बुजुर्गों का कहना है कि कोर्ट में सिर्फ वही खड़ा रह सकता है जिसके हाथ सोने के और पैरों में लोहे का जूता। वरना केस चाहे जितना भी मजबूत क्यों न हो मुवक्किल मुकदमा हार जाएगा। घोटालेबाज़ों और कातिलों को जमानत मिलना इसका जीताजागता उदाहरण है। व्यक्तिगत कटु कोर्ट अनुभव। आधे से ज्यादा तो झूठे केस लंबित है। अगर जज/मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट गंभीरता से केस फाइल पढ़ ले कई केस dismiss हो सकते हैं। तथाकथित आरोपी मजिस्ट्रेट से चीख-चीखकर कहता है कि "ये है मेरी बेगुनाही का सबूत" लेकिन नहीं देखा जाता तारीख दे देता है। क्यों? जबकि तथाकथित आरोपी जालसाज़ द्वारा 2011 में सिविल केस में दर्ज गवाही जिसमे उसने माना कि "मै कभी मकान में नहीं गया और मेरा कोई सामान वहां नहीं था।" 2013 के जजमेंट को देखने को मजिस्ट्रेट के आगे रोता था। 2009 में दिल्ली की तीस हज़ारी कोर्ट में स्त्री-धन की चोरी का केस दर्ज होता है, जिसे 2024 में वापस ले लिया जाता है। जबकि जालसाज़ का वकील भी अच्छी तरह जानता था कि केस झूठा है। लेकिन उसे भी अपनी तिजोरी भरनी थी। क्यों नहीं मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने उस जालसाज़ पर कोर्ट को इतने सालों तक गुमराह करने और एक शरीफ को ब्लैकमेल करने के आरोप में दण्डित किया? क्या राज था? कोर्ट न्याय के लिए होती है अन्याय के लिए नहीं।
दिल्ली में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के बाद अब राउज एवेन्यू कोर्ट में बेल के बदले रिश्वत का मामला सामने आया है। दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) ने न्याय और विधायी मामलों के विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को चिट्ठी लिखकर राउज एवेन्यू कोर्ट के एक स्पेशल जज और उनके कोर्ट स्टाफ (अहलमद) के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने यह खबर देते हुए बताया है कि एसीबी ने आरोप लगाया है कि जज और कोर्ट स्टाफ ने आरोपियों को जमानत देने के बदले रिश्वत मांगी है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक विशेष न्यायाधीश का तबादला कर दिया है, जिन पर एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) ने आरोप लगाया था कि वे कोर्ट क्लर्क के साथ मिलकर आरोपितों की जमानत के बदले रिश्वत माँगते थे।
एसीबी ने इस साल जनवरी में दावा किया था कि उसके पास ऐसे कई मामलों के सबूत हैं, जिसमें न्यायाधीश और क्लर्क की संलिप्तता पाई गई है। आरोप था कि कुछ मामलों में आरोपितों के परिजनों से 15-20 लाख रुपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक की रिश्वत की माँग की गई।
हालाँकि, फरवरी में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि न्यायाधीश के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। उच्च न्यायालय के विजिलेंस रजिस्ट्रार ने एसीबी को पत्र के माध्यम से बताया था, कि न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोई अनुमति आवश्यक नहीं है। लेकिन, यदि जाँच के दौरान ठोस सबूत मिलते हैं, तो जाँच एजेंसी नए सिरे से अनुमति माँग सकती है।
16 मई को एसीबी ने कोर्ट क्लर्क (अहलमाद) के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसमें रजिस्ट्रार के जवाब का भी जिक्र किया गया था। जिसके चार दिन बाद, मंगलवार (20 मई 2025) को विशेष न्यायाधीश का तबादला कर दिया गया, वही मामले की जाँच अभी भी जारी है।
क्या है केस?
2023 में एक GST अधिकारी पर फर्जी कंपनियों को गलत टैक्स रिफंड देने का आरोप लगा। ACB ने 16 लोगों को गिरफ्तार किया। जमानत की अर्जी पर सुनवाई लगातार टलती रही। 30 दिसंबर 2024 को GST अधिकारी के रिश्तेदार ने आरोप लगाया कि कोर्ट ने अधिकारियों से जमानत के बदले भारी रिश्वत मांगी और इनकार पर जमानत अटकाई। बाद में हाईकोर्ट से राहत मिली, लेकिन धमकियां दी गईं।
एसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, 20 जनवरी को एक और शिकायत मिली। जिसमें कोर्ट के कर्मचारी पर जमानत के बदले 15-20 लाख रुपये रिश्वत मांगने का आरोप था। ACB की जांच में आरोपों को समर्थन देने वाले ऑडियो साक्ष्य मिले। FIR के बाद कोर्ट स्टाफ ने अग्रिम जमानत मांगी। ACB ने इसका विरोध करते हुए उन्हें मुख्य आरोपी बताया और सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका जताई। 22 मई को कोर्ट ने अग्रिम जमानत खारिज कर दी।
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