आज न्यायपालिका पर हर कोई ऊँगली उठा रहा है, उसकी जिम्मेदार कोई और नहीं न्यायपालिका खुद है। अगर न्यायपालिका ने अपनी करनी नहीं सुधारी, वह दिन फिर दूर नहीं, जब न्यायपलिका का सडकों पर उसी तरह विरोध होगा जिस तरह नेताओं और सियासतखोरों का होता है।
सुप्रीम कोर्ट लगभग सैंकड़ो PIL लंबित है, क्यों? जो नेताओं को मिलने वाली पेंशन और अन्य अनावश्यक सुविधाओं के विरुद्ध है। उन पर सुनवाई न किये जाने का मुख्य कारण है कि उन्ही अनावश्यक सुविधाओं का न्यायपालिका भी फायदा उठा रही है। जस्टिस यशवंत वर्मा तो मात्र एक झांकी है फिल्म अभी कहाँ बाहर आयी है। जब कोर्ट किसी भी भ्रष्ट नेता को जेल भेज सकती है फिर जस्टिस यशवंत क्यों नहीं? न्यायपालिका को सबसे बड़ा डर यह है कि कहीं यशवंत अन्य जजों को भी न लपेटे न ले ले।
खैर, मार्च 29 को चंडीगढ़ की सीबीआई कोर्ट की जज अलका मलिक ने पंजाब & हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व जज निर्मल यादव को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया। कई पोर्टल पर खबर देखी लेकिन यह कहीं मिला कि किस आधार पर उन्हें बरी किया गया। Judicial Fraternity अपने लोगों पर आंच नहीं आने देती, इससे यह साबित होता है। एक कहावत है “अपना खाना, अपना खुजाना” लेकिन ये लोग कहते हैं “मैं तेरा खुजाऊँ, तू मेरा खुजा”।
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लेखक चर्चित YouTuber |
यादव को उत्तराखंड हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था और वहां से ही वो रिटायर हुई। जस्टिस निर्मल कौर को भी 2012 में राजस्थान हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था लेकिन 2018 में वो वापस आ गई और 2021 में रिटायर हो गई।
यादव के लिए पैसा पंचकूला के एक कथित प्रॉपर्टी विवाद में अपने हक़ में फैसले के लिए दिया गया था। इस केस में 4 गवाहों की मौत हो गई और 69 में से 13 गवाह मुकर गए (Hostile हो गए) जिनमें निर्मल यादव का सिक्यूरिटी अफसर और संजीव बंसल के रिस्तेदार भी शामिल थे जिसकी मौत brain tumor से ट्रायल के दौरान हो गई। संजीव बंसल के हक़ में फैसले के लिए ही कथित तौर पर रिश्वत दी गई थी।
अब सवाल यह उठता है कि यदि चीफ जस्टिस ने मुकदमा चलाने की अनुमति दी तो उसका कोई न कोई आधार तो रहा होगा मतलब Prima Facie CJI संतुष्ट थे की आरोप सही हैं। 13 साल में मुक़दमे में गवाह मुकरेंगे नहीं तो क्या भजन करेंगे? लेकिन CJI के संज्ञान लेने और उनकी अनुमति के बाद भी CBI कोर्ट ने निर्मल यादव को बरी कर दिया।
प्रश्न तो यह भी उठता है कि यदि दोनों जजों के नाम एक ही थे और गलती से पार्सल निर्मल कौर के पास चला गया जो निर्मल यादव के लिए था, तो यह बात तो साफ़ है कि पैसा दोनों में से किसी एक के लिए था लेकिन निर्मल यादव क्योंकि केस से संबंधित थी तो जाहिर है पैसा उन्हीं के लिए भेजा गया होगा।
इसलिए मेरा मानना है जस्टिस यशवंत वर्मा की भी Surf Excel से अच्छी तरह धुलाई हो जाएगी क्योंकि इस केस में तो चीफ जस्टिस खन्ना पुलिस में FIR करने और केस CBI/ED को भी सौंपने को तैयार नहीं हैं। वो बस एक राग अलाप रहे हैं कि 3 हाई कोर्ट के जजों की टीम की जांच के बाद ही इस पर विचार हो सकता है। वह समिति आग लगने के 11 दिन के बाद वर्मा के घर गई और 13 दिन बाद पुलिस से स्टोर रूम को सील किया।
इतना समय तो बहुत था वर्मा को सारे सबूत मिटाने के लिए और घर में रखे पैसे को ठिकाने लगाने के लिए। वैसे भी हाई कोर्ट के 3 जजों की टीम पुलिस/CBI/ED की तरह आपराधिक मामले की जांच नहीं कर सकती।
यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने की सिफारिश को सरकार ने मान लिया लेकिन मुझे लगता है कि इससे वह वहां तबियत से जलील होंगे क्योंकि बार एसोसिएशन उनके खिलाफ विद्रोह पर है और जब वे कोर्ट में जा कर अपने चैम्बर में “निठल्ले” बैठेंगे तो उन्हें कोई नहीं पूछेगा बल्कि हाई कोर्ट के जज भी उनसे कन्नी काटेंगे कि उनके साथ बैठा देख कर कहीं वो भी शक के दायरे में न आ जाएं।
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