शायद ही कोई ऐसा चुनाव होगा जिसमे शराब और नोट ना दिए जाते हों। लेकिन अब कुछ चुनावों से लगभग हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए रेवड़ियां बाँट खुलेआम वोट खरीद रही है जो सत्ता में आने वाली पार्टी सरकारी खजाने से देती है अपनी पार्टी के फंड से नहीं, क्यों? लालची यह नहीं समझते कि जब सरकारी खजाने से रेवड़ी बटेगी उसका भुगतान महंगाई के रूप में किया जाता है।
दूसरे, आज लगभग हर वस्तु पर हर नागरिक GST दे रहा है, फिर इनकम टैक्स क्यों? आखिर जनता कितना टैक्स देगी? लालची वोटरों को इस मुद्दे पर क्यों नहीं बोलती?
*तुम हमें वोट दो; हम तुम्हें लैपटॉप देंगे ......साईकिल देंगे स्कूटी देंगे
हराम की बिजली देंगे लोन माफ कर देंगे
..कर्जा डकार जाना, माफ कर देंगे
... ये देंगे .. वो देंगे ... वगैरह, वगैरह।
*क्या ये खुल्लम खुल्ला रिश्वत नहीं?
*क्या इससे चुनाव प्रक्रिया बाधित नहीं हो रही !!
*क्या इन सब प्रलोभनों से चुनाव निष्पक्ष होंगे?
*कोई चुनाव आयोग है भी कि नहीं इस देश में !
*आयोग की कोई गाइडलाइंस है भी या नहीं?
*वोट के लिए क्या आप कुछ भी प्रलोभन दे सकते हैं?
ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है इसकी जवाबदेही होनी चाहिये,
रोकिए ये खुलेआम भ्रष्टाचार है।
*वर्ना बन्द कीजिये ये चुनाव के नाटक .. और मतदान।
*हम मध्यमवर्गीय तंग आ गए हैं, क्या हम इन सबके लिए भर-भर कर टैक्स चुकाते रहें?
डिफाल्टर की कर्जमाफी... फोकट की स्कूटी...
हराम की बिजली...
हराम का घर...
दो रुपये किलो गेंहू...
एक रुपया किलो चावल...
चार से छह रुपये किलो दाल...
क्या सरकार ने BPL राशनधारकों का आर्थिक सर्वे किया? यदि नहीं क्यों? जिस दिन सरकार ने सर्वे किया अधिकांश बाहर होंगे। कितना चूसोगे टेक्स दाताओं को?
क्योंकि! वे तुम्हारे आका हैं! गरीब हैं, थोकिया वोट बैंक हैं, इसलिए फोकट खाना, घर, बिजली, कर्जा माफी दिए जा रहे हैं, बाकी लोग किस बात की सजा भोगें ?
जबकि होना ये चाहिये कि हमारे टैक्स से सर्वजनहिताय काम हों, देश के विकास का काम हों, रेल मार्ग, सड़कें, पुल दुरुस्त हों, रोजगारोन्मुखी कल कारखानें हों, विकास की खेती लहलहाती हो, तो सबको टैक्स चुकाना अच्छा लगता।
लेकिन आप तो देश के एक बहुत बड़े भाग को शाश्वत गरीब ही बनाए रखना चाहते हो। उसके लिए रोजगार सृजन के अनूकूल परिस्थिति बनाने की बजाए आप तथाकथित सोशल वेलफेयर की खैराती योजनाओं के माध्यम से अपना अक्षुण्ण वोट बैंक स्थापित कर रहे हो।
चुनाव आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन हैं कि कर्मशील देश के बाशिन्दों को तुरंत कानून लाकर कुछ भी फ्री देने पर बंदिश लगाई जाए ताकि देश के नागरिक निकम्मे व निठल्ले न बने।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटलजी कहा करते थे कि जनता को सिर्फ न्याय, शिक्षा व चिकित्सा के अलावा और कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलनी चाहिए। तभी देश का विकास संभव है।
एक टैक्सपेयर का दर्द...
जिससे यह बात चुनाव आयोग के कानों तक पहुँचे। बात में दम है और सही भी, अगर कोई नेता किसी को कुछ देना चाहता है तो वह अपनी कमाई से देकर देखो। आम जनता की कमाई के टैक्स से क्यों दी जाए। सभी को काम के बदले दाम दिए जाएं जनता को नकारा न बनाया जाए
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