जस्टिस यशवंत वर्मा ने झूठ बोला; जांच समिति की लीक हुई रिपोर्ट में कहा गया स्टोर रूम उनके और उनके परिवार के कब्जे में था; कपिल सिब्बल अब कितना बचाएगा वर्मा को

सुभाष चन्द्र

जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिली अधजली नोटों की गड्डियों के लिए उन्होंने जांच समिति के सामने झूठ बोला कि इस कांड में वो लिप्त नहीं थे और स्टोर रूम उनके बंगले का हिस्सा नहीं था, इसका उपयोग फर्नीचर, बोतलें, कालीन और लोक निर्माण विभाग की सामग्री सहित अन्य वस्तुएं किया जाता था। उन्होंने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि यह उनके खिलाफ साजिश है। 

अगर जस्टिस के घर मिला खजाना साज़िश है फिर तो किसी भ्रष्टाचारी के पास से मिला खजाने को एक हादसा कहना चाहिए। जब न्याय करने वाला जस्टिस ही झूठ बोलेगा तो न्याय की उम्मीद करनी ही नहीं करनी चाहिए। क्योकि कपिल सिबल जैसे वकील गैंग अपनी तिजोरी भरने भ्रष्टाचारियों की पैरवी करते रहेंगे। 

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जबकि स्टोर रूम के प्रवेश द्वार पर लगे CCTV से लगातार निगरानी की जाती थी और वह सुरक्षा कर्मियों के नियंत्रण में था। पता नहीं CCTV से यह पता चला या नहीं कि परिवार का कौन कौन सदस्य वहां आता जाता था?

इसके विपरीत जांच समिति की लीक रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि स्टोर रूम जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के नियंत्रण में था। समिति ने साक्ष्यों के आधार पर कहा कि आग लगने के अगले दिन 15 मार्च को जली हुई नकदी को वहां से हटा दिया गया। जस्टिस वर्मा और उनके निजी स्टाफ के बयानो में विरोधाभास को देखते हुए समिति ने कहा कि उनके घरेलू स्टाफ ने दमकल कर्मियों और पुलिस कर्मियों के जाने के बाद स्टोर रूम से जली नकदी को हटाया गया

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा उनके खिलाफ कदाचार का मामला साबित होता है और वे पद पर बने रहने लायक नहीं हैं। जस्टिस वर्मा पर लगे आरोप गंभीर हैं और उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अनुशंसा करते हुए वर्मा पर महाभियोग शुरू करने के लिए कहा।

 

मगर जस्टिस वर्मा इतने ढीठ हैं कि वे अभी तक अड़े हुए हैं जैसे एक तरह जांच समिति की रिपोर्ट को भी चुनौती दे रहे हैं क्योंकि कपिल सिब्बल जैसा वकील उनके पक्ष में खड़ा हो गया है। सरकार सभी दलों से आम सहमति बनाने की कोशिश कर रही है। याद रहे जांच समिति में 3 हाई कोर्ट के जज थे, कोई ED/CBI के लोग नहीं थे जिन पर विपक्ष आए दिन पक्षपात का आरोप लगाता है  

लेकिन मेरे एक प्रश्न का उत्तर अभी तक कहीं नहीं मिला। जो नोट जले हुए स्टोर रूम में मिले, उनके अलावा घर में कितनी रकम बरामद हुई, इसकी जानकारी कहीं नहीं दी गई है। ऐसा तो हो नहीं सकता कि सारा पैसा स्टोर रूम में रखा गया हो और इसका मतलब है मोटा माल अभी भी छिपा हुआ है

कौन कौन सा दल जस्टिस वर्मा के साथ खड़ा होता है, यह देखने वाली बात होगी। जस्टिस वर्मा मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए सरकार के वकील रहे थे और अखिलेश यादव ने तो बड़ी साफगोई से कह दिया था कि हो सकता है जस्टिस वर्मा ने किसी से पैसा उधार लिया हो। उसकी पार्टी से ही राज्यसभा में नामित है कपिल सिब्बल और इसलिए समाजवादी पार्टी तो वर्मा के साथ ही होगी। कांग्रेस तो वैसे ही मोदी सरकार के खिलाफ रहती है और उसका समर्थन मिलना भी कठिन ही लगता है 

दूसरा सवाल है कि महाभियोग चलाया जाना तो एक प्रशासनिक कार्रवाई है, वर्मा पर आपराधिक कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस अभी तक खामोश क्यों? राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तो आपराधिक केस शुरू नहीं करेंगे और उसकी मंजूरी तो चीफ जस्टिस को ही देनी है लेकिन यह मंजूरी में देर करके चीफ जस्टिस न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर दाग लगाने का ही काम कर रहे हैं। चीफ जस्टिस की मंजूरी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला किया था।  

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