जब से 2022 में जस्टिस खानविलकर की पीठ ने PMLA एक्ट के सभी प्रावधानों को वैध ठहराया है, तब से ही विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस एक्ट में नए नए संशोधन करते आ रहे हैं जिससे यह एक्ट इतना कमजोर हो जाए कि अपराधियों को छूट मिल जाए और मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम कमजोर पड़ जाए।
तेलंगाना में एक IAS अधिकारी के खिलाफ ED द्वारा मनी
लॉन्ड्रिंग का केस चलाए जाने को हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था यह कह कर कि केस चलाने के लिए सरकार से स्वीकृति नहीं ली गई। ED ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ED की मुख्य दलील थी कि PMLA एक्ट एक विशेष एक्ट है जिसमें किसी भी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। IAS अधिकारी ने कहा था कि CRPC के section 197 के अंतर्गत सरकार की अनुमति की जरूरी है क्योंकि उन्होंने जो भी एक्शन लिया वह अपने आधिकारिक क्षमता के अनुसार लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने ED की अपील को ख़ारिज करते हुए कहा कि -लेखक
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“सरकारी अधिकारियों और जजों के खिलाफ उनकी पब्लिक ड्यूटी के दौरान हुए कथित अपराध के मामले में उन पर PMLA एक्ट (मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के तहत केस चलाने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होगी। CRPC की धारा 197(1) के तहत प्रावधान है कि सरकारी कर्मी के खिलाफ केस चलाने के लिए सरकार के संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होती है”।
कोर्ट ने कहा कि CRPC का यह प्रावधान PMLA केस में भी लागू होता है।
यह प्रावधान लागू नहीं होता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपनी Interpretation से लागू कर दिया है जो एक error of judgement है और कोर्ट ने जरूरत से ज्यादा application of mind दिखाया है क्योंकि CRPC धारा 197(1) में जो कहा गया है वह इस केस में क्या किसी केस में लागू नहीं होता
इसमें 2 बातें है कि यह CRPC की धारा ऐसे मामलों में लागू होने का जिक्र नहीं करती और अगर यह लागू होना तो संसद द्वारा पास किए गए PMLA एक्ट में इसका जिक्र किया गया होता और इसलिए ED का कहना सही है कि यह एक विशेष एक्ट है जिसमे किसी अनुमति की जरूरत नहीं है लेकिन सुप्रीम कोर्ट तो तानाशाहों का गिरोह बन चुका है जो किसी की बात न सुनना चाहता है और न ही मानना नहीं चाहता।
CRPC की धारा 197 (1 ) कहती है कि -
“no court can take action against a public servant for an alleged offense unless the government has given its prior sanction. This protection applies to public servants who cannot be removed from their office without the sanction of the state or central government”
इस प्रावधान का सही Interpretation है कि ये तब ही लागू होगा जब या तो सरकारी अधिकारी को पद से हटाया गया हो या हटाया जाना हो। केवल मनी लॉन्ड्रिंग का केस चलाने भर के लिए यह section 197(1) लागू नहीं हो सकता। दूसरी बात, यह सेक्शन केवल सरकारी कर्मियों के लिए बात करता है, इसे जजों पर कैसे सुप्रीम कोर्ट ने लागू कर दिया क्योंकि इसमें जजों का जिक्र ही नहीं है।
कहने का मतलब है कि यदि सरकारी कर्मी ने राज्य सरकार की या सरकार चला रही पार्टी की मिलीभगत से कथित अपराध किया है तो वह सरकार उसके खिलाफ केस चलाने की मंजूरी देगी ही नहीं और फिर मंजूरी नहीं देने का मामला भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में धक्के खाता रहेगा और अपराधी मौज में रहेगा और सजा से बचा रहेगा।
यानी सुप्रीम कोर्ट ने मनमाने तरीके से अपराधियों को राहत देने का काम किया है जिससे मोदी सरकार की भ्रष्टाचार की मुहिम कुंद होती रहेगी। सुप्रीम कोर्ट के जजों को कानून बनाने का इतना चस्का है तो नौकरी छोड़ कर सरकार में आए।
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