कांग्रेस की दुर्दशा देख हर सनातन विरोधी को आंखे खोलनी चाहिए। याद करो, 7 नवम्बर 1966, इस दिन पार्लियामेंट स्ट्रीट नई दिल्ली में "गौ हत्या" जब निहत्ते साधुओं पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की पुलिस गोलियां बरसा कर खून की होली खेली जाने के कारण पार्लियामेंट स्ट्रीट खून से लाल हो गयी थी, तब कृपालु जी महाराज ने इंदिरा को श्राप दिया था कि "इंदिरा जिस तरह गोपाष्टमी के दिन निहत्ते साधुओं के खून की होली खेली जा रही, तेरी भी मौत गोपाष्ठमी के ही दिन होगी, संयोगवश 31 अक्टूबर 1984 को गोपाष्ठमी ही थी। दूसरे यह कि "कांग्रेस को बर्बाद करने हिमालय से मॉडर्न ड्रेस में एक सन्यासी आएगा।" 1966 के बाद से राज्यों से कांग्रेस का ग्राफ गिरना शुरू हो गया। कई राज्यों से तो आज लगभग ख़त्म ही है। बस एक पुरानी पार्टी होने की वजह से कांग्रेस अपने अंतिम पड़ाव पर आ चुकी है। जिन पार्टियों को जिन्दा रहने के लिए कांग्रेस का दामन संम्भालना चाहिए था, आज कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के दरवाज़े माथा टेक रही है। मोदी को हराने भारत विरोधियों के सहारे खड़ा होने से ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है। लेकिन मुर्ख जनता सच्चाई नहीं देख रही।
एक बात और ध्यान देने वाली है जिसे समझने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को खोलना होगा। गाज़ी जिन्हे मुग़ल बादशाह कहकर इन पाखंडी secularists ने देश को गुमराह किया। भारत को छोड़ विश्व में कोई ऐसा देश नहीं जहाँ इन गाज़ियों का गुणगान किया जाता हो, जितना भारत में किया जाता है। कहने का मतलब है कि सनातन विरोधियों का कहीं कोई नामलेवा तक नहीं। दूसरे, धीरे-धीरे देश से उन पार्टियों का सफाया होना भी शुरू हो चूका है जो सनातन का विरोध कर राज्यों और केंद्र में भी सहयोगी बनी, लगभग हाशिए पर जा चुकी है। और कुछ धीरे-धीरे समाप्त होने की राह पर चल चुकी है। इस समय सनातन विरोधी पार्टियों की हालत उस बुझते दीये की तरह है जो बुझने से पहले ज्यादा टिमटिमाता है।
लेखक चर्चित YouTuber |
लेकिन BRICS में भारत ने आतंकवाद को आधार बनाकर पाकिस्तान की तो एंट्री को रोका ही, साथ ही पाकिस्तान का साथ देने वाले तुर्की को भी BRICS में नहीं घुसने दिया। दिलचस्प बात यह है कि मोदी के अमेरिका जाने से पहले राहुल गांधी अमेरिका जरूर जाता है और वहां के लोगों/अधिकारियों और पाकिस्तानी दलालों के साथ भारत विरोधी षड़यंत्र रचता है लेकिन मोदी की रूस यात्रा से पहले रूस नहीं जाता। शायद इसलिए कि रूस में उसे कोई “घास” नहीं डालता।
उधर कनाडा के जस्टिन ट्रूडो का भारत विरोध देख कर कांग्रेस की बांछें खिल गई थी, बड़ा मजा आ रहा था और कह रहे थे कि ऐसे संबंध हमारे कभी ख़राब नहीं हुए, बस मोदी में कमियां निकाल रहे थे लेकिन हुआ क्या? ट्रुडो के खिलाफ ही उसकी पार्टी में बगावत खड़ी हो गई और उसके पहले ट्रुडो ने ही हाथ खड़े कर दिए कि उसके पास भारत के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।
अमेरिका पन्नू को लेकर भारत के सामने तलवारें ताने खड़ा है और राहुल गांधी ने पन्नू के कथित खालिस्तान को ही हवा दे दी, बस मोदी का विरोध करने के लिए लेकिन अमेरिका भी पन्नू मामले में उलझ कर पन्नू की भारत को दी गई आतंकी धमकी का साथ दे रहा है और कांग्रेस तो है ही आतंकवाद के साथ।
सबसे बड़ा सहारा तो कांग्रेस और राहुल गांधी का चीन है लेकिन पिछले 60 साल में जिस तरह मोदी की डिप्लोमेसी के चलते जिनपिंग को गलवान में पीछे हटना पड़ा वह उसकी हार से कम नहीं है। इतना ही नहीं चीन ने राहुल गांधी गैंग के “पालनहार” George Soros को “आर्थिक आतंकवादी” घोषित किया हुआ है। जिनपिंग का मोदी की तरफ झुकना (जिस पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता) राहुल गांधी के लिए अपने आप में झटका है जिसका मतलब ये सहारा भी कमजोर हो गया।
अब भारत में देखो, उमर अब्दुल्ला ने पहले तो कांग्रेस का कोई मंत्री नहीं बनाया जिससे कांग्रेस को सरकार से समर्थन वापस लेना पड़ गया, अब्दुल्ला ने कहा “Get Lost” और Deputy Speaker का पद भाजपा को दे कर एक लट्ठ और मार दिया कांग्रेस को।
अखिलेश यादव ने टाटा बाय बाय कर दिया जो उपचुनाव में एक सीट भी नहीं दी, हरियाणा चुनाव के बाद केजरीवाल भी आंखे तरेड़ रहा है और झारखंड में मनमाफिक सीट नहीं मिल रही।
सबसे बड़ा खेल तो महाराष्ट्र में हो रहा है 2 दिन रह गए नामांकन भरने को लेकिन सीटों का बटवारा नहीं हो रहा। अब सुना है 90-90 सीट पर कांग्रेस, पवार, उद्धव लड़ेंगे लेकिन अभी भी फ़ाइनल नहीं है। 2019 में उद्धव ने 124 और पवार ने 125 सीट लड़ी थी। बेहतर है अबकी बार उद्धव और पवार 140-140 सीट लड़ें और 8 समाजवादी पार्टी को दें, कांग्रेस को फिर 288 अकेले ही लड़ने दें। यह उत्तम रहेगा।
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