यह बहुत गंभीर विषय है जिस पर मैंने अपने 25 मार्च के लेख में विवेचना की थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर मिश्रा ने 19 मार्च, 2025 के फैसले में कहा था कि “स्तनों को दबाना और लड़की के कपड़े उतारने की कोशिश करने से रेप की कोशिश साबित नहीं होती। ऐसा करना रेप की तैयारी करना है, रेप करना नहीं है”।
इसके बाद 23 मार्च को जस्टिस मिश्रा के फैसले के खिलाफ किसी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर की थी जिस पर सुनवाई जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की। वकील ने अपनी दलील शुरू करते हुए “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का जब जिक्र किया तो जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि वकील की तरफ से कोर्ट में कोई “lecture baji” नहीं होनी चाहिए और यह कह कर याचिका को खारिज कर दिया। यह थी दोनों जजों की “असंवेदनशीलता”।लेखक
चर्चित YouTuber
एक और याचिका “वी द वूमेन ऑफ़ इंडिया” ने 20 मार्च को दायर की थी जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अगस्टीन मसीह की पीठ ने जस्टिस मिश्रा की टिप्पणियों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उन्हें “असंवेदनशील व अमानवीय करार दिया और उन पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा कि “हाई कोर्ट के आदेश में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं और ये असंवेदनशील व अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, लिहाजा उन पर रोक लगाई जाती है”। अगली सुनवाई 15 अप्रैल को है।
जस्टिस गवई ने कहा कि “यह बहुत गंभीर मामला है और यह पूरी तरह से न्यायाधीश की “असंवेदनशीलता” को प्रदर्शित करता है। हमें न्यायाधीश के विरुद्ध ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है। हाई कोर्ट ने 13 नवंबर, 2024 को फैसला सुरक्षित किया था और लगभग चार महीने बाद फैसला सुनाया जिसका मतलब है न्यायाधीश ने सोच समझ कर फैसला दिया”।
इस मामले में “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन” संस्था ने भी पीड़िता की तरफ से पैरवी के लिए याचिका दाखिल की है। सॉलिसिटर तुषार मेहता ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ़ रोस्टर हैं, उचित होता कि कुछ कदम उठाए जाते। तब पीठ ने कहा कि हमारे आदेश की प्रति हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी भेजी जाए और उनसे अनुरोध किया कि वे जो भी उचित हो, कदम उठाएं।
अच्छी बात है जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह की पीठ ने जस्टिस मिश्रा की टिप्पणियों पर रोक लगा दी लेकिन मिश्रा के विरुद्ध की गई अपने कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद प्रकट करने की क्या आवश्यकता थी। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा कोई कदम न उठाए जाने की भी सुप्रीम कोर्ट की पीठ को भर्त्सना करनी चाहिए थी। इसका मतलब तो यह हो गया कि हाई कोर्ट के जज बेलगाम है जिन पर चीफ जस्टिस कुछ ध्यान नहीं देते।
अब प्रश्न यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट की ही 2 पीठ एक ही मामले में अलग अलग दृष्टिकोण कैसे अपना सकती है वह भी मात्र 3 दिन के भीतर। जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस वराले एक तरफ इस मामले को “लेक्चर बाजी” कह कर ख़ारिज कर देते हैं और दूसरी तरफ तीसरे ही दिन जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह हाई कोर्ट की टिप्पणियों पर रोक लगा देते हैं वह भी हाई कोर्ट के जज को “असंवेदनशील” कहते हुए।
“असंवेदनशील और अमानवीय” दृष्टिकोण तो जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस वराले ने जस्टिस मिश्रा से ज्यादा दिखाया और इसलिए जस्टिस गवई की पीठ को अपने साथी जजों के “सम्मान” में भी कुछ कहना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट के जजों की दो पीठों के फैसलों में ऐसा विरोधाभास दिखाई देगा तो जजों की विश्वसनीयता को धूमिल होगी ही।
No comments:
Post a Comment