बिहार : किशनगंज से कटिहार में चल रहा घुसपैठियों का खेल, बंगाल से सटे इलाकों में कैसे बढ़ रही मुस्लिम जनसंख्या; जनता को इस ठग(INDI) गठबंधन से सतर्क रहने की जरुरत है

                    मतदाता सूची की जाँच करते चुनाव आयोग के कर्मचारी (फोटो साभार X_@ECISVEEP)
देर आये दुरुस्त आये, चुनाव आयोग ने अगर यही पुण्य काम 8/10 शुरू कर दिया और गृह मंत्रालय ने घुसपैठियों को देश निकाला कर दिया होता, आन्दोलनजीवियों और ठग(INDI) गठबंधन को भीड़ जुटाने के लाले पड़े हैं। CAA के विरोध माँ बने शाहीन बागों से लेकर अभी कुछ समय पहले तक हुए धरने में अधिकतर भीड़ स्थानीय लोगो से ज्यादा तादाद घुसपैठियों की होती है। 

यह इस देश की दुर्भाग्य है जहां नेता और पार्टियां अपनी कुर्सी के चक्कर में घुसपैठियों को अपना माई-बाप मान अपने देश की जनता को मिलने वाली सुविधाओं को घुसपैठियों को दी जा रही थीं। वास्तव में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में आयी गड़बड़ियों ने चुनाव आयोग को ऐसे कठोर कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा।

          

बिहार में हाल ही में जारी किए गए आधार कार्ड सैचुरेशन के आँकड़ों ने एक नई बहस छेड़ दी है। जहाँ राज्य का औसत आधार सैचुरेशन 94% है, वहीं किशनगंज (126%), कटिहार (123%), अररिया (123%), और पूर्णिया (121%) जैसे मुस्लिम बहुल जिलों में यह आँकड़ा 100% से भी ज्यादा है।

यानी हर 100 लोगों पर 120 से ज्यादा आधार कार्ड। ये आँकड़े डुप्लीकेट आधार कार्ड या गैर-नागरिकों को आधार जारी किए जाने के सवाल खड़े करते हैं। खासकर पश्चिम बंगाल और नेपाल की सीमा से सटे सीमांचल क्षेत्र में जहाँ अवैध घुसपैठ सबसे ज्यादा होते है।

वहीं, किशनगंज जिले के जियापोखर से मुस्लिम व्यक्ति अशराफुल को गिरफ्तार किया गया है। आरोप है कि वो बांग्लादेशी और नेपाली घुसपैठियों के लिए फर्जी आधार कार्ड बनाता था।

आधार सैचुरेशन और जनसंख्या

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जैसे जिले आते हैं। इन जिलों में मुस्लिम आबादी 38% से 68% तक है। यहाँ आधार कार्ड की संख्या आबादी से ज्यादा है।

आमतौर पर, एक व्यक्ति का एक ही आधार कार्ड होता है। लेकिन यहाँ के आँकड़े बताते हैं कि या तो नकली आधार कार्ड बने हैं या फिर ऐसे लोगों को भी आधार कार्ड मिले हैं जो भारत के नागरिक नहीं हैं।

संवेदनशील सीमांचल क्षेत्र

सीमांचल क्षेत्र पश्चिम बंगाल और नेपाल से सटा हुआ है। बांग्लादेश भी यहाँ से दूर नहीं है। इस इलाके में लंबे समय से अवैध घुसपैठियों के रहने की बात कही जाती रही है। कुछ लोग मानते हैं कि ज्यादा आधार कार्ड बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए बनाए गए हैं।

उनका दावा है कि स्थानीय नेताओं और कट्टरपंथी समूहों ने इसमें मदद की है। हालाँकि, इन दावों के लिए अभी पुख्ता सबूत नहीं हैं। फिर भी, यह एक चिंता का विषय है।

चुनाव और आधार कार्ड

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की जाँच चल रही है। विपक्षी दल सवाल उठा रहा है कि वोटर लिस्ट में नाम के लिए आधार कार्ड और आवासीय प्रमाण पत्र को क्यों नहीं माना जा रहा है।

लेकिन सच्चाई यह भी है कि सीमांचल के चार जिलों में आधार कार्ड की संख्या आबादी से ज्यादा है। यहाँ तक कि नागरिकता का सबूत न होने के बावजूद आधार कार्ड के आधार पर निवास प्रमाण पत्र भी जारी किए गए हैं।

जानकारी के अनुसार, किशनगंज में आधार कार्ड की संख्या आबादी का 105.16%, अररिया में 102.23%, कटिहार में 101.92% और पूर्णिया में 101% है।

जनसांख्यिकी में बदलाव

पिछले दो दशकों में, इस क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठ बढ़ी है। इससे यहाँ की आबादी में तेजी से बदलाव आया है। 1951 से 2011 तक, इन जिलों में मुस्लिम आबादी में 16% की बढ़ोतरी हुई।

हाल ही में हुई जातिगत जनगणना से पता चला है कि किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68%, अररिया में 50%, कटिहार में 45% और पूर्णिया में 39% हो गई है।

कुल मिलाकर, इन चार जिलों में मुस्लिम आबादी 47% हो गई है। केंद्र सरकार सीमांचल में हो रहे इन बदलावों को लेकर चिंतित है। चुनाव आयोग की मतदाता सूची की विशेष जाँच भी इसी वजह से की जा रही है।

मतदाता सूची की जाँच का सबसे ज्यादा विरोध राज्य के मुस्लिम इलाकों में हो रहा है। मुस्लिम समुदाय लंबे समय से विपक्षी महागठबंधन का समर्थन करता रहा है। महागठबंधन इस विरोध के बहाने इस समुदाय को एकजुट करना चाहता है।

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आने वाले चुनाव

बिहार में अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में विपक्ष सवाल उठा रहा है कि केवल तीन से चार महीनों में यह जाँच अभियान कैसे पूरा किया जा सकता है। ये काम राज्य में होने वाले चुनाव में करनी चाहिए। 

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