मौलानाओं की अली सीना(Understanding Mohammad And Muslims) और अनवर शेख की किताबों पर चुप्पी बहुत कुछ बयान करती है। लेकिन ना ही किसी में इनकी किताबों को बैन या इनके खिलाफ कोई फतवा देने की हिम्मत, क्यों? जबकि इनकी किताबों के आगे रुश्दी की किताब लगभग शून्य है। अली सीना ने तो अपनी किताब में दावा किया है कि किताब को पढ़ने के बाद मुस्लिम इस्लाम छोड़ रहे हैं। अनवर और अली के अलावा बहुत किताबें आसानी से उपलब्ध हैं। फिर रुश्दी ही निशाने पर क्यों? शायद अनवर और अली की किताबों को पढ़ ex-muslims की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। यही वजह है कि इन ex-muslims ने खतना आदि कई मुस्लिम रस्मों पर सवाल खड़े किए हैं। जिन्हे हर मुस्लिम इस्लामिक हक़(रिवाज़) मानता है। नूपुर शर्मा को जितना इन ex-muslims ने बचाव किया है किसी और ने नहीं। Jaipur Dialogue, Sach और NewsNation पर 'इस्लाम क्या कहता है' आदि चैनलों पर चर्चाओं में इन ex-muslims के आगे मौलाना पसीने पोंछते नज़र आये।
क्यों बैन हुई थी किताब?
सलमान रुश्दी की यह किताब 1988 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। सलमान रुश्दी जन्मे भारत में थे लेकिन बाद में वह इंग्लैंड चले गए थे और यहीं उन्होंने यह किताब लिखी थी। इस्लामी कट्टरपंथियों का कहना है कि इस किताब का कथानक इस्लाम के विश्वासों का मजाक उड़ाता है और अपमान करता है। इस किताब में पैगम्बर मोहम्मद जैसे एक पात्र, उनकी 12 पत्नियों को लेकर भी लिखा गया है।
सलमान रुश्दी ने किताब में कहीं-कहीं ऐसा दिखाने की कोशिश की थी कि कुरान में पैगम्बर मुहम्मद द्वारा लिखी गई बातें उन्हें अल्लाह के फ़रिश्ते ने नहीं बताई बल्कि उन्होंने खुद लिखी थी। इसके अलावा उनकी 12 पत्नियों के नामों पर भी लिखा गया है। उन 12 पत्नियों के नाम इस किताब में 12 वेश्याएँ रख लेती हैं। इसके अलावा भी किताब में इस्लाम से जुड़ी बहुत सी धारणाओं से मिलती जुलती कहानी बनाकर उन पर प्रहार किया गया था।
इसके बाद सलमान रुश्दी के खिलाफ दुनिया भर में मुस्लिम गुस्सा हो गए थे। मुंबई में इस किताब को लेकर दंगे हुए थे जिसमे 12 लोगों की मौत हुई थी। जामिया के वाईस चांसलर मुशीरुल हसन को किताब के बैन की आलोचना के चलते निकाल दिया गया था और इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन्हें बेरहमी से पीटा था।
कश्मीर में भी एक आदमी मारा गया था। यहाँ तक कि 1989 में ईरान के मुल्ला शासक आयतुल्लाह खुमैनी ने लेखक सलमान रुश्दी का सर कलम करने का आदेश दुनिया भर के मुस्लिमों को दिया था। इस किताब को बैन करने का आह्वान तत्कालीन कॉन्ग्रेस सांसद सैयद शहाबुद्दीन और खुर्शीद आलम खान (कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के अब्बा) ने भारत में किया था।
शहाबुद्दीन ने किताब के खिलाफ याचिका दायर कर इस पुस्तक को सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा बताया था। इसके बाद राजीव गाँधी की सरकार ने 26 सितंबर 1988 को ब्रिटेन में पहली बार पब्लिश इस किताब पर 10 दिनों के भीतर बैन लगा दिया था। भारत इसे बैन करने वाला पहला देश था। इसे मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में नवम्बर, 1988 में बैन किया गया था।
किताब के भारत में आयात पर रोक लगाई गई थी। इसके बाद राजीव गाँधी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगा था। कॉन्ग्रेस सरकार ने बाद में इसके लेख सलमान रुश्दी के भारत आने पर भी रोक लगा दी थी। यह बैन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने हटा दिया था।
कैसे हटा बैन, अब कहाँ मिल रही?
दिल्ली हाई कोर्ट में नवम्बर, 2024 में हुई एक सुनवाई में यह स्पष्ट हुआ था कि इस किताब के आयात पर रोक लगाने वाली अधिसूचना अब मौजूद ही नहीं है। कोर्ट ने तब कहा था, “अब हमारे पास यह मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है। इसलिए हम इसकी वैधता की जाँच नहीं कर सकते।” इस अधिसूचना को साल 2019 में संदीपन खान नाम के व्यक्ति ने कोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने न्यायालय को बताया कि वे पुस्तक पर प्रतिबंध होने के कारण इसे आयात नहीं कर पा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अधिसूचना न तो किसी आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है और न ही किसी प्राधिकरण के पास उपलब्ध है। संदीपन खान ने RTI के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस संबंध में जवाब भी माँगा था। गृह मंत्रालय ने जवाब में कहा था कि ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर प्रतिबंध लगा है। गृह मंत्रालय ने आदेश के मुताबिक, सीमा शुल्क विभाग से भी याचिका का बचाव करने को कहा गया था। वहीं, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क के अधिकारी प्रतिबंध से संबंधित अधिसूचना कोर्ट में पेश नहीं कर पाए।
इसके बाद कोर्ट ने इसे अस्तित्वहीन मान लिया और खान को यह पुस्तक आयात करने की अनुमति दे दी। पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता उक्त पुस्तक के संबंध में कानून के अनुसार सभी कार्रवाई करने का हकदार होगा।” दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सैटेनिक वर्सेज के आयात पर 36 साल से लगा प्रतिबंध खत्म हो गया है। अब इसे कोई भी आयात कर सकता है। इसके बाद स्पष्ट हो गया था कि अब यह किताब भारत में आ सकती है। यह किताब अब दिल्ली के किताब विक्रेताओं के पास आ गई है। किताब का दाम 1999 रूपए है।
‘Language is courage: the ability to conceive a thought, to speak it, and by doing so to make it true.’
— Manasi Subramaniam (@sorcerical) December 23, 2024
At long last. @SalmanRushdie’s The Satanic Verses is allowed to be sold in India after a 36-year ban. Here it is at Bahrisons Bookstore in New Delhi.
📸: @Bahrisons_books pic.twitter.com/fDEycztan5
अब मुस्लिम फिर कर रहे विरोध
मुस्लिमों ने इस किताब की भारत में एंट्री को लेकर फिर से विरोध जताया है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द उत्तर प्रदेश के लीगल एडवाइजर मौलाना काब रशीदी ने कहा है कि इस किताब में ईशनिंदा की गई है और इसकी बिक्री मुस्लिमों को भड़काने का प्रयास है। उन्होंने कहा है कि मुस्लिम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। रशीदी ने इस किताब को दोबारा बैन करने की माँग की है। एक और मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी ने कहा है कि कोई भी मुस्लिम इस किताब को दुकानों में देख कर बर्दाश्त नहीं करेगा।
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