “हम आपको चीर कर रख देंगे”

माफ़ी मांगना कोई छोटी बात नहीं है लेकिन माफ़ न करने वाला बहुत बड़ा कायर होता है जो अहसानुद्दीन दिखाई देते हैं अरे रामदेव के पूर्व आचरण की बात तो ऐसे कर रहे हो निर्लज्जता से जैसे स्वामी जी कोई बहुत बड़े अपराधी हों, Habitual Offender हों, जबकि पूर्व आचरण के अनुसार केजरीवाल जैसे व्यक्ति को जो बार बार अपराध करके माफ़ी मांगता है, उसे भी सुप्रीम कोर्ट माफ़ी देने को तैयार हो जाता है। 

  

हिमा कोहली तो अहसानुद्दीन से वरिष्ठ हैं और बेंच को Head कर रही हैं, वो तो उन्हें कह सकती थी कि आपकी टिप्पणी शोभनीय नहीं है और यह भी कह सकती थी कि वह अहसानुद्दीन की टिप्पणी से खुद को अलग करती हैं मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया वो तो खुद काले कॉलेजियम के बड़े पिछले दरवाजे से हाई कोर्ट से रिटायर होने के एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में घुसी थी

पिछले 10 साल में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों ने अपने लिए नए कानून बना लिए हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के और हर तरह की उजड्ड भाषा बोलने की होड़ करते हैं जनता के लिए भी मोदी, भाजपा और भाजपा के नेताओं, RSS और देश को गाली देने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए छूट की भरमार कर दी है लगता है मोदी 10 साल से बर्दाश्त ही नहीं हो रहा

कोरोना काल में सुप्रीम कोर्ट ने हर हाई कोर्ट को व्यवस्था के खिलाफ सुनवाई करने का अधिकार दे दिया और खुद अलग सुनवाई करता रहा नतीजा क्या हुआ, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज बेकाबू हुए संकट काल में भी मोदी सरकार के खिलाफ अनाप शनाप बोलते रहे

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी ने तो किसी फिल्म के विलेन की तरह केंद्र सरकार को कहा - “चोरी करो, उधार मांगो या भीख मांगो मगर दिल्ली को oxygen दीजिए

मद्रास हाई कोर्ट ने भी सरकार के लिए अभद्र भाषा बोली थी जिस पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी कि संयम से काम लीजिए

नूपुर शर्मा के मामले में तो जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत ने सारी मर्यादाएं लांघते हुए सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की सबसे घटिया स्तर की भाषा उपयोग करते हुए भयंकर “Hate Speech” दी थी वो बोलते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे कोई जल्लाद नूपुर की गर्दन ही उड़ा देंगे

CJI चंद्रचूड़ को जस्टिस अहसानुद्दीन से त्यागपत्र मांगना चाहिए, इससे कम कुछ नहीं चलेगा

अवलोकन करें:-

आखिर मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले पतंजलि के ही खिलाफ क्यों है ? मी लॉर्ड क्या बांग्लादेश द्वारा

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