क्यों चीनी कंपनियाँ भी कर रहीं ‘मेक इन इंडिया’ का गुणगान ?


कहते हैं कि बात मनवाने के लिए बात को मनवाने वाला होना चाहिए। 2014 में भारत को ऐसा सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी मिला जिसमे देशहित में अपनी बात मनवाने का दम है। भारत में विपक्ष लाख मोदी का विरोध करे, लेकिन दिल से वह भी मानते है कि कितना विकास और भारत का नाम मोदी के कार्यकाल में हुआ है कभी नहीं हुआ। विपक्ष होने के नाते विरोध करना उनका मौलिक अधिकार है। जिस आतंकवाद पर विश्व में कोई भारत की नहीं सुनता था, उसे मोदी ने मानने के लिए मजबूर कर दिया। पहले आतंकवाद पर विश्व इसलिए नहीं सुनता था कि तुष्टिकरण पुजारी 'हिन्दू आतंकवाद' और 'भगवा आतंकवाद' नाम देकर सनातन को बदनाम कर इस्लामिक आतंकवाद को संरक्षण दे रहे थे, लेकिन मोदी ने विश्व के समक्ष वास्तविकता को रख आतंकवाद को समर्थन देने वाले देशों के विरुद्ध एकजुट होने को कहा। जिस वजह से आतंकवाद के विरुद्ध मोदी की उठाई आवाज़ को विश्व ने सम्मान दिया। 

इसी तरह कई मुद्दे हैं जिन्हें मोदी ने मानने के लिए विवश किया, जिन्हे जनता आज नहीं मानेगी लेकिन कुछ समय बाद जब इसके परिणाम सामने आने पर मानेगी। जब मोदी ने Make in India की आवाज़ उठाई, लगभग सभी ने उपहास किया, लेकिन अब उसके परिणाम भी सामने आने शुरू होने लगे हैं।   

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान में चीन की बड़ी कम्पनियाँ भी सहयोग कर रही हैं। ऐसा चीन की कम्पनियों को मजबूरी में करना पड़ रहा है। चीन कम्पनियों को ऐसा करने के कारण अपने देश के भीतर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें गद्दार कहा जा रहा है।

चीन की कम्पनियाँ पहले भारतीय बाजार से केवल लाभ कमाने के चक्कर में रहती थीं लेकिन अब उन्हें भारत के बाजार में रहने के लिए देश के भीतर ही निर्माण करना पड़ रहा है। उन्हें देश के भीतर ही अपनी सप्लाई चेन स्थापित करना पड़ रहा है, भारत में इससे लाखों नौकरियाँ पैदा हो रही हैं। चीन की कम्पनियों पर मोदी सरकार ने शिंकजा कसा है, इसके कारण जो भी कम्पनियाँ भारत में व्यापार करना चाहती हैं, उन्हें भारत के नियम कानून मानने पर मजबूर होना पड़ रहा है और साथ ही वह भारत के मिशन में भी सहयोग कर रही हैं।

मेक इन इंडिया में चीनी कम्पनियों की हिस्सेदारी

चीन की कम्पनियाँ भारत के मेक इन इंडिया में सहयोग कर रही हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मोबाइल फोन निर्माण क्षेत्र है। 2014 से पहले चीन की कम्पनियाँ भारत में सीधे बने बनाए फोन लाकर बेच रही थी और पैसा कमा कर चीन भेज रहीं थी। मोदी सरकार ने यह स्थिति बदल दी है। मोदी सरकार में भारत में कारोबार करने वाली सभी चीनी मोबाइल कम्पनियों को भारत में ही मोबाइल का निर्माण चालू करना पड़ा है। भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फ़ोन उत्पादक बन गया है।
इन चीनी कम्पनियों ने भारत में ही अपनी सप्लाई लाइन स्थापित की है। इन चीनी कम्पनियों के उत्पाद देश में भी बिक रहे हैं और साथ ही वह विदेशों को भी जा रहे हैं। ऐसे में चीन को जाने वाला पैसा कम हो गया है। भारत में इससे बड़ी संख्या में रोजगार पैदा हुए हैं। चीनी कम्पनियाँ मात्र भारत में फ़ोन ही नहीं बना रही हैं, बल्कि वह मोबाइल फोन के लिए कल पुर्जे बनाने वाली कम्पनियों को भारत आने के लिए भी प्रोत्साहित कर रही हैं।
भारत में मोबाइल फोन निर्माण का क्षेत्र 2014-15 में 18,900 करोड़ रूपए का था, यह 2023-24 में बढ़ कर 4.1 लाख रूपए करोड़ का हो गया। भारतीय बाजार में चीनी मोबाइल कम्पनियों की हिस्सेदारी लगभग 50% है। चीनी कम्पनियों के अलावा सैमसंग और एप्पल का भी भारत के बाजार में हिस्सा बढ़ रहा है।

क्यों अपने देश में विरोध के बावजूद ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ा रहीं चीनी कम्पनियाँ

चीनी कम्पनियाँ अपने देश में विरोध के बावजूद भारत में मेक इन इंडिया को बढ़ा रही हैं। दरअसल इसके पीछे कई कारण हैं। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण भारत का चीन के बराबर का अकेला बड़ा बाजार होना है। चीनी कम्पनियों को चीन में प्रतिस्पर्धा के कारण वहाँ जगह नहीं मिल पा रही जबकि भारत एक उभरता हुआ बाजार है जहाँ खपत काफी ज्यादा है, ऐसे में उन्हें भारत जैसा और कोई विकल्प नहीं मिलता। भारत में लगातार इन्टरनेट का प्रसार हो रहा है, ऐसे में चीन की कम्पनियाँ यहाँ लगातार अपने लिए सम्भावनाएं तलाश रही हैं।
इसके अलावा भारत का बाजार चीनी कम्पनियों के अनुरूप है। उनके बनाए उत्पाद भारतीय ग्राहकों के अनुरूप हैं। उनकी दाल यूरोप या फिर लैटिन अमेरिका में नहीं गलती। इन देशों में फैक्ट्री लगाना काफी मुश्किल है। यहाँ लागत भी अधिक है। भारत का ग्राहक भी लगभग चीन के ग्राहक के ही समान आर्थिक पृष्ठभूमि वाला है। ऐसे में भारत चीनी कम्पनियों के लिए मज़बूरी हो जाता है। भारत ने बीते कुछ समय में चीनी कम्पनियों पर यह भी दबाव डाला है कि वह अपनी प्रक्रिया में अधिक से अधिक भारतीयों को लगाएँ।

मोदी सरकार ने कसा शिंकजा तो रोने लगा चीन

भारत ने इन चीनी कम्पनियों पर शिकंजा भी कसा है। एक रिपोर्ट बताती है कि चीनी मोबाइल कम्पनियों को भारत में नियामकों की सख्ती के कारण लगभग 1 बिलियन डॉलर (लगभग 8,000 रूपए करोड़) का नुकसान हुआ है। इसके अलावा भारत के चीनी एप्स पर प्रतिबन्ध लगाने से चीन को 10 बिलियन डॉलर (83,000 रूपए करोड़) का नुकसान हुआ है। चीन की कम्पनियों को लगातार कहा जा रहा है कि वह भारत ऊँचे पदों पर भारतीयों को बिठाएँ। अधिकाधिक ठेके भारतीय कम्पनियों को देने का दबाव भी चीनी कम्पनियों पर डाला जा रहा है।

चीन में गद्दार का मिल रहा तमगा

जहाँ एक और भारत में चीनी कम्पनियाँ लगातार अपनी निर्माण गतिविधि बढ़ा रही हैं, वहीं चीन में उन्हें इस काम के कारण विरोध का सामना करना पड़ रहा है। चीनी कम्पनियों को कहा जा रहा है कि वह गद्दारी कर रही हैं। वह अपने फायदे के लिए चीन के हितों को दरकिनार कर रही हैं। इन पर लगाम लगाने के लिए भी चीन में आवाज उठ रही है। इस मामले में कार्रवाई ना करने को लेकर चीन की सरकार की आलोचना भी हो रही है। यह भी माँग हो रही है कि चीन में होने वाले निर्माण को भारत में शिफ्ट किया जाए।

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