कांग्रेस को सरदार पटेल के गुजरात की याद 60 साल के बाद आई जो वहां पार्टी का अधिवेशन आयोजित किया। पटेल का गुणगान करते हुए भी अधिवेशन से एक कांग्रेस का नेता Statue of Unity पर पुष्प चढ़ाने नहीं गया, अधिवेशन से जाने की बात तो छोड़िए अक्टूबर, 2018 से अभी तक किसी कांग्रेस के नेता ने वहां जाने की जरूरत नहीं समझी और आज बड़ी बड़ी बाते कर रहे हैं पटेल के बारे में। कुछ बातें वहां कही गई ➖
-पटेल की विरासत पर कब्ज़ा करने के प्रयासों के खिलाफ खुली लड़ाई लड़ेंगे;
-भाजपा और संघ कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं को सुनियोजित तरीके से हड़पने का प्रयास कर रहे हैं;
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लेखक चर्चित YouTuber |
-संघ परिवार का स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं था; (कांग्रेस ने 60 साल Liberation Dividend खा तो लिया);
-पटेल और नेहरू के संबंध इतने सौहार्दपूर्ण थे कि वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू थे;
-नेहरू के पटेल के खिलाफ होने का दुष्प्रचार किया गया;
-आज विभाजनकारी ताकतें (भाजपा-संघ की तरफ इशारा) गांधी-नेहरू-पटेल की भाईचारे और सौहार्द की भावना को कमजोर कर रही हैं;
-इसलिए हम पटेल के सिद्धांतों का पालन करते हुए इन तत्वों की फर्जी फैक्ट्री को उजागर करेंगे;
-भाजपा पर उत्तर बनाम दक्षिण और पूरब-पश्चिम के बीच भाषा और संस्कृति के आधार पर विभाजन की खाई पैदा करने का आरोप भी लगाया।
नेहरू और पटेल एक ही सिक्के के दो पहलू थे तो फिर जब कांग्रेस की सभी राज्य इकाइयों ने पटेल को प्रधानमंत्री बनने के लिए अनुमोदन किया तो नेहरू कैसे प्रधानमंत्री बन गए। बस इतना ही भाईचारा था दोनों के बीच। पटेल की मौत उनके अंतिम संस्कार में जाने से नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू और सभी मंत्रियों को क्यों रोक दिया। लेकिन फिर भी NV Gadgil, सत्यनारायण सिन्हा और वी पी मेनन पटेल के अंतिम संस्कार में गए - इतना घटिया दृष्टिकोण था नेहरू का।
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी नेहरू की नहीं मानी और वे राजाजी और पंत जी के साथ दाह संस्कार में शामिल हुए।
पटेल की मौत के बाद जब उनकी बेटी मणिबेन पटेल नेहरू से मिलने आई तो उन्होंने एक किताब नेहरू को दी जिसमें पार्टी का अकाउंट था और एक बैग दिया जिसमे पार्टी का 35 लाख रुपया था लेकिन नेहरू ने एक शब्द उन्हें सांत्वना का नहीं कहा।
आज कांग्रेस पटेल की विरासत को “अपना बनाने” की बात कर रही है जबकि पटेल को तो कांग्रेस बहुत पहले नेहरू के समय से ही त्याग चुकी है।
नेहरू ने खुद तो भारत रत्न 1955 ले लिया जबकि पटेल को उनकी मौत के 40 साल बाद 1991 में राजीव गांधी और मोरारजी देसाई के साथ दिया गया।
कांग्रेस को याद नहीं गांधी नेहरू की मुसलमानों को आज़ादी के बाद भारत में रखने की नीति का विरोध किया था और उन्होंने दृढ़ता से कहा था जो मुसलमान भारत के प्रति Loyal हैं, वे ही रखे जाएं। पटेल ने अकेले 500 से ज्यादा रियासतों का विलय करा दिया लेकिन नेहरू ने कश्मीर अपने हाथ में रखा जो 70 साल तक नासूर बना रहा जबकि एक तिहाई कश्मीर नेहरू ने पाकिस्तान को दे दिया।
उत्तर दक्षिण और पूरब पश्चिम में भेद पैदा तो कांग्रेस ने किया। राहुल गांधी ने खुद दक्षिणी राज्यों को अलग बताया और सैम पित्रोदा ने तो चारों क्षेत्रों के लोगों की शक्ल के अनुसार परिभाषा ही गढ़ दी। कांग्रेस ने पूरब के सभी राज्यों को नज़रअंदाज किया और उन राज्यों पर ध्यान केवल Christianity को फ़ैलाने के लिए किया।
राहुल गांधी ने कहा था गुजरात कांग्रेस के अनेक लोग भाजपा का साथ देते हैं। अधिवेशन में कितने ऐसे लोगों को पार्टी से निकाला गया और सबसे बड़ी बात प्रियंका वाड्रा अधिवेशन से क्यों गायब थी।
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