क्या गाँधी परिवार का ‘गरूर’ बचाने को शशि थरूर की कुर्बानी देगी कांग्रेस? थरूर कांग्रेस में अटल बिहारी वाजपेयी से कम नहीं ; क्या कांग्रेस में परिवारभक्ति ही देशभक्ति की निशानी है?

                                       सांसद थरूर से कांग्रेस नाराज (साभार- नवभारत टाइम्स)
ऐसा सिर्फ कांग्रेस पार्टी में ही हो सकता है जहाँ राष्ट्रवाद के लिए दंडित किया जाता है। यहाँ नेताओं को उनकी साख, रिकॉर्ड, ‘नेशन फर्स्ट’ रखने पर दरकिनार कर दिया जाता है। कांग्रेस हाईकमान यानी गाँधी परिवार को खुश करने के लिए अपमानित भी किया जाता है।
दरअसल कांग्रेस को इस बात से खुश होना चाहिए कि जिस तरह इंदिरा गाँधी नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी से सलाह करती थी उसी तर्ज पर पार्टी में थरूर चल रहे हैं। अगर मल्लिकार्जुन खड़के की बजाए थरूर अध्यक्ष बन गए होते कांग्रेस की दिशा और दशा बदल गयी होती। परन्तु परिवार को चाहिए था परिवारभक्त। लेकिन विरोध कर कांग्रेस खुद जाल में फंस रही है। राहुल और खड़के के बयान तो कांग्रेस को पाताललोक में धकेल रहे हैं। जो भविष्य में कांग्रेस को ही जरुरत से ज्यादा नुकसान दे सकता है। कांग्रेस में बुद्धिजीवी वर्ग को परिवारवाद से अलग हट पार्टी को समझाना चाहिए। यही समय की मांग भी है। मोदी का विरोध करने के लिए बहुत समय है। कटु सच्चाई यह है कि मोदी विरोध में देश का विरोध करना कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ेगा। 
दूसरे, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के 60 साल बाद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार देश में छिपे हुए गद्दारों को पकड़ रही है। अगर सरकार इसी तरह गद्दारों को पकड़ती रही देश देखेगा कि किस बारूद के ढेर पर बैठे हुए थे। अभी तो ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर भी नहीं पकडे गए हैं। जिस दिन चुटकी भर गद्दार पकड़ने पर कांग्रेस और पाकिस्तान दोनों की हालत ख़राब होनी शुरू हो जाएगी। इस कारण भी कांग्रेस में जरुरत से ज्यादा बौखलाहट या कहा जाए पाकिस्तान की तरह कांग्रेस में भी डर का माहौल बना हुआ है। पाकिस्तान और कांग्रेस सिक्के के एक ही पहलू हैं। जिस तरह पाकिस्तान अपने आतंकियों से हिन्दुओं पर हमले, युद्ध के दौरान मन्दिरों पर बमबारी उसी तरह कांग्रेस ने भी भारत में हिन्दू तीर्थों को विवादित बना रखा है।    
सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि थरूर तो एक बहाना है, हकीकत में पाकिस्तान और आतंकवाद पर होते हमलों ने मुस्लिमपरस्त कांग्रेस की नींद, रोटी और पानी हराम कर दिया है। इन्हीं मुद्दों पर सनातन को कलंकित कर अपने वोटबैंक को खुश किया जाता था। इसी चक्कर में मुसलमानों के सामने सच्चाई नहीं आने दी और मुसलमान को जनसंघ से लेकर वर्तमान बीजेपी को मुसलमानों का दुश्मन बनाकर डराकर उनका वोट लेते रहे।    

पूर्व राजनयिक और कांग्रेस सांसद शशि थरूर अब कांग्रेस में बेवजह गुस्से का शिकार हैं। उनका अपराध यह है कि थरूर ने वैश्विक स्तर पर भारत के आतंकवाद विरोधी रुख को स्पष्ट करने और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बताने के लिए सांसदों के एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए मोदी सरकार के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।

गाँधी परिवार के वफादार कांग्रेसी अब पार्टी के अंदर इस बात पर गुस्से का इजहार कर रहे हैं कि आखिर क्यों शशि थरूर को केन्द्र ने बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया? शशि थरूर को केन्द्र सरकार ने विदेश भेज गए डेलिगेशन का नेतृत्व करने के लिए चुना है। उनका ग्रुप अमेरिका, पनामा, गुयाना, ब्राजील और कोलंबिया जाएगा। दरअसल कांग्रेस के खफा होने की वजह ये है कि बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा सुझाए गए नामों में थरूर शामिल नहीं थे। कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, नासिर हुसैन और राजा बरार के नाम भेजे थे।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने 17 मई 2025 को कहा कि कांग्रेस पाकिस्तान से आतंकवाद पर भारत के रुख को स्पष्ट करने के लिए विदेश जा रहे सांसदों के रूप में अपने दिये गए चार सांसदों के नाम “नहीं बदलने जा रही है”।

जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि औपचारिक रूप से चार नाम दिए जाने के बावजूद सरकार ने उनमें से अधिकांश को नजरअंदाज कर दिया, जिससे संसदीय परंपराओं, विपक्ष- सत्तारूढ़ दल के बीच विश्वास को ठेस पहुँचा।

16 मई 2025 को केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने केंद्र सरकार की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी से संपर्क किया और बहुदलीय संसदीय दल में शामिल होने के लिए पार्टी से चार नामों का अनुरोध किया। राहुल गाँधी ने उसी दिन दोपहर से पहले वरिष्ठ नेताओं आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, नासिर हुसैन और राजा बरार का नाम भेजा। इस पर जयराम रमेश ने कहा, ” सरकार ने कांग्रेस द्वारा सुझाए गए नामों में से केवल आनंद शर्मा को चुना और मामले का राजनीतिकरण किया।”

हालाँकि, कांग्रेस पार्टी को पहले यह जवाब देना चाहिए कि विदेशी मामलों की विशेषज्ञता रखने और पूर्व राजनयिक शशि थरूर को क्यों नजरअंदाज किया गया?

पार्टी से पहले राष्ट्र को प्राथमिकता देना और स्वतंत्र राय रखना कांग्रेस पार्टी को नागवार गुजर रहा है। कांग्रेस पार्टी ने भले ही शशि थरूर पर सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर झुकाव रखने का आरोप नहीं लगाया है, लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई ने उन्हें ‘बीजेपी स्लीपिंग सेल’ कहा है। रिपोर्ट्स बताती है कि कांग्रेस हाईकमान थरूर को पार्टी से निकालने पर विचार कर रहा है, हालाँकि कांग्रेस ने इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस पार्टी अपने उन नेताओं को क्यों नजरअंदाज करती है? जो मूल रूप से ‘दरबारियों’ की तरह काम नहीं करते हैं और बौद्धिक स्वतंत्रता बनाए रखना पसंद करते हैं। क्या यह इस डर की वजह से है कि ऐसे मजबूत नेता गाँधी परिवार को पीछे छोड़ सकते हैं या पार्टी में समानांतर सत्ता बना सकते हैं?

शशि थरूर की जगह राहुल गाँधी के वफादार गौरव गोगोई को चुनना, क्या उचित है? गाँधी परिवार के करीबी न होने के बावजूद शशि थरूर न केवल विदेशी मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले अहम सासंद हैं, बल्कि संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष भी हैं। कांग्रेस पार्टी द्वारा दरकिनार किए जाने और अपमानित किए जाने के बावजूद शशि थरूर ने हार नहीं मानी और कहा कि वे अपनी सौंपी गई जिम्मेदारियों को पूरी लगन से निभाएँगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पार्टी नेतृत्व को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता अटल है। कांग्रेस की अधीनता के बजाए थरूर ने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देने का फैसला किया और संदेश दिया कि वह ‘आसानी से अपमानित’ नहीं होंगे।

इस बीच, केरल कांग्रेस ने भी तिरुवनंतपुरम के सांसद के फैसले से खुद को अलग कर लिया है। केरल में विपक्ष के नेता वी डी सतीशन ने कहा कि थरूर कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य हैं और उनके जैसे नेता पार्टी में मध्यम पायदान पर आते हैं। सतीशन ने कहा, “सीडब्ल्यूसी का सदस्य होना महत्वपूर्ण है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को इस मामले पर अपनी राय व्यक्त करनी चाहिए। उनका जो भी विचार होगा, हम उसे मानेंगे।” केरल कांग्रेस के नेता सतीशन और मुरलीधरन ने थरूर द्वारा बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए केंद्र के आह्वान को तुरंत स्वीकार करने को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा बताया और थरूर के कद को कम करके यह सुझाव दिया कि उन्हें एक सांसद के रूप में अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। गौरतलब है कि थरूर पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस पार्टी की केरल इकाई द्वारा लगातार निशाने पर हैं। अप्रैल 2024 में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तिरुवनंतपुरम शहर के बलरामपुरम में एक चुनाव अभियान के दौरान अपने सांसद शशि थरूर को रोक दिया था। उन्होंने थरूर के खिलाफ ‘वापस जाओ’ और ‘तुम्हें वोट नहीं’ के नारे लगाए।

इससे पहले 2019 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता के मुरलीधरन ने शशि थरूर का मजाक उड़ाया और कहा कि ” यह ‘ऑक्सफ़ोर्ड इंग्लिश’ नहीं बल्कि ‘मोदी विरोधी’ रुख है जिसने पार्टी के नेतृत्व वाले मोर्चे को तिरुवनंतपुरम सीट जीतने में मदद की।” मुरलीधरन की यह बयान थरूर के उस बयान के कुछ दिनों बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह हमेशा से ही सही नीतिगत निर्णयों के लिए पीएम मोदी की प्रशंसा करने के पक्षधर रहे हैं। थरूर ने कहा था कि सही निर्णयों के लिए पीएम मोदी की प्रशंसा करने से विपक्ष की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।

हालाँकि कांग्रेस ने थरूर का नाम नहीं भेजा, जबकि वे संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक हैं और इस कार्य में उनकी विशेषज्ञता है। यह स्पष्ट हो गया कि थरूर की बौद्धिकता, वाकपटुता और स्वतंत्रता सोच पार्टी आलाकमान, खासकर गाँधी परिवार को पसंद नहीं है। पार्टी आलाकमान के करीबियों को ही यहाँ प्राथमिकता दी जाती है। कांग्रेस का ये दृष्टिकोण कोई नया नहीं है। कांग्रेस पार्टी में गाँधी परिवार के प्रति वफादारी हमेशा योग्यता पर भारी रही है। कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ और मजबूत नेताओं को सिर्फ इसलिए हार का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने गाँधी परिवार की अवहेलना करने की जुर्रत की और विभिन्न मुद्दों पर स्वतंत्र राय व्यक्त करने का साहस किया। हाल के वर्षों में शशि थरूर को लगातार अपनी ही पार्टी द्वारा निशाना बनाया गया, दरकिनार किया गया और अपमानित किया गया।

शशि थरूर ने गाँधी परिवार के वफादार खड़गे के खिलाफ लड़ा चुनाव

अक्टूबर 2022 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को गाँधी परिवार के वफादार मल्लिकार्जुन खड़गे के समर्थकों के साथ ‘टकराव’ से बचने के लिए उत्तर प्रदेश की अपनी यात्रा रद्द करने के लिए कहा गया था। थरूर को ‘वफादार’ खड़गे के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का ‘चुनाव’ लड़ने पर पार्टी के भीतर विरोध का सामना करना पड़ा। दरअसल थरूर कांग्रेस पार्टी की “हाईकमान” संस्कृति को खत्म करना चाहते थे। इसका मतलब गाँधी परिवार के वर्चस्व का अंत था। हालांकि, वह गाँधी परिवार के वफादार को नहीं हरा सके।

नवंबर 2022 में, थरूर को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में जगह नहीं दी गई थी। लगभग उसी समय, केरल कांग्रेस ने थरूर से खुद को दूर कर लिया था और कोझीकोड में एक आरएसएस विरोधी सेमिनार की मेजबानी करने से पीछे हट गई थी, जहाँ कांग्रेस सांसद को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। उस समय ऐसी खबरें आई थीं कि कांग्रेस नेतृत्व ने पार्टी की स्थानीय इकाइयों को शशि थरूर का कोई भी कार्यक्रम आयोजित न करने का अनाधिकारिक आदेश दिया था।

फरवरी 2025 में शशि थरूर ने पार्टी में अपनी भूमिका को लेकर असंतोष जताया था। उन्होंने पार्टी में दरकिनार किए जाने और संसद के अंदर प्रमुख बहसों में भाग लेने का अवसर न दिए जाने पर रोष व्यक्त करने के लिए राहुल गाँधी से मुलाकात की थी। हालाँकि, थरूर संतुष्ट नहीं हुए। थरूर का असंतोष ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस (AIPC) के प्रभार से हटाए जाने से भी पैदा हुआ। कांग्रेस पार्टी भी थरूर से तब से नाराज है, जब उन्होंने पार्टी के आधिकारिक रुख से हटकर प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा की प्रशंसा की थी। पीएम मोदी की ट्रंप से मुलाकात के बारे में थरूर ने कहा, “मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा नतीजा है, क्योंकि अन्यथा, डर था कि वाशिंगटन में जल्दबाजी में कुछ फैसले लिए जा सकते हैं, जिससे हमारे निर्यात पर असर पड़ता। इस तरह, चर्चा और बातचीत के लिए समय है।”

कैप्टन अमरिंदर सिंह का कॉन्ग्रेस से बाहर निकलना

2021 में तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने यह कहते हुए कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था कि वह अपने साथ हुए अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकते। सिंह ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला तब किया जब पार्टी ने उन्हें सूचित किए बिना पंजाब में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई। इससे पहले, पार्टी ने अमरिंदर सिंह की कड़ी आपत्तियों के बावजूद जुलाई 2021 में नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष चुनकर उन्हें नकार दिया था।

कांग्रेस आलाकमान ने हिमंत बिस्वा सरमा को पार्टी छोड़ने पर किया मजबूर

सितंबर 2015 में कांग्रेस पार्टी ने असम से एक बेहतरीन नेता खो दिया, जब हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देते हुए कहा कि पार्टी में “निरंकुश परिवार-केंद्रित” राजनीति और “लोकतंत्र की कमी” है।
सरमा ने कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए कहा, “2012 से मैं देख रहा हूँ कि स्थिति बिगड़ती जा रही थी और राज्य नेतृत्व के उदासीन रवैये के कारण पार्टी सम्मान खो रही थी। तीसरी बार जीत सिर पर चढ़ गई थी, और लोगों के लिए काम करने के प्रति करुणा और समर्पण की जगह अहंकार ने लेना शुरू कर दिया था। पार्टी नेतृत्व में आत्मसंतुष्टि और यथास्थितिवाद की भावना समा गई थी। चाटुकारों के एक समूह द्वारा लगातार प्रोत्साहित की जाने वाली निरंकुश परिवार-केंद्रित राजनीति ने कभी भी राज्य में कांग्रेस नेतृत्व तक तर्कसंगत और तटस्थ आवाज नहीं पहुँचने दी,”
हिमंत बिस्वा सरमा अब बीजेपी नेता और असम के लोकप्रिय सीएम हैं। पार्टी को लगातार दो चुनावी जीत दिलाने के बाद, हिमंत ने एक अपमानजनक घटना को याद किया। उन्होने कहा कि कांग्रेस के राजकुमार राहुल गाँधी ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने पालतू कुत्ते के साथ एक ही प्लेट में बिस्किट खाने को कहा था। राहुल के कुत्ते द्वारा अस्वीकार किए गए बिस्किट देने की घटना से वह काफी परेशान हो गए थे। एक एक्स पोस्ट का जवाब देते हुए, हिमंता ने कहा कि वह एक स्वाभिमानी असमिया और भारतीय हैं, उन्होंने कहा कि वह एकमात्र कांग्रेस नेता थे जिन्होंने कुत्ते के बिस्किट खाने से इनकार कर दिया और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। यह घटना तब हुई जब सरमा ने असम की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए 2016 के चुनावों के दौरान राहुल गाँधी से मुलाकात की।
2022 में सरमा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने “कांग्रेस में अपने जीवन के 22 साल बर्बाद कर दिए हैं”। कांग्रेस और भाजपा के बीच अंतर के बारे में बोलते हुए सरमा ने कहा, ”कांग्रेस में हम एक परिवार की पूजा करते थे। भाजपा में हम देश की पूजा करते हैं।”

पार्टी आलाकमान से अलग राय रखने पर दरकिनार किए जाते हैं कांग्रेसी या उन्हें ‘संघी’ करार दिया जाता है

दिलचस्प बात यह है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, हालाँकि वे कांग्रेस पार्टी में बने हुए हैं, उन्होंने कई मौकों पर ऐसे फैसले लिए हैं जिससे पार्टी नेतृत्व को निराशा हुई है। चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “बड़े भाई” कहना हो या “गुजरात मॉडल” की प्रशंसा करना हो। जब राहुल गाँधी बार-बार पीएम मोदी पर व्यवसायी गौतम अडानी के कथित क्रोनी कैपिटलिज्म में मिलीभगत का आरोप लगाते हुए हमला कर रहे थे, उस वक्त रेवंत रेड्डी विकास परियोजनाओं के लिए अडानी समूह के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर रहे थे।

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान केंद्र और सशस्त्र बलों का समर्थन करने वाले रेड्डी ने कई बार स्वतंत्र रूप से काम किया है। हालाँकि पार्टी नेता और समर्थकों ने उन्हें “संघी एजेंट” भी कहा। इसी तरह, कांग्रेस नेता सचिन पायलट को भी गाँधी परिवार के वफादार और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ मतभेदों के कारण कांग्रेस पार्टी ने दरकिनार कर दिया है। निकम्मा, गद्दार और न जाने क्या-क्या कहे जाने के बावजूद पायलट कांग्रेस में बने हुए हैं, हालाँकि उन्हें नजरअंदाज किया जाता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा से लेकर कपिल सिब्बल तक, कई कांग्रेस नेता जो पार्टी में बड़े नेता बनने की क्षमता रखते थे, उन्हें दरकिनार कर दिया गया और आखिरकार उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी। पार्टी में साफ तौर पर समझा जा सकता है कि जिस नेता के विचार पार्टी हाईकमान की लाइन से मेल नहीं खाता, वह दरकिनार रहेंगे । गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी में 50 से अधिक साल बिताने के बाद कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि हाईकमान फीडबैक और आलोचना के प्रति उदासीन हो गया था।

अगस्त 2022 में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद ने 50 साल से ज़्यादा समय तक कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहने के बाद इस्तीफ़ा दे दिया। अपने विदाई नोट में, गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी के पतन के लिए कॉन्ग्रेस आलाकमान को जिम्मेदार ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कांग्रेस के वारिस राहुल गांधी पर पार्टी के भीतर परामर्श तंत्र को अकेले ही नष्ट करने का आरोप लगाया। आजाद का कांग्रेस के प्रति असंतोष तब स्पष्ट हो गया जब वे पिछले साल जम्मू में जी-23 असंतुष्ट समूह में शामिल हो गए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी प्रशंसा की थी। उन्होने अलग पार्टी बना ली।

कांग्रेस पार्टी के लिए राष्ट्र नहीं, गाँधी परिवार सबसे पहले आता है। इस अघोषित नियम का उल्लंघन करने वाले को या तो तिरस्कार, अपमान और ‘भाजपा एजेंट’अथवा संघी करार दिया जाता है या पार्टी से सीधे निष्कासित कर दिया जाता है। जाहिर है गाँधी परिवार अपने वरिष्ठ पार्टी नेताओं को अपनी बौद्धिक स्वतंत्रता की आजादी देकर नियंत्रण खोने का जोखिम नहीं उठाना चाहता।

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