पेंशन भोगी का क्या साल में एक बार बैंक जाकर अपना जीवन प्रमाणपत्र देने का कर्तव्य भी नहीं निभा सकते; बैंक का क्या किसी के बाप के नौकर हैं जो अदालत ने बैंक को ही प्रवचन दे दिया

सुभाष चन्द्र

इस देश में सबसे बड़ी समस्या है कि हर किसी को अपने अधिकारों की चिंता है, कर्तव्य कोई नहीं निभाना चाहता और कोर्ट भी उनके अधिकार सुनिश्चित करने में ज्यादा रूचि रखते हैं लेकिन लोगों को उनके कर्तव्य बताने को राजी नहीं है क्योंकि इससे सरकार पर दबाव बनता और वह परेशान होती है। 

क्या पेंशन भोगी एक साल में एक बार अपना जीवन प्रमाण पत्र भी बैंक में जाकर जमा नहीं करेगा, कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक फैसले में पेंशन भोगियों को अपने जीवन प्रमाण पत्र जमा न करने के लिए Motivate किया है जिससे सभी बैंक परेशान हों। 

रिट याचिका 405 / 2023 पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि कोई पेंशन भोगी Life Certificate जमा नहीं करता तो बैंकों को उनकी पेंशन रोकने से पहले उसके घर जाकर पता करना कि क्या बात है। Delay और Laches की वजह से किसी के जायज हक़ नहीं मारे जाने चाहिए। 

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ये मामला था 102 साल के नागभूषण राव, एक freedom fighter का था जिन्हें सरकार से 1974 से पेंशन मिल रही थी पेंशन सरकार से मिल रही थी जो बैंक देता था उन्होंने अपना जीवन प्रमाण पत्र 2017 और 2018 के लिए जमा नहीं किया वह प्रमाणपत्र दिसंबर 2018 में जमा कराया गया जिस दिन प्रमाणपत्र जमा किया उस दिन से 5 अक्टूबर, 2020 तक की पेंशन बैंक ने जारी कर दी

पेंशन भोगी नागभूषण ने एक नवंबर 2017 से दिसंबर, 2018 तक की पेंशन जारी करने के लिए कहा जो 3,71,280 रुपये थी यानी 14 महीने की पेंशन थी 26,520 रूपए प्रति माह

कोर्ट ने बैंक को पेंशन भोगियों के घर जाने के प्रवचन देते हुए बैंक पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि 2 सप्ताह में पूरी पेंशन 6% ब्याज के साथ अदा कर दी जाए और यदि ऐसा नहीं किया जाता तो ब्याज 18% देना होगा

बैंकों के मेरे कुछ मित्र इस फैसले से बड़े खुश हैं यह फैसला लोगों के केवल अधिकार की रक्षा करने के बात करता है उन्हें कर्तव्य पूर्ति की सलाह नहीं देता बंदे ने 2 साल तक जीवन प्रमाण पत्र नहीं दिया और जाहिर है न बैंक को कोई सूचना दी होगी कि वह प्रमाण पत्र क्यों नहीं दे सका 

इस रिपोर्ट में यह भी नहीं लिखा कि वे चलने फिरने की हालत में नहीं थे और अगर ऐसा होता तो बैंक अधिकारी जरूर उनके घर आता क्योंकि ये RBI के निर्देश हैं उसके अनुसार यदि कोई पेंशन भोगी शारीरिक कष्ट के कारण बैंक नहीं आ सकता तो बैंक उसके घर अपना प्रतिनिधि भेजेगा 

यह जीवन प्रमाण पत्र साल में एक बार नवंबर के महीने में जमा करना होता है पेंशन भोगी की पेंशन Bread & Butter है और वह उसे लेने बैंक हर महीने जा सकता है तो Life Certificate भी जमा करा सकता है 

लेकिन कोर्ट के आदेश ने पेंशन धारकों को खुली छूट दे दी कि चाहे जीवन प्रमाण पत्र जमा करो या न करो, बैंक तुम्हारी पेंशन बंद नहीं कर सकता, उसे तुम्हारे घर आना होगा क्योंकि बैंक वाले तुम्हारे बाप के नौकर हैं आप सोचो यदि ऐसे बहक कर किसी बैंक में 5000 लोगों ने भी सर्टिफिकेट जमा नहीं कराया तो बैंक की हालत ख़राब हो जाएगी 5000 लोगों के घर में अधिकारी भेजते हुए 

समस्या सारी यह है कि हाई कोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट हो, उनके जज बोलते हुए, आदेश देते हुए सोचते ही नहीं (no application of mind) कि वो बोल क्या रहे हैं सरकार को जलील करना तो अपना परम कर्तव्य समझते हैं बैंक के अपने कुछ नियम होते हैं लेकिन अदालत बैंक ही नहीं सरकार के हर क्षेत्र में अपने नियम घुसेड़ना चाहते हैं यानी हर काम में दखल देना चाहते हैं और यह बहुत खतरनाक प्रवत्ति है

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