"वियोग क्या पिछले जन्म का कर्म है?" मृत्युलोक (धरती) पर जो आया है वियोग निश्चित है कोई आगे कोई पीछे; परिवार के लिए मार्गदर्शक बनकर प्रस्थान करो; मृत्युलोक पर क्या लेकर आए थे, क्या देकर और लेकर प्रस्थान कर रहे हो?

श्रीमति रीता निगम 
ज़िन्दगी एक अनसुलझी पहेली है, जिसे समझना बहुत कठिन है। जीवन है चलने का नाम चलते रहो सुबह-शाम। किसी को नहीं मालूम की जीवन के किस मोड़ पर दिन ढल जाए। यह देखो क्या लेकर आये थे और अपने पीछे क्या छोड़कर जा रहे हो। दुनिया में धन दौलत ही सबकुछ नहीं होता कर्म प्रधान जीवन होना चाहिए। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा दिए जीवन से मानव तृप्त नहीं फिर किससे कल्पना करनी। 84 योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है। जिस तरह ब्रह्म महुर्रत के बाद, प्रातः के बाद दोपहर, फिर गोधूलि के बाद सांध्य फिर रात्रि यही स्थिति जीवन की है कभी स्थिर नहीं रहता। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मनुष्य जीवन को इसी प्रकार पहरों में बांटा हुआ है।
"कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसा होता है कि जिनसे जीवन भर साथ निभाने का वादा किया हो, वही एक दिन अचानक साथ छोड़कर चले जाते हैं। क्यों होता है ऐसा? क्या यह सिर्फ किस्मत है, या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक कारण है?" पति-पत्नी जीवनरूपी रथ के दो पहिये होते है और दोनों में से एक के अलग होने से रथ बेकार हो जाता है। वह बेकार रथ बहुत भाग्यवान होता है जिसे उसके बच्चे अपना बच्चा समझ पालन-पोषण करते हैं। यह होते हैं उसके कर्म।
श्री मगन बिहारी लाल निगम 
लेकिन कई बार स्थिति विपरीत होने पर अगर कोई दूसरे परिवार द्वारा उसकी चिंता की जाने पर उसके ही परिवार वाले शंका की निगाह से देख उसका जीवन और भी दूभर हो जाता है। धुप-छांव और सुख-दुःख जीवन जीने का साधन है। जीवन एक पानी का बुलबुला है कब पानी में मिल जाए। शरीर तो मात्र किराये का मकान है पता नहीं कब मकान मालिक खाली करवा ले। इसलिए शरीर पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को अपना अहंकार त्याग वर्तमान स्थिति के अनुकूल ढालने में बुद्धिमत्ता है। अपनी जीवन लीला समाप्त होने पर परिवार के मार्गदर्शक बनकर मृत्युलोक प्रस्थान करने के बाद भी जीवित रहोगे।
एक पूरी ज़िंदगी संघर्ष और दुनिया के पीछे भागते हुए बीती,
और अब पहली बार, जब हाथों में माला घुमा रहा हूँ,
तब आत्मा की आवाज़ सुनाई दी।
अब बहुत हो चुका…
जागो यात्री,
अब अंतिम यात्रा की तैयारी का समय है।

प्रकृति मुस्कराई

श्रीमती शन्नो देवी निगम 
ऐसा बहुत कम देखने और सुनने को मिलता है कि पति और पत्नी दोनों ने एक साथ स्वर्ग सिधारा। इसे कहते हैं जन्म जन्म का साथ। ऐसी जोड़ियां बहुत भाग्यवान होती है। लेकिन एक दूसरे से बिछड़ने पर पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को सामने रखना होगा कि अकारण निर्दोष सीता माता के वियोग में प्रभु राम ने किस तरह जीवन जिया। माँ उर्मिल और माँ मांडवी और माँ सबरी किस तरह प्रभु राम की प्रतीक्षा में अकेले जीवन व्यतीत करती है। इन त्यागों को धारण कर लिया जीवन सुगम बन जाएगा। रामायण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हमें हर परिस्थिति में जीवन जीने का मार्ग दर्शन करती है। इस सन्दर्भ में भागवत गीता को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जहाँ भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं "कर्म कर फल की इच्छा मत कर।" अर्थात अपनी तरफ से कोई ऐसा काम मत करो कि किसी भी सम्बन्ध में दरार पड़ जाए। गलती हुई है क्षमा मांग लो। क्षमा मांगने से कोई छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि सामने वाले के हृदय में सम्मान बढ़ता है। स्मरण रखो, हमेशा फलदार वृक्ष ही झुकता है कोई अन्य नहीं।
गौरतलब यह है कि इतना महाज्ञानी और महानों से भी महान पंडित लंकेश ने भी अमर रहने के लिए तपस्या की थी, लेकिन कई वर्षों की तपस्या के उपरांत परमपिता विष्णु को प्रकट होकर लंकेश को वरदान देने की बजाए समझाकर अपने इस उद्देश्य की बजाए कुछ और मांगने को कहा तब विवश होकर लंकेश ने विष्णु को अपने मकड़जाल में फांसते अनुरोध किया "अगर इस धरती पर आने वाले को मृत्युलोक में जाना है तो मेरी मृत्यु न दिन में हो न रात में, न मंदिर(निवास) में हो, न धरती पर हो और न आकाश में और जब भी हो प्रभु आपके हाथ हो आदि" तथाअस्तु कहकर विष्णु ने लंकेश के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। लेकिन लंकेश ने अपना भ्रम दूर करने प्रश्न किया कि "मुझे कैसे मालूम होगा कि मेरी मृत्यु आपके ही हाथों हो रही है।" तब विष्णु ने कहा कि "जब खर और दूषन का समाचार मिले समझ लेना कि मै धरती पर आ गया हूँ उनका मोक्ष भी मेरे ही हाथों होना है।" कहने का तात्पर्य यही है जीवन जैसा भी हो ऐसा जिओ धरती से प्रस्थान करने के बाद तुम्हारा जीवन परिवार के लिए मार्गदर्शन या मार्गदर्शक बने।

कई बार ऐसी भी परिस्थिति ऐसी भी आती है, जो स्वाभाविक भी है कोई उसे रोक भी नहीं सकता, जब सीधे नहीं अप्रत्यक्ष कुछ कहा या करा जाए उस स्थिति में चुप रहकर हर बात को नज़रअंदाज़ कर अपनी जीवनचर्या ऐसे बितानी चाहिए जैसे कुछ नहीं हुआ। इस तरह परिवार और वह सुखी रहेंगी।

सनातन धर्म में किसी सुहागन का जाना बहुत शुभ माना जाता है। धरती पर लक्ष्मी रूप में आती है और लक्ष्मी ही बन दुनिया से बिदाई करती है।

अवलोकन करें:-

आज पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण हम युगों प्राचीन सनातनी रीति-रिवाज को नज़रअंदाज करने के आदी हो ग
1. पिछले जन्म का कर्म सिद्धांत
वैदिक मान्यता है कि हम अपने कर्मों के अनुसार जन्म लेते हैं।
पति-पत्नी का मिलन भी पूर्व जन्म के संबंध और ऋणानुबंध (ऋण चुकाने का बंधन) से जुड़ा होता है।
2. तीन प्रकार के संबंध होते हैं:
ऋणानुबंध: किसी ने हमें कष्ट दिया था या हमने उसे कुछ देना था – वह बंधन पूरा कर के वह व्यक्ति चला जाता है।
प्रेमसंबंध: जहां आत्मा का गहरा प्रेम होता है, वे संबंध जीवन भर चलते हैं।
परीक्षा संबंध: हमें मानसिक, आध्यात्मिक रूप से परिपक्व करने के लिए कुछ रिश्ते जीवन में आते हैं।
3. अचानक किसी का छोड़ कर चले जाना:
यह संकेत हो सकता है कि उस आत्मा ने अपने कर्मों का हिसाब पूरा कर लिया है।
या फिर वह हमें आत्मनिर्भर, आत्मचिंतनशील बनाने के लिए जीवन से विदा हुई है।
4. ज्योतिषीय दृष्टिकोण से:
यदि सप्तम भाव (सातवां घर – विवाह भाव) में शनि, राहु, केतु या मंगल की विशेष स्थिति हो तो विवाह संबंध टूटने की संभावना होती है।
पिछले जन्म के पापकर्म या अधूरे कर्म भी इसके कारण होते हैं।
5. क्या करें ऐसे समय में?
मन को दोष न दें, जीवन को एक नया अर्थ देने की कोशिश करें।
गायत्री मंत्र, विष्णु सहस्रनाम, या सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करें।
"सब कुछ इस जन्म का अंत नहीं है" – यह भाव मन में रखें।
"किसी का जाना एक अंत नहीं, बल्कि नए जीवन के अध्याय की शुरुआत हो सकता है। इस जीवन की पीड़ा कभी-कभी हमारे आत्मा की परीक्षा होती है।"

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