सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य में नारियल और केला को प्रयोग करना का बहुत ही गूढ़ रहस्य है। क्योकि नारियल और केला ये दो ही ऐसे फल है जो किसी के जूठे बीज से उत्पन्न नही होते, मतलब अगर हमे आम का पेड़ लगाना है तो हम आम को खाते है और उसके बीज या गुठली को जमीन में गाड़ते है तो वह पौधे के रूप में उगता है,या फिर ऐसे ही गुठली निकाल के लगा दे तो भी वह उस पेड़ का बीज(जूठा या अंग) ही हुआ, लेकिन केले का या नारियल का पेड़ लगाने को केवल जमीन से निकला हुआ पौधा(ओधी) ही लगाते है, जो की खुद में ही पूर्ण है,न किसी का बीज न हिस्सा, न जूठा,इसलिए भगवान को सम्पूर्ण फल अर्पित किया जाता है।
यदि हम दूसरा फल खाकर उसके बीज फेंक दें तो वह फिर से पौधे के रूप में विकसित हो जाएगा। लेकिन अगर हम नारियल के छिलके को खाने के बाद फेंक देते हैं, अगर हम केले को या तो बाहरी छिलके को हटाकर या उसके बिना फेंक देते हैं, तो वह फिर कभी नहीं उग पाएगा। यह मुक्ति/मोक्ष अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है जो कि सामाजिक मुक्ति की अंतिम अवस्था है, बार-बार पुनर्जन्म से मुक्ति। इस प्रकार हम भगवान से हमें मुक्ति राज्य प्रदान करने की कामना के लिए इन्हें अर्पित कर रहे हैं।
यह भी लगभग ऊपर वाले जैसा ही थोड़ा सा है। चूंकि नारियल और केला कभी भी हमारे द्वारा खाने के बाद फेंके गए बीजों से नहीं बन सकते, इसलिए उन्हें किसी भी तरह से मानव लार के संपर्क के बिना शुद्ध माना जाता है। इसलिए इन्हें सबसे शुद्ध फल के रूप में भगवान को अर्पित किया जाता है।
पूजा में बजने वाली घंटी और शंख की ध्वनि का भी सनातन में बहुत महत्व है। यह ध्वनि जितनी दूर जाएगी, असुर उतने ही दूर होते हैं। फिर हवन से होने वाले धुएं का भी अपना महत्व है, आज कल लोग धुएं को घर से बाहर निकालने के लिए एग्जॉस्ट को खोल देते हैं, जो सनातन धर्म गलत है। धुआं जितना देर घर में रहेगा वह कोने-कोने से शैतानी ताकतों को समाप्त करता है। क्योकि हवन करने इतने मन्त्रों का उच्चारण किये जाने से शैतानी हवाएं पस्त होती है और हवन किये जाने का उद्देश्य पूर्ण होता है। इसीलिए कहते है हवन द्वारा घर परिवार की शुद्धि। पूजा में कपूर के जलाये जाने का भी धार्मिक ही नहीं पारिवारिक दृष्टि में बहुत महत्व है।
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