जस्टिस संजीव खन्ना कई दिनों से दिल में ठान कर बैठे थे कि येन केन प्रकारेण केजरीवाल को बिना अंतरिम जमानत मांगे जमानत पर रिहा करना है बेशक Solicitor General तुषार मेहता और ASG एस वी राजू कितनी ही जायज दलील रख दे उनके सामने।
जिस तरह एक कंपनी के अधिकारी का कंपनी की तरफ से अदालत में दाखिल “गलत हलफनामे” के लिए वह अकेला जिम्मेदार नहीं होता बल्कि पूरी कंपनी उससे बंधी होती है, इसी तरह खन्ना जी और दत्ता जी के इस संविधान की हत्या करने वाले फैसले के लिए पूरे सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार होना चाहिए।
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लेखक चर्चित यूटूबर |
कायदे से देखा जाए तो तुषार मेहता के हलफनामे के बाद भी केजरीवाल को छोड़ना साबित करता है कि कोई बड़ा खेल हुआ है केजरीवाल की रिहाई के पीछे। कुछ भी हो सकता है और यह भी माना जा सकता है कि -
- अभिषेक मनु सिंघवी के जरिए चढ़ावा चंद्रचूड़ को गया जहां से बंदरबाट हुई और चंद्रचूड़ ने खंन्ना/ दत्ता को हुकुम दिया - “छोड़ दो”; - सिंघवी और चंद्रचूड़ का याराना काम आ गया;
-विदेशो से चढ़ावा भेजा गया खासकर उन देशों से जो केजरीवाल की गिरफ़्तारी को लेकर हायतौबा कर रहे थे और जिन्हें हमारा लोकतंत्र खतरे में लग रहा था;
-केजरीवाल को छोड़ना बता रहा है कि सुप्रीम कोर्ट सीधा मोदी से टकरा रहा है क्योंकि उसके जजों को बस मोदी को गाली देने वाला चाहिए जिसे जेल से बाहर लाना ही लाना है। ऐसा ही मोदी को गाली बकने वाला लालू यादव भी छोड़ा हुआ है 32 साल की सजा के बावजूद।
केजरीवाल को 1 जून तक के लिए छोड़ना भी गंभीर मामला है क्योंकि जिस पंजाब के चुनाव को लेकर 1 जून तक के लिए “फर्जी और मनमानी” जमानत दी है मीलॉर्ड ने, उस पंजाब में तो चुनाव प्रचार 30 मई की शाम 5 बजे समाप्त हो जाएगा और इसलिए उसके बाद उसे 30 की शाम को ही या 31 की सुबह surrender करने के लिए कहना चाहिए था। फिर ऐसी मेहरबानी क्यों दिखाई खन्ना/दत्ता की पीठ ने।
एक बात मीलॉर्ड और सिंघवी को समझ कर चलनी चाहिए कि केजरीवाल ने अपनी गिरफ़्तारी को चुनौती देते हुए उसे “गैर कानूनी” कहा था लेकिन उस पर फैसला किए बिना जनाब ने अंतरिम जमानत दे दी जिसका मतलब यह हुआ कि गिरफ़्तारी तो स्वतः ही Legal हो गई और अब आप गिरफ़्तारी को Illegal नहीं कह सकते। अगर गिरफ़्तारी गैर कानूनी होती तो जमानत का तो प्रश्न ही खड़ा नहीं होता क्योंकि तब तो तुरंत रिहाई होती।
लिहाजा अब खन्ना जी और दत्ता जी को केजरीवाल की गिरफ़्तारी को अवैध कहने वाली याचिका को तुरंत ख़ारिज कर देना चाहिए क्योंकि वह याचिका अब “frivolous” हो चुकी है और वह इसलिए कि केजरीवाल की अंतरिम जमानत ने “गिरफ़्तारी को वैध” बना दिया।
अब देखना यह है कि दोनों जजों समेत जो भी लोग इस मामले में पापड़ बेल रहे थे, केजरीवाल क्या उनकी आशाएं पूरी करेगा या लोकसभा के पिछले दो चुनावों की तरह घुईयां ही उखाड़ेगा और इन सबके मुंह काले हो जाएंगे। दिल्ली की जनता ने दो बार केंद्र में मोदी को ही वोट दिया है।
अब समय आ गया है चुनावों के बाद मोदी जी की नई सरकार अदालतों की मनमानी पर भी अंकुश लगाए क्योंकि उनका बेलगाम रहना देश के लोकतंत्र के लिए घातक होगा।
1 comment:
कांग्रेस पार्टी द्वारा निर्माण कॉलेजियम प्रणाली में इतनी छेद है कि कोई भी अच्छा नहीं कर सकता, जब पहली नियुक्ति के लिए परीक्षा की जरूरत है तो न्यायिक पदोन्नति में भी लागू होनी चाहिए, जो परिणाम में टॉप पर होता है उसकी नियुक्ति की जाती है, अभी तक जितने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं, सब के सब को नियम की कोई जानकारी नहीं है
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