चंद्रचूड़ कह रहे है - रिटायर होने के बाद जज राजनीति से दूर रहें: लेकिन जो जज होते हुए भी राजनीति करते हैं, उनका क्या? केजरीवाल के केस में खुलकर राजनीति की गई

सुभाष चन्द्र

पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ अब जजों को सलाह दे रहे हैं कि रिटायर होने के बाद उन्हें राजनीति से दूर रहना चाहिए लेकिन जनाब, जो जज रहते हुए भी राजनीति खेलते हैं, जिनमें आप भी शामिल रहे, तो उनके बारे में क्या कहेंगे? वकीलों की चांडाल चौकड़ी के साथ लिप्त सुप्रीम कोर्ट के जज खुली राजनीति करते हैं जैसे आप Electoral Bonds, AMU और मदरसा बोर्ड के बारे में कर गए। 

केजरीवाल की जमानत को देख कर साफ़ लगता है किस कदर राजनीति का नंगा नाच हुआ वह अकेला था केजरीवाल जिसे जमानत देते हुए जस्टिस भुइया ने उसे बचाते हुए कहा कि किसी आरोपी को उसे खुद के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता यह बात शराब घोटाले में लिप्त किसी और के लिए नहीं कही गई

चंद्रचूड़ की जगह लेने वाले CJI संजीव खन्ना कुछ भी बदलाव करें सुप्रीम कोर्ट में लेकिन उन पर केजरीवाल को गलत तरह से जमानत देने का कलंक तो हमेशा के लिए लग गया कि जिसने जमानत मांगी नहीं, उसे जमानत दे दी और 12 जुलाई को ED के केस में जमानत देते हुए केजरीवाल की गिरफ़्तारी की वैधता पर फैसला करने के लिए 3 जजों की बेंच गठित करने के लिए कह कर खुद पतली गली से निकल गए आज 4 महीने हो गए हैं लेकिन 3 जजों की बेंच नहीं बनाई गई चंद्रचूड़ निकल गए और अब संजीव खन्ना क्या अपने लाड़ले “केजरीवाल” के खिलाफ बेंच बनाएंगे, ऐसा लगता तो नहीं है। यह है राजनीति कुर्सी पर बैठे हुए!

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एक राजनीति सुप्रीम कोर्ट ने और खेली कि राजनेताओं और जजों के सत्ता में रहते हुए किये गए किसी अपराध के लिए मुकदमा चलाने के लिए राज्य या केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी और इस तरह नेताओं के मुकदमों को Indefinite Time के लिए लटका दिया अगर अनुमति नहीं भी ली गई है तो कोर्ट को Competent Authority को एक महीने में अनुमति देने या न देने का फैसला करने के लिए आदेश देने चाहिए न कि इस तकनीकी आधार पर मुकदमा ही ख़ारिज का दिया जाए

अभी कुछ दिन पहले चिदंबरम और उसके बेटे के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट ने Aircel-Maxis केस की सुनवाई पर इस अनुमति की वजह से ही रोक लगा दी  केजरीवाल भी इसी आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट गया कि उस पर competent authority से  मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं ली गई और इसलिए Charge Sheet को रद्द किया जाए हाई कोर्ट के जस्टिस मनोज ओहरी ने सुनवाई रोकने से मना तो कर दिया लेकिन ED के कहने के बावजूद कि उसके पास अनुमति है, सरकार को नोटिस जारी करके अनुमति की कॉपी मांगी है

केजरीवाल ने दलील दी हैं कि CrPc की धारा 197(1) में सरकार से अनुमति नहीं ली गई, यह कानून अब बदल चुका है BNSS से यानी केजरीवाल पुराने CrPc का सहारा ले रहा है और उसका चाटुकार विभव कुमार अपनी चार्जशीट रद्द कराने के लिए कह रहा है कि कोर्ट ने CrPc की धारा 190(1)(b) में संज्ञान लिया जबकि संज्ञान लेते समय BNSS आ चुका था 1 जुलाई, 2023 से दोनों मिलकर कानूनी दांवपेच में अपने मुकदमों को उलझना चाहते हैं

CrPc की धारा 197 का शिगूफा छेड़ कर सुप्रीम कोर्ट ने राजनेताओं की मौज करा दी और यह थी विशुद्ध राजनीति क्योंकि यदि मनी लॉन्ड्रिंग में CrPc की इस धारा में अनुमति की जरूरत होती तो PMLA एक्ट में इसका प्रावधान होता मजे की बात है कि CrPc में कहीं जजों का जिक्र नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये नियम जजों के लिए लागू कर दिया पता नहीं किसे बचाना चाहते थे

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