न्यायाधीश अपने आपको कानून से ऊपर क्यों मानते हैं? जब हर प्रतिनिधि, चाहे वह किसी भी सदन का सदस्य होने के बावजूद अपनी संपत्ति और बैंक खातों का विवरण दे सकता है, फिर जज क्यों नहीं? फिर अपने आपको न्यायाधीश कहते हैं। जो न्यायाधीश खुद कानून नहीं मान सकता फिर किस अधिकार से दूसरों को कानून पालन करने का आदेश देते हैं?
जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिली दौलत बताती है कि न्यायपालिका में बैठे न्यायाधीश अपनी संपत्ति का ब्यौरा क्यों नहीं देते - उन्होंने अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना “स्वैच्छिक” बनाया हुआ है, क्योंकि सत्य वो बता नहीं सकते।
एक पार्षद से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ने वाले को अपनी Assets & Liabilities घोषित करनी होती हैं लेकिन न्यायाधीश कानून से ऊपर हैं और यह कहना कि कानून सबके लिए समान है, देश का सबसे बड़ा मज़ाक है और एक जुमले के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के “फुल कोर्ट” ने निर्णय लिया था कि सभी न्यायाधीश, पद संभालने पर और कोई महत्वपूर्ण प्रकृति का अधिग्रहण करने पर, अपनी संपत्ति की घोषणा मुख्य न्यायाधीश को करेंगे और इसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होंगे। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर संपत्ति की घोषणा स्वैच्छिक आधार पर होगी। इसलिए ऐसा बताते हैं कि 33 में से 27 जजों ने यह ब्यौरा मुख्य न्यायाधीश को दिया है जिसमें संजीव खन्ना भी शामिल हैं लेकिन किसी ने वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया।लेखक
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अब अगर ये Public Servant होते हुए अपनी संपत्ति पब्लिक डोमेन में नहीं देते तो फिर कोई भी पब्लिक सर्वेंट अपनी संपत्ति घोषित क्यों करें? कोई भी जज सुप्रीम कोर्ट में शपथ लेते हुए अपनी संपत्ति की घोषणा नहीं करता।
कल के एक अख़बार में सूचना थी कि देश के 25 उच्च न्यायालयों के 763 जजों में से केवल 57 से अपनी संपत्ति की घोषणा की है, यानी मात्र 7% ने। जस्टिस वर्मा ने भी यह घोषणा नहीं की थी।
Public Servants को न केवल अपनी बल्कि अपने परिवार की संपत्ति भी घोषित करनी होती है परंतु सभी मीलॉर्ड तो “बादशाह” होते हैं। परिवार की संपत्ति को छोड़ो, अपनी भी घोषित नहीं करते। किस किस हाई कोर्ट के जजों की क्या Performance है, यह भी देखिए:-
-पंजाब & हरियाणा हाई कोर्ट के 53 जजों में से 29 ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर दिया है;
-दिल्ली हाई कोर्ट के 39 में से केवल 7 ने संपत्ति वेबसाइट पर दी है;
- छत्तीसगढ़ के 16 में से केवल एक ने दी है;
-हिमाचल प्रदेश आगे है, यहां 12 में से 11 ने संपत्ति वेबसाइट पर डाली है;
-कर्नाटक के 50 में से केवल एक “ईमानदार” है जिसने संपत्ति दी है;
-केरल के 44 में 3 ही हैं जिन्होंने यह कुर्बानी दी है; और
-मद्रास हाई कोर्ट के 65 में से केवल 5 ने संपत्ति का ब्यौरा दिया है।
देश के 25 उच्च न्यायालयों में से 18 न्यायालयों के किसी भी जज ने संपत्ति की घोषणा वेबसाइट पर नहीं की - उनके नाम हैं
-इलाहाबाद;
-पटना;
-रांची;
-आंध्र प्रदेश;
-बॉम्बे;
-कलकत्ता;
-गुवाहाटी;
-गुजरात;
-जम्मू - कश्मीर;
-मध्य प्रदेश;
-मणिपुर;
-मेघालय;
-राजस्थान;
-सिक्किम;
-तेलंगाना;
-ओडिशा;
-त्रिपुरा और
-उत्तराखंड
फिर न्यायपालिका पर जनता को भरोसा कैसे होगा लेकिन फैसले करते हुए ये लोग बड़ी बड़ी बातें छौंकते हैं जैसे इनके भीतर से साक्षात भगवान बोल रहे हों।
“बदनाम चमन को करने को, बस एक ही उल्लू काफी है;
हर शाख पे उल्लू बैठा हो, तो अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा”।
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