प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र : न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए सुझाव (Part 2)

सुभाष चन्द्र 

गतांक से आगे 

10.(A) हाई कोर्ट में नियुक्ति के समय, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनने के समय, सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के समय, सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस बनने के समय और रिटायर होने के समय भी सभी जजों की Assets & Liability statement जमा होनी चाहिए। यह नियम जब केंद्रीय सरकार के सभी कर्मचारियों के लिए लागू हैं तो जजों के लिए भी लागू होना चाहिए और केंद्र सरकार के कर्मचारियों से पूछ कर तो नियम नहीं बनाए गए तो जजों से सलाह क्यों होनी चाहिए;

(B) जो भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी श्रेणी का कर्मचारी या अधिकारी या जज हो, Consolidated Fund of India से वेतन लेता है, उसकी Assets & Liability जानने का अधिकार सरकार को होना चाहिए;

11. न्यायपालिका में भी “परिवारवाद” समाप्त करना जरूरी है और इसलिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ऐसे किसी व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश न की जाए जिसके परिवार का कोई सदस्य कोई न्यायाधीश रहा हो;

12. सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में नियुक्त होने वाले जजों का कार्यकाल नियत होना चाहिए - हाई कोर्ट में अधिकतम 5 वर्ष या 62 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, और सुप्रीम कोर्ट में 5 वर्ष या आयु 65 वर्ष - इस तरह 8 - 8 साल की अवधि या उससे भी ज्यादा की  सर्विस वाले रोके जा सकेंगे जिससे अदालत में तानाशाही कम हो;

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13. हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति केवल UPSC द्वारा की जाए और जो भी उम्मीदवार चयनित हो, उसे नियुक्ति से पहले अपनी और अपने परिवार की Assets & Liability स्टेटमेंट जमा करनी चाहिए; इससे भी न्यायपालिका में परिवारवाद पर अंकुश लगेगा;

14. वर्तमान कॉलेजियम के minutes की विधिवत Recording होनी चाहिए जिससे पता चल सके कि किसी हाई कोर्ट के एक या दो वकीलों की हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश किस आधार पर की जाती है जबकि हाई कोर्ट में तो हजारों वकील होते हैं;

15. हाई कोर्ट के जजों का ट्रांसफर करते हुए उनकी संबंधित कोर्ट में seniority देख कर ही ट्रांसफर होना चाहिए जबकि सुप्रीम कोर्ट Junior Judges को भी ट्रांसफर कर देता है जो नियमों के अनुसार नहीं है;

16. सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून को रद्द करने का अधिकार नहीं होना चाहिए, कोर्ट केवल कानूनी कमियां बताने का अधिकार रखता है, और वह सरकार को कमियां बताए, सरकार चाहे तो स्वीकार करे और संशोधन भी कर सकती है, वरना उसे ही क़ानून माना जाए संसद 140 करोड़ जनमानस की प्रतिनिधि है और इस नाते संसद को ही कानून बनाने का अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट किसी तरह भी संसद से ऊपर नहीं हो सकता;

17. किसी भी मुक़दमे या अपील के हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में 2 वर्ष से ज्यादा समय तक  लंबित होने पर उस कोर्ट के चीफ जस्टिस और रजिस्ट्री की जवाबदेही तय होनी चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी नियम बनाए जाने चाहिए;

18. जो भी आज की तारीख में ऐसे मामले 2 वर्ष से ज्यादा लंबित हैं, उनके बारे में 3 महीने जांच कर जवाबदेही तय कर फैसला होना चाहिए; और ऐसे मामलों के फैसले 6 महीने होने चाहिए; लालू यादव की 32 साल सजा की 5 अपील कई वर्षों से झारखंड हाई कोर्ट में लंबित हैं;

19. किसी केस में यदि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट स्टे लगाता है तो उसका फैसला 3 महीने में हो जाना चाहिए जबकि स्टे लगाने के बाद वर्षों तक मुकदमो और अपीलों पर फैसला नहीं होता;

अवलोकन करें : -

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र : न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए सुझाव

20. विधायकों और सांसदों को यदि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई 2 वर्ष की सजा के आधार संसद या विधानसभा से अयोग्य किया जाता है तो उनके खिलाफ अपीलों पर फैसला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 2 महीने में हो जाना चाहिए, जिससे वह बिना वजह विधायक या सांसद न रह सके;

क्रमशः 

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