कायस्थ समाज के जनक श्री चित्रगुप्तजी महाराज
वर्ष भर मनाए जाने वाले त्यौहार उन सभी सनातन विरोधियों और पश्चिमी संस्कृति में डूबे लोगों पर एक जबरदस्त प्रहार है। हर त्यौहार केवल भारतीय संस्कृति को उजागर नहीं बहुत कुछ वर्णन करता है। हर त्यौहार हर ऋतु के आने का संकेत देते हैं जो विश्व के किसी अन्य मजहब में नहीं। होली गर्मी आने का संकेत देती है तो श्राद्ध शरत ऋतु के आने का संकेत देते हैं। जो दीपावली के बाद आने वाले गंगा स्नान से अपने चरम पर आने का। भारतीय संस्कृति में हर रिश्ते का अपना महत्व है और अगर बात अगर भाई-बहन के संबंध की हो तो परंपराए इस प्रकार से बनाई गई हैं कि ये समय-समय पर इस रिश्ते को और मजबूत करती हैं।ऐसी ही एक परंपरा हमारे समाज में भैया दूज को मनाने की सदियों से चलती चली आई है। जीवन में तमाम व्यस्तता के बाद भी अगर आज इस त्योहार का लोग महत्व समझते हैं, इसे मनाने के लिए उत्सुक रहते हैं, तो यही इस परंपरा की जीत है।
भैया दूज हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन भाई के माथे पर तिलक करके बहन अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है, लेकिन सिर्फ तिलक से लंबी उम्र का क्या संबंध है ये कई लोग सोचते हैं तो चलिए आज एक पौराणिक कथा के जरिए इस तिलक के महत्व के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि इसका संबंध कैसे भाई की दीर्घायु से जोड़ते हैं।
यम और यमुना से जुड़ी कथा
ये कथा है यमराज और उनकी बहन यमुना मैया की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यमराज और यमुना मैया दोनों ही भगवान सूर्य की संताने हैं लेकिन सूर्य देव की तेज किरणों के कारण वो अपनी माता संज्ञा के साथ अलग रहे। बाद में यम देव ने अपनी यमपुरी बसाई जहाँ दुष्टों को उनके कर्मों के लिए दंड दिया जाता था।
यमुना मैया निर्मल स्वभाव की थीं। उनसे ज्यादा दिन ये सब देखा नहीं गया और आखिर में वह गोलोक चली गईं। समय बीता। एक दिन यमराज को अपनी बहन की बहुत याद आई। उन्होंने अपने दूतों को भेज कहा कि वो जाकर यमुना जी का पता लगाएँ। बहुत खोजने के बाद जब किसी को यमुना जी का पता नहीं चला, तब यम देव खुद गोलोक के लिए चले और इस तरह बहुत वर्ष बाद भाई-बहन की आपस में भेंट हुई।
यमुना जी अपने भाई को देख इतनी प्रसन्न थीं कि उन्होंने यम देव का तिलक कर उनका स्वागत किया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया। बहन का प्रेम देख यमराज भी भावुक हो गए। उन्होंने अपनी बहन से कहा कि वो उनसे कुछ भी वरदान माँग लें। इस पर यमुना मैया को यमपुरी में लोगों को दी जाने वाली यातनाओं की याद आई और उन्होंने कहा – “मुझे ये वर दें कि जो कोई मेरे जल में स्नान करे वो यमपुरी में न जाए।”
यमराज इस वरदान को सुन सोच में पड़ गए कि अगर ऐसा हुआ तो यमपुरी में आएगा ही कौन। तभी बहन यमुना ने फिर कहा कि आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन से तिलक कराएँ और मेरे जल में स्नान करे वो कभी यमपुरी न जाए।
इसी वरदान के बाद द्वादशी तिथि को भाई दूज मनाने की परंपरा चली और हर बहन ने अपने भाई के माथे पर तिलक करके उनकी लंबी उम्र की कामना करनी शुरू की।
माना जाता है कि जो भाई इस दिन अपनी सगी बहन के हाथ से भोजन को स्नेहपूर्वक करता है, उसके उपहार देता है उसके बल में वृद्धि होती है। वह एक साल तक किसी कलह एवं शत्रु के भय का सामना नहीं करता। उसके धन, यश, धर्म, काम में बढोतरी होती है।
भगवान कृष्ण और सुभद्रा की कहानी
इस कथा के अलावा एक कथा और मशहूर है जिसका संबंध भगवान कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा से जुड़ा है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने जब नरकासुर का वध किया तो उसके बाद वो अपनी बहन से मिलने गए।इसके बाद सुभद्रा ने उनका स्वागत तिलक करके और आरती करके किया। इस दौरान भगवान ने अपनी बहन को आशीर्वाद दिया कि वो हमेशा अपनी बहन की रक्षा करेंगे।
भाई दूज का भारत में महत्व
आज इस त्योहार को मनाने का तरीका जगह-जगह अलग हो सकता है लेकिन इस त्योहार को लेकर विश्वास सबका एक ही है। ये केवल एक भाई दूज केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है। पूरे भारत में इसे विभिन्न नामों से मनाया जाता है। कहीं इसे भाई दूज कहते हैं तो कहीं पर भाई तीज कहा जाता है। विदेशों में भी धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति के प्रति रूचि रखने वाले लोग इस उत्सव को मनाते हैं।
कायस्थों के जनक श्री श्री चित्रगुप्त जी की भी इसी दिन पूजा की जाती है
जानिए आखिर क्यों कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को ही क्यों मनाया जाता है, उसका मुख्य कारण यह है कि जब पुरुषोत्तम श्रीराम का बनवास उपरांत राजतिलक में किसी कारणवश श्री श्री चित्रगुप्त जी महाराज को निमंत्रण रह गया, जब प्रभु श्रीराम ने चित्रगुप्त जी महाराज दिखाई नहीं देने पर पूछताछ करने पर गुरु वशिष्ठ ने अपनी गलती बताते हुए निमंत्रण रह जाने का कारण बताया। लेकिन सबको राजतिलक में जाते देख स्वयं को अनदेखा किये जाने से नाराज होकर 3 दिन तक समस्त कार्य बाधित कर दिया। मृत्युलोक से जाने वालों की भीड़ लग गयी। लेकिन जब 3 दिन बाद ब्रह्मा, एवं महेश(शिव) ने चित्रगुप्त जी महाराज को गलती बताकर प्रभु श्री राम जी के माफ़ी सन्देश को बताने के बाद श्री श्री चित्रगुप्त जी महाराज ने अपने सहयोगियों को 24 घंटे काम करने का आदेश दिया और मृत्युलोक (पृथ्वी) से आये मृतकों की लगी भीड़ को समाप्त किया।
श्री श्री चित्रगुप्तजी महाराज अपना क्रोध यह सुनकर आनंदित हो गए कि प्रभु ने यह भी कहा है कि 'जब कार्य सम्पूर्ण होने पर अपने परमधाम वापस आऊंगा तो सर्वप्रथम उन्ही से भेंट कर अपने धाम जाऊंगा।' यही कारण है कि कायस्थ समाज आज के दिन इनकी स्तुति करते कलम और दवात की भी पूजा करता है।
No comments:
Post a Comment