किसी व्यक्ति को निजी रूप से नोबेल शांति पुरस्कार के ऐसे तड़पते हुए नहीं देखा जैसे डोनाल्ड ट्रंप तड़प रहे है। ऐसा लग रहा है जैसे किसी भी हाल में नोबेल शांति पुरस्कार लेकर रहेंगे। उनके लिए तो आतंकिस्तान के Failed Marshal असिम मुनीर ने भी सिफारिश कर दी कि ट्रंप को यह पुरुस्कार दिया जाना चाहिए।
ऐसे में सवाल यह भी होता है कि जिस पाकिस्तान की इस मांग को दुनिया में कौन सुनेगा? यह सबको मालूम है कि ट्रम्प ने पाकिस्तान के उस फील्ड मार्शल को उकसाया है जिसे नमक खिलाकर हलाल करने को ख़रीदा है। दूसरे, भारत द्वारा इतनी मार खाने के बाद फील्ड मार्शल बनना अपने आपमें एक बहुत मजाक है। पाकिस्तान को समर्थन देने के पीछे जो सियासत ट्रम्प ने खेली है वह है ईरान पर हमला करने के लिए हवाई अड्डों और एयर स्पेस का इस्तेमाल करना।
ट्रंप ने फिर भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाने का राग अलापते हुए कहा कि मुझे यह युद्ध रोकने के भी नोबेल नहीं देंगे। जबकि नरेंद्र मोदी ट्रंप को खरी खरी सुना चुके हैं कि आपकी वजह से युद्ध नहीं रोका गया। लेकिन लगता है ग्रामोफ़ोन की सुई एक जगह अटकी हुई है। वो युद्ध रोकने के लिए मुनीर की तारीफ में भी कसीदे पढ़ रहे थे। जबकि मुनीर युद्ध समय में बंकर में छुपे बैठे थे और पाकिस्तान में मुनीर की थू थू हो रही है अमेरिका से हाथ मिलाने और ईरान से दूरी बनाने के लिए।लेखक
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ट्रंप के आगे कहा कि मुझे सर्बिया और कोसोवो के बीच युद्ध रोकने के लिए भी नोबेल नहीं दिया जाएगा; इथियोपिया और इजिप्ट के बीच शांति स्थापित करने के लिए भी मुझे नोबेल नहीं दिया जाएगा; मध्य एशिया में अब्राहम समझौता कराने के लिए भी नहीं देंगे। मुझे किसी हाल में नोबेल नहीं देंगे चाहे मैंने कुछ भी किया हो रूस/यूक्रेन युद्ध में या ईरान/इज़रायल युद्ध में जिसके परिणाम कुछ भी रहे हों।
ट्रंप ने कांगो और रवांडा के बीच शांति स्थापित करने का भी श्रेय लेते हुए कहा कि This is a great day for Africa and frankly speaking, a great day for the world but I won’t get nobel peace prize for this.
मतलब ट्रंप ने जो कुछ भी किया केवल नोबेल पुरस्कार पाने के लिए किया, समाज और विश्व कल्याण के लिए नहीं किया।
इधर भारत में कुछ सिरफिरों ने कहना शुरू कर दिया कि मोदी को नोबेल चाहिए और जहां तक मेरा अनुमान है ये कांग्रेस का प्रोपेगेंडा रहा होगा जिसके झांसे में कुछ मोदी समर्थक भी आ गए जबकि मोदी ने कभी किसी नोबेल की इच्छा व्यक्त नहीं की। उसे तो 23 देशों ने अपने सर्वोच्च सम्मान दे दिए जिनमें 8 तो इस्लामिक देश थे। उनमें कई देश ऐसे थे जिनकी मोदी ने कोरोना काल में मदद की जो वासुदेव कुटुंबकम की भावना से किये लेकिन कभी नोबेल की मांग नहीं की जैसे ट्रंप कर रहे हैं।
मोदी को फिर नोबेल की क्या जरूरत है?
मोदी ने तो खुद के लिए भारत रत्न भी नहीं लिया जो ले लेना चाहिए था जबकि नेहरू और इंदिरा गांधी ने स्वयं के लिए ले लिए थे। कांग्रेस ने तो पटेल और अंबेडकर को भी उनके मरने के 40-40 साल के बाद भारत रत्न दिया। मोदी के काम विश्व कल्याण के लिए थे जो ट्रंप के नहीं थे। पूरे अमेरिका में जितनी मौतें कोरोना से हुई, उससे कहीं कम भारत में हुई लेकिन कभी मोदी ने अपने लिए नोबेल की कामना नहीं की।
लगता है ट्रंप नोबेल देने वालों पर दबाव डालना चाहते हैं कि उन्हें नोबेल दिया जाए। वो ईरान इज़रायल युद्ध में पीछे हट रहे हैं जिससे इज़रायल अकेला फंसा रहे जबकि इज़रायल ईरान से युद्ध अमेरिका की भी इच्छा पूरी करने के लिए कर रहा है कि ईरान परमाणु बम न बना सके। कल को ऐसा न हो कि जब चीन ताइवान पर हमला करे तो ट्रंप ताईवान को भी अकेला छोड़ दे।
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