कहते कि भिगोने में बहुत चावल होते हैं लेकिन देखा एक ही चावल है कि चावल पका है या नहीं। बिहार से जिस प्रक्रिया को चुनाव आयोग ने शुरू की है है उसका कारण है दिल्ली। जहाँ अभी सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में एक कमरे में 40/45 वोटों का पकडे जाना। किसी मौहल्ले/कसबे में आबादी से अधिक आधार कार्ड कैसे बन गए, कहाँ से आये और किसने बनवाये? ये धांधलियां सामने आ रही हैं।
एक कहावत है "सौ सुनार की एक लोहार की" ये नरेंद्र मोदी उर्फ़ बीजेपी के खिलाफ बने ठग यानि INDI गठबंधन पर जो कुठाराघात होना शुरू है तो इनका रोना तो बनता ही है। याद हो जब तत्कालीन सख्त चुनाव आयुक्त T N Sheshan ने जब मतदाता पहचान पत्र बनाने की बात कहते ही लगभग हर राजनीतिक पार्टी ने कोहराम मचाया था जो चिकने घरे पर पानी गिराना साबित हुआ। उन्होंने हर विरोध को कुचलते मतदाता पहचान पत्र बनाने शुरू कर दिए। जिसका T N Sheshan से पहले रहे आयुक्त जगदीशन ने भी तारीफ की थी। जगदीशन ने कहा था कि शेषन कोई नया काम नहीं कर रहे। यह चुनाव संविधान में लिखा हुआ है। शेषन ने जिस धूल खा रहे चुनाव नियमों को खोला है वह बंद होने का नाम नहीं लेंगे।
अभी ठग यानि INDI गठबंधन द्वारा बनवाये आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता सूची में नाम डलवाने वालों के विरुद्ध भी सख्त कार्यवाही होने के संकेत दिए जा रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार जितने भी फालतू के आधार और मतदाता पत्र पकडे गए हैं उनकी भी सघन जाँच होने की शंका व्यक्त की जा रही है। एडवांस टेक्नोलॉजी से यह भी यह पता लगाया जायेगा कि एक ही फोटो वालो/वाली के और कहां-कहां कार्ड बने हुए है। कौन-कौन लोग इस षड़यंत्र में शामिल हैं। सुनने में यह भी आ रहा है कि कहीं हिन्दू, मुस्लिम या ईसाई के नाम से आधार कार्ड बनवाये हुए हैं। कुछ समय पहले लिखा था कि बोगस वोटर को पकड़ने के लिए आधार पर फोटो की टेक्नोलॉजी से मालूम किया जा सकता है कि और किस-किस राज्य में कार्ड बनवाये हुए हैं। इतना ही नहीं, दूसरी जगहों पर बनवाए डुप्लीकेट कार्डों से कितनी सरकारी सुविधाओं का अनुचित लाभ उठाकर सरकार को चूना लगाया जा रहा है।
100 लोगों के पास 120 आधार कार्ड! बिहार के मुस्लिम बहुल जिलों में यह चौंकाने वाले आंकड़े है। इसलिए तो INDI गैंग रो रहा है कि हमारे इस फेक वोट बैंक के साथ छेड़खानी क्यों कर रहे हो।
बिहार से सामने आए आधार कार्ड सैचुरेशन के आंकड़ों ने सियासी और सामाजिक हलकों में एक नई बहस छेड़ दिया है। जहां राज्य का औसत आधार सैचुरेशन 94% है, वहीं मुस्लिम बहुल जिलों में यह आंकड़ा हैरान करने वाला है। किशनगंज में 68 फीसदी मुस्लिम आबादी है। यहां आधार सैचुरेशन 126 फीसदी है। इसी तरह कटिहार (44%) में 123%, अररिया (43%) में 123%, और पूर्णिया (38%) में 121% आधार सैचुरेशन दर्ज किया गया है। यानी हर 100 लोगों पर 120 से अधिक आधार कार्ड! यह सवाल उठता है कि ये अतिरिक्त आधार कार्ड किसके लिए बनाए गए हैं और क्यों? इस मुद्दे ने न केवल बिहार बल्कि पश्चिम बंगाल में भी चर्चा को तेज कर दिया है, जहां ममता बनर्जी की सरकार पहले से ही आधार कार्ड डिएक्टिवेशन जैसे मुद्दों पर केंद्र से उलझी हुई है। यह विपक्ष और वामपंथी लॉबी द्वारा आधार को नागरिकता का सबूत बनाने की कोशिश का हिस्सा है।
बिहार के इन जिलों में आधार सैचुरेशन का 100 फीसदी से अधिक होना कई सवाल खड़े करता है। सामान्य तौर पर आधार कार्ड एक व्यक्ति-एक कार्ड की नीति पर आधारित है। लेकिन जब आंकड़े बताते हैं कि जनसंख्या से अधिक आधार कार्ड मौजूद हैं, तो यह संकेत देता है कि या तो डुप्लिकेट आधार कार्ड बनाए गए हैं या फिर गैर-नागरिकों को भी आधार कार्ड जारी किए गए हैं! सीमांचल क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति इसे और संवेदनशील बनाती है। ये जिले पश्चिम बंगाल और नेपाल की सीमा से सटे हैं और बांग्लादेश भी ज्यादा दूर नहीं है। इस क्षेत्र में अवैध रूप से रह रहे अवैध प्रवासी का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में रहा है। इन जिलों में आधार कार्ड की अधिकता का कारण बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, जिन्हें स्थानीय नेताओं और कट्टरपंथी समूहों के समर्थन से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर आधार कार्ड उपलब्ध कराए गए हैं।

No comments:
Post a Comment