केवल एक छोटी सी बात के लिए जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफ़ी स्वीकार करने से मना कर दिया और कहा कि हम उनके पूर्व आचरण को ध्यान में रखते हुए यह हलफनामा स्वीकार नहीं कर सकते, बेंच ने कहा कि 30 मार्च को दाखिल हलफनामे में पेशी की छूट मांग करते हुए विदेश जाने की अनुमति मांगी लेकिन एयर टिकट 31 मार्च को अनुलग्नक में दाखिल किया गया। इसका मतलब है 30 मार्च को हलफनामा दाखिल करते हुए एयर टिकट नहीं था - बस यही गलती पकड़ कर बेंच के जज बिखर गए।
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जस्टिस अमानुल्लाह ने तो भाषा की सभी मर्यादाएं लांघते हुए उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों को ही नहीं कहा बल्कि वे शब्द उत्तराखंड सरकार और स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को भी कहे माने जाएंगे कि “हम आपको चीर कर रख देंगे”।
माफ़ी मांगना कोई छोटी बात नहीं है लेकिन माफ़ न करने वाला बहुत बड़ा कायर होता है जो अहसानुद्दीन दिखाई देते हैं। अरे रामदेव के पूर्व आचरण की बात तो ऐसे कर रहे हो निर्लज्जता से जैसे स्वामी जी कोई बहुत बड़े अपराधी हों, Habitual Offender हों, जबकि पूर्व आचरण के अनुसार केजरीवाल जैसे व्यक्ति को जो बार बार अपराध करके माफ़ी मांगता है, उसे भी सुप्रीम कोर्ट माफ़ी देने को तैयार हो जाता है।
हिमा कोहली तो अहसानुद्दीन से वरिष्ठ हैं और बेंच को Head कर रही हैं, वो तो उन्हें कह सकती थी कि आपकी टिप्पणी शोभनीय नहीं है और यह भी कह सकती थी कि वह अहसानुद्दीन की टिप्पणी से खुद को अलग करती हैं मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो तो खुद काले कॉलेजियम के बड़े पिछले दरवाजे से हाई कोर्ट से रिटायर होने के एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में घुसी थी।
पिछले 10 साल में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों ने अपने लिए नए कानून बना लिए हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के और हर तरह की उजड्ड भाषा बोलने की होड़ करते हैं। जनता के लिए भी मोदी, भाजपा और भाजपा के नेताओं, RSS और देश को गाली देने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए छूट की भरमार कर दी है। लगता है मोदी 10 साल से बर्दाश्त ही नहीं हो रहा।
कोरोना काल में सुप्रीम कोर्ट ने हर हाई कोर्ट को व्यवस्था के खिलाफ सुनवाई करने का अधिकार दे दिया और खुद अलग सुनवाई करता रहा। नतीजा क्या हुआ, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज बेकाबू हुए संकट काल में भी मोदी सरकार के खिलाफ अनाप शनाप बोलते रहे।
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी ने तो किसी फिल्म के विलेन की तरह केंद्र सरकार को कहा - “चोरी करो, उधार मांगो या भीख मांगो मगर दिल्ली को oxygen दीजिए।
मद्रास हाई कोर्ट ने भी सरकार के लिए अभद्र भाषा बोली थी जिस पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी कि संयम से काम लीजिए।
नूपुर शर्मा के मामले में तो जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत ने सारी मर्यादाएं लांघते हुए सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की सबसे घटिया स्तर की भाषा उपयोग करते हुए भयंकर “Hate Speech” दी थी। वो बोलते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे कोई जल्लाद नूपुर की गर्दन ही उड़ा देंगे।
CJI चंद्रचूड़ को जस्टिस अहसानुद्दीन से त्यागपत्र मांगना चाहिए, इससे कम कुछ नहीं चलेगा।
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